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बचपन की याद में छुपी चली आई, वो छुपम छुपाई वो पकड़म पकड़ाई, गिल्लियों की आवाजें, पतंगों की उड़ानें, बहुत याद आता है बचपन सुहाना।
बचपन की याद में छुपी चली आई, वो छुपम छुपाई वो पकड़म पकड़ाई, गिल्लियों की आवाजें, पतंगों की उड़ानें, किताबों की दुनिया संग परीक्षा की घड़ियां, दोस्तों संग घूमना वो रूठना मनाना, वो देर रात जगना, हंसना और हंसाना, ना खोने का गम, बस पाने की खुशियां, छुट्टियों के दिन में वो आलस की घड़ियां, वो बागों के आम, वो नानी का घर, बहुत याद आता है बचपन सुहाना।
मूल चित्र : Guduru Ajay bhargav via Pexels
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