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क्या हैं बच्चों में एडीएचडी डिसऑर्डर यानि ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार के लक्षण?

एक माँ के रूप में मुझे एडीएचडी यानि ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार के बारे में जो कुछ भी पता है वह मैं आप सबके साथ साझा कर रही हूं।

एक माँ के रूप में मुझे एडीएचडी यानि ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार के बारे में जो कुछ भी पता है वह मैं आप सबके साथ साझा कर रही हूं।

मेरा बेटा अपनी क्लास के सबसे छोटे बच्चों में है। फिर भी उसकी सीखने और समझने की काबिलियत बहुत अच्छी है। उसने 5 साल तक लगातार साइबर ओलंपियाड का स्कूल लेवल जीता, अपने स्कूल को डिजिटल और साइंस प्रतियोगिताओं में रिप्रेजेंट किया है और कई तरह की प्रतियोगिता में मेडल जीते हैं।

जब वह कक्षा दो और तीन में था तब उसके व्यवहार में हमने एक पैटर्न देखा। हमने बच्चों के साइकोलोजिस्ट से संपर्क किया तो पता चला कि बेटे को हल्का एडीएचडी – अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर या ध्यान का अभाव एवं अतिसक्रियता विकार है।

जब हमें ठीक से समस्या का पता चल जाता है तो उसे हल करना आसान हो जाता है। यही हाल ए डी एच डी का भी है। बहुत कम लोग जानते हैं कि एडीएचडी (ADHD) काफ़ी बच्चों में होता है और अगर बचपन में ही उसे सम्भाल लिया जाए तो आगे आने वाली जिंदगी बच्चे और उसके परिवार के लिए बहुत सुखद हो सकती है।

एक माँ के रूप में मुझे अभी तक इस डिसऑर्डर के बारे में जो कुछ भी पता है वह मैं आज आप सबके साथ साझा कर रही हूं।

एडीएचडी के लक्षण

एडीएचडी के लक्षण अधिकतर 5 से 7 साल की उम्र में दिखाई देने लगते हैं। बच्चों में एडीएचडी के इनमें से कुछ लक्षण हो सकते हैं:

  • आंख मिला कर बात करने से बचना,
  • किसी भी शब्द या हरकतों को बार-बार दोहराना, लगातार हाथों- पैरों या सिर को हिलाते रहना ,
  • जल्दी ही बोर हो जाना, मूड का बार-बार बदलना,
  • बड़ी और गहरी बातें तो याद रखना, मगर छोटी-छोटी चीज़ें भूल जाना,
  • समूह में दूसरे लोगों को लगातार डिस्टर्ब करना,
  • फोकस करने में परेशानी, बहुत जल्दी-जल्दी ध्यान भटकना

ADHD बड़ी उम्र में नहीं होता है, यह पैदा होने के साथ ही बच्चे में आने वाली एक स्थिति है। यदि बचपन में नहीं पहचाना जाए तो एडीएचडी के कुछ लक्षण आगे आने वाली किशोरावस्था या वयस्क जीवन में भी दिखाई दे सकते हैं और तब उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। लोगों को अपने विचारों, अपनी भावनाओं में, याददाश्त और ध्यान देने की स्थिति में समस्या हो जाती है।

यह उनके सामाजिक व्यवहार पर तो असर डालता ही है, साथ ही उनके परिवार वालों को भी स्थिति को संभालने में परेशानी हो सकती है। ध्यान दें कि बच्चे की समझने की, लिखने-पढ़ने की क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता। इस विकार का और बच्चे की समझदारी का आपस में कोई संबंध नहीं है।

एडीएचडी या ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार के कारण

डॉ प्रवीण सुमन के अनुसार 40% केस का कारण आनुवंशिक और जन्म के समय कम वजन होना है। वैसे यह किसी भी बच्चे में हो सकता है। समय से पहले स्कूल में दाखिला और प्रदूषण जैसे लेड के संपर्क में आना, इन सब से लक्षण बढ़ सकते हैं।

एक रिसर्च के अनुसार यह दिमाग में एक खास न्यूरोट्रांसमीटर Norepinephrine की कमी से होता है। इससे दिमाग की कुछ खास कार्य क्षमताओं और विकास पर असर पड़ता है जैसे – फोकस में कमी, याद्दाश्त, योजना बनाना, चीजों को ठीक से रखना, आगे के बारे में अंदाजा लगाना, अपने इंद्रियों पर कंट्रोल करना, आवेग में बहना आदि, जिससे पारिवारिक और सामाजिक जिंदगी पर असर पड़ता है।

एडीएचडी का निवारण

एडीएचडी यानि ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है मगर पूरी तरह दूर नहीं कर सकते। 4-5 साल की उम्र तक बिहेवियर थेरेपी और माता-पिता की ट्रेनिंग की ही सलाह दी जाती है।

डॉ प्रवीण सुमन की मानें तो बच्चे और परिवार के अनुसार ही उन्हें इलाज दिया जाता है। इसमें उनके परिवार को करीब से जानना, उनकी दिनचर्या के बारे में जानना, थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद उन्हें बुलाना और समय के अनुसार ट्रीटमेंट में बदलाव करना एक तरीका है। अगर गंभीर केस हो तो बिहेवियर थेरेपी के साथ-साथ दवाई भी दी जा सकती है।

एक पेरेंट के रूप में हम किस प्रकार मदद कर सकते हैं?

एक पेरेंट के रूप में हमें बच्चे को उसकी पसंद के अनुसार पॉजिटिव और क्रिएटिव एक्टिविटीज़ में डालना चाहिए। मेरा बेटा ओरिगेमी, नावेल पढ़ना, कहानी लिखना, इलेक्ट्रोनिक गेम्स, स्केटिंग, फुटबॉल, आर्चरी और ड्रॉइंग जैसी एक्टिविटीज में व्यस्त रहता था। उसकी कार के डिजाइन को शैवरोलेट एक इवेंट में नेशनल अवॉर्ड भी मिला। उसके आसपास के लोगों को बहुत सारे धैर्य की जरुरत है।

उसके साइकोलोजिस्ट डॉक्टर इमरान नूरानी जो कि चाइल्ड डेवलपमेंट क्लीनिक, दिल्ली में हैं, उन्होंने अक्षत को मोटिवेटेड रखने के लिए रिवार्ड सिस्टम की सलाह दी। अपना बातचीत का तरीका बेहतर बनाने के लिए हम उसे ग्रुप एक्टिविटीज में डालते हैं। स्कूल काउंसलर ने भी उसकी एक्टिविटीज को संभालने और बिहेवियर को समझने में मदद करी।

इस कंडीशन का जितनी जल्दी पता चले, उसके इलाज से उतने ही बेहतर रिजल्ट मिलते हैं। हो सकता है कुछ बड़े लोगों में भी ए डी एच डी हो और कभी पता ही ना चले, फिर उन्हें काम में, घर में और रिश्तों को संभालने में परेशानी हो सकती है।

भारत में जानकारी का अभाव और कुछ सामाजिक धारणाओं के कारण ज्यादातर केस बिना पता चले ही रह जाते हैं। इस बारे में और ज्यादा जानने के लिए मैंने डॉक्टर प्रवीण सुमन से बात करी।

डॉ प्रवीण सुमन से बातचीत:

प्रश्न: क्या एडीएचडी या ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार को पूरी तरह सुधारा जा सकता है?

उत्तर: देखिए, यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि एक कंडीशन है जिसे प्रारम्भिक इंटरवेंशन के साथ संभाला जा सकता है। जितनी जल्दी इसका पता चलेगा, लगभग 5 साल तक की उम्र में – जब बच्चे का दिमाग विकसित हो रहा हो, तो हमें बेहतर रिजल्ट मिलते हैं। इस उम्र में इंटरवेंशन से इस डिसऑर्डर को ठीक करने में बहुत बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। बच्चे के सामाजिक व्यवहार में आने वाली मुश्किलों को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

प्रश्न: किस तरह का उपचार किया जाता है?

उत्तर: हमें बच्चे की जरूरतों को समझना होता है। सबसे पहले हमें यह स्वीकार करना है कि एडीएचडी से भागना नहीं है, उसे अपनाना है। यह बच्चे की पर्सनैलिटी का एक भाग है। हर बच्चे या इंसान को ठीक करने का अलग अलग तरीका होता है। जिसकी जैसी जरूरत, वैसी ही थेरेपी। हो सकता है सिर्फ कॉउंसलिंग हो या दवाइयां देनी पड़े, या दोनों।

इसके बहुत अच्छे इलाज के तरीके मौजूद हैं। उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर हमें डॉक्टर को कंसल्ट करने की जरूरत हो सकती है जिससे इस डिसऑर्डर की वजह से आने वाली परेशानियों को कम से कम किया जा सके।

प्रश्न: माता-पिता को क्या करना चाहिए?

उत्तर: यदि उन्हें बच्चे की पढ़ाई या सामाजिक व्यवहार में कोई पैटर्न या परेशानी दिखाई देती है, तो उन्हें तुरंत सही डॉक्टर से सलाह करनी चाहिए। हम माता-पिता से कहते हैं कि बच्चे की पॉजिटिव आदतों की ओर ध्यान दें। इससे बच्चे और माता-पिता, दोनों को ही हिम्मत, आत्मविश्वास और प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न: क्या लड़के और लड़कियों में कुछ अलग पैटर्न होते हैं?

उत्तर: हमने देखा है कि बच्चे ज्यादातर हाइपरएक्टिव टाइप के होते हैं और लड़कियां ज्यादातर इन-अटैंटिव टाइप की होती हैं यानि दिन में सपने देखना और फोकस को जल्दी खोना लड़कियों में ज्यादा पाया जाता है। वैसे बच्चे में यह दोनों चीजें भी हो सकती हैं। डिसऑर्डर का सही उपाय और गंभीरता जानने के लिए कई तरह के टेस्ट होते हैं।

प्रश्न: परिवार को समाज के साथ यह बात किस तरह शेयर करनी चाहिए?

उत्तर: हमें शर्माने की जरूरत बिल्कुल नहीं है, हर इंसान में  कुछ ना कुछ कमियां होती हैं। अगर एडीएचडी बिना पता चले रह गया तो आगे जाकर व्यक्ति को जॉब, शादी और समाज में दूसरी परेशानियां हो सकती हैं। हमें सोसाइटी में जागरूकता फैलाने की जरूरत है क्योंकि मानसिक परेशानियों के लिए डॉक्टर के पास जाना अच्छा नहीं समझा जाता। जो लोग हमारे परिवार को समझते हैं और मदद कर सकते हैं, उनसे तो यह बात जरूर बतानी चाहिए।

ऑथर्स नोट : डॉ प्रवीण सुमन चाइल्ड डेवलपमेंट क्लीनिक की डायरेक्टर, डेवलपमेंटल बिहेवियरल पीडीएट्रीशियन हैं, और सर गंगा राम हॉस्पिटल, नई दिल्ली में सीनियर कंसलटेंट हैं।

डिस्क्लेमर: इस लेख में सामान्य जानकारी है। कृपया अधिक जानकारी के लिए आप अपने स्पेशलिस्ट को सम्पर्क करें।

मूल चित्र : Pixabay

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Shaily

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