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सच कहूं तो आज उसकी इस बात पर मन में झिझक भी होती है, मुंहफट तो होते थे, मगर दिल का साफ भी तो थें, एक ख़ास दोस्त हम सबके पास होता था।
एक ख़ास इंसानहम सबके पास,बचपन की लड़ाइयों मेंकि यह खिलौना तुम रख ले,मैं तुमको रुला गया था।कि एक निवाला ज्यादा भर लें,मां से तेरी मनपसंद भाजी जो बनवाईं थी।
वो ख़ास,जो मेरे हिस्से की दण्ड मास्टर सेखुद ही खा गया,और गणित के मेरे अधूरे सवालों परअंक बेहिसाब चढ़ा गया था।
खासियत ऐसी किमेरे पिता की ऊंची आवाज़ पर‘मेरी गलती हैं’ का परत चढ़ा कर,और मेरी मां को अपनी लाड़ कीचासनी में आश्वासन घोल पिला गया था।
ख़ास इतनाकि अपनी पसंद पर उसकी मुरादऔर गली में मिलों तो उसकी घात,हर नज़र में रहकर,बुरी नजरों से छिपाकर,वो ख़ास इंसान,‘मैं हूं न’ में बांध गया था।
सच कहूं तो आज उसकी इस बात परमन में झिझक भी होती है,मुंहफट तो होते थे,मगर दिल का साफ भी तो थें,एक ख़ास दोस्त,हम सबके पास होता था।
मूल चित्र : Pradeep Ranjan via Unsplash
A space tech lover, engineer, researcher, an advocate of equal rights, homemaker, mother, blogger, writer and an avid reader. I write to acknowledge my feelings. read more...
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