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किराएदार है तू इस बगिया की, हक नहीं है इस बगिया में तेरा। किसी और के घर को जाकर महकाना, और वहां भी अपने नाम को भूल जाना।
ज़िंदगी में बदलाव को होते देखा है,एक औरत को संघर्ष करते देखा है।
मुनिया तू पढ़ लिख नहीं सकती,मर्दों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती।
आसमानों को छूने का हक़ नहीं है तेरा,पर्दों के पीछे सिर्फ आसमां है तेरा।
किराएदार है तू इस बगिया की,हक नहीं है इस बगिया में तेरा।
किसी और के घर को जाकर महकाना,और वहां भी अपने नाम को भूल जाना।
ये बदलाव का स्वरूप है इक औरत का,मायके से ससुराल के सफ़र को झेलना,
बदले में सिर्फ बंदिशें और रूसवाईयां है,ऐ! औरत तेरी जमीं और आसमां कहां हैं।
मूल चित्र : Still from the Short Film, YouTube
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