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प्रिया रमानी के जश्न के बीच हर बार की तरह हम इन दलित महिलाओं को भूल गए। तो क्या हम इस तरह की समानता की ओर बढ़ रहे हैं?
हाल ही खबर में उत्तर प्रदेश के उन्नाव के बबुरहा गांव में बुधवार को तीन नाबालिग दलित लड़कियों को अचेत अवस्था में पाया गया। लेकिन इस पर ना कोई कड़ा एक्शन लिया गया है ना ही बड़ी संख्या में सोशल मीडिया पर इसके इन्साफ की गुहारे लगाई गयी है। पीड़िताओं के भाई के बयान के मुताबिक लड़कियां खेत में घास इकट्ठा करने गए थीं। जब वे देर तक नहीं लौटीं तो परिवार उनकी तलाश में गया और वहां उन्हें बेटियां कपड़ों से बंधी हुई मिलीं। लड़कियों को तुरंत अस्तपाल ले जाया गया जहां दो को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया जबकि तीसरी गंभीर हालत में है।
ये खबर उसी दिन की है जिस दिन हमारी ही देश की बेटी प्रिया रमानी को एक लम्बी लड़ाई के बाद आख़िरकार न्यायालय में इन्साफ मिला। इन्साफ मिलते ही हर तरफ जश्न मनाया गया और उस जश्न के बीच हर बार की तरह हम इन दलित बेटियों को भूल गए। तो क्या हम इस तरह की समानता की और बढ़ रहे हैं जहां दलित महिलाओं को उनके हिस्से की जगह नहीं?
क्यों अपर क्लास फ़ेमिनिस्टस सामने आकर दलित महिलाओं के लिए नहीं बोल रही हैं? जहां उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में दलित महिलाओं के साथ हिंसाएँ थमने का नहीं ले रही हैं वहां इन महिलाओं को भी फ़ेमिनिस्ट मूवमेंट की ज़रूरत है। जब कोई दलित महिला सामने आकर बोल रही हैं तो उन्हें भी सपोर्ट की ज़रूरत है। और अगर ऐसे में हम फ़ेमिनिस्ट्स दलित महिलाओं का साथ नहीं दे सकते हैं तो हमारे फेमिनिज़्म में भी जातिवाद है।
हमारी दलित महिलाएँ हमसे कई 3 गुना ज़्यादा पीड़ित हैं। वे महिला हैं, वे दलित समुदाय से हैं जिस कारण अपर कास्ट उन्हें नॉर्मल इंसान की तरह भी ट्रीट नहीं करते हैं और सर्वेंट समझते हैं।
अगर आप अभी भी नहीं समझ रहे हैं तो हाल ही के केसेस पर गौर करते हैं – आप लेबर एक्टिविस्ट नवदीप कौर को जानते हैं? क्या इनके बारे में किसी ने सोशल मीडिया पर बात करी? नहीं। क्योंकि ये एक दलित समुदाय की महिला हैं जो अपनी आवाज उठा रही हैं। लेकिन हम सबने पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि के केस में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। दोनों ही केस में इन महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है।
तो क्यों फ़ेमिनिस्टस आज चुप हैं। क्या फेमिनिज़्म में भी क्लास, कास्ट को देखकर समानता की बात करी जाती है? कल हाथरस, मुजफ्फरपुर गैंगरेप केस की पीड़िताओं को हमारी ज़रूरत थी और आज उन्नाव की इन लड़कियों और इनके परिवार को हमारी ज़रूरत है। आज वे सभी दलित फ़ेमिनिस्ट्स भी अपर कास्ट फ़ेमिनिस्ट्स के साथ की राह देख रही हैं जो कल प्रिया रमानी के जश्न का हिस्सा थी।
दलित समुदाय की महिलाएँ और उनके परिवार भी इन्साफ चाहते हैं पर अफ़सोस हमारा सलेक्टिव फेमिनिज़्म ग्राउंड लेवल पर नहीं पहुंच पा रहा है। इस केस में भी हाथरस की तरह पीड़िता के पिता को पुलिस ले गयी है और पूरे गाँव को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। इन्हे आज हम सबकी ज़रूरत है। आज फेमिनिज़्म और फ़ेमिनिस्ट्स की ज़रूरत हैं जो समान रूप से इन महिलाओं के लिए भी आवाज़ उठा सकें।
नोट : कृपया मदद के लिए आगे आ रहे लोगों की आवाज़ बढ़ाएँ और इस हेल्पलाइन को साझा करें। यह पीड़ितों और परिवारों की मदद करने के लिए सत्यापित हैंडल है।
मूल चित्र : Amar Ujala
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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