कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मैं अपने बेटे की सुनती या अपने पति और सास की…?

दोनों पिता-पुत्र अपने तर्क देते और बीच में पिसती मैं, किसी तरफ जाऊं? पति या पुत्र? दोनों ही प्रिय थे लेकिन बेटे का चेहरा देखती तो लगता...

दोनों पिता-पुत्र अपने तर्क देते और बीच में पिसती मैं, किसी तरफ जाऊं? पति या पुत्र? दोनों ही प्रिय थे लेकिन बेटे का चेहरा देखती तो लगता…

“मम्मा मैं आपकी हेल्प करूं क्या?” मेरा चार साल का बेटा राघव अक्सर रसोई में काम करते वक़्त मुझसे पूछता और मैं मुस्कुरा कर कभी मटर छीलने को दे देती तो कभी आटे की लोई बना दे देती और वहीं बैठ अपने छोटे से चकले बेलन से टेढ़ी मेढ़ी रोटी बेल ख़ुश होता रहता।

बेटे को काम करता देख मन ही मन मैं ख़ुश होती तो वही मेरी सासूमाँ और पतिदेव हमेशा नाराज़ होते। राघव के पापा राघव को रसोई में देखते चीखने लगते, “ये क्या लड़कियों की तरह रसोई में घुसा रहता है हर वक़्त।”

वहीं सासूमाँ बातें सुनाती, “बहु अजीब हो तुम भी बेटी के काम बेटे से करवाती हो और बेटे के बेटी से?” 

क्या कहती मैं? सो चुप रहती और हर संभव प्रयास करती बेटे को बचाने का।

जैसे जैसे राघव बड़ा हो रहा था उसकी रूचि रसोई के कामों में ज्यादा रहती। स्कूल और पढ़ाई से फ्री होते ही लग जाता रसोई घर में कोई ना कोई एक्सपेरिमेंट करने में। जब भी मेरी कोई सहेली आती तो झट कॉफ़ी बना लाता और अपनी बहन की सहेलियों के लिये तरह-तरह के नाश्ते। मेरी और बेटी की सहेलियों का फेवरेट बन गया था राघव। सबको राघव के हाथों की ही कॉफ़ी चाहिये होती थी।

अपने शौक के चक्कर में अकसर अपने पापा और दादी से डांट सुनता रहता, “बेटा, क्यों रसोई के कामों में लगे रहता है? पापा भी नाराज़ होते हैं और दादी भी। देख अपनी बहन को कभी झांकने भी नहीं आती रसोई मे और पढ़ाई में भी कितनी होशियार है।”

“मम्मा मुझे खाना बनाना पसंद है और कौन कहता है लड़के रसोई में नहीं जाते? दुनिया के सबसे अच्छे कुक लड़के ही तो हैं और देखना मम्मा मैं भी एक दिन आपको प्राउड करवाऊंगा।” 

अपने बेटे की दिल की बात मैं समझती भी थी और सराहती भी थी लेकिन इसके पापा और दादी को कैसे समझाती जो राघव को रसोई के आस पास देखते भी तो बिफ़र उठते थे। 

“राघव तुझे इंजीनियरिंग बनना है पढ़ाई में ध्यान दे देख अपनी बहन को कितनी होशियार है और तू क्या मसालों में लगा रहता है सारा दिन?”

बारहवीं आते-आते राघव के पापा का दबाव राघव पे बढ़ता चला गया। ऐसा भी नहीं था की राघव पढ़ने में कमजोर था लेकिन आम लड़कों की तरह क्रिकेट में नहीं रसोई में उसका दिल लगता था।

बारहवीं किसी तरह पास कर लिया राघव ने, अब बारी करियर चुनने की थी। राघव के पापा कोटा भेजने की ज़िद लिये बैठे थे। एक डर ये भी था की दुनिया क्या कहती, ‘बेटी इंजीनियर बन गई और बेटा रसोईया?’

“नहीं पापा, मैं कोटा नहीं जाऊंगा। मुझे होटल मनेजमेंट का कोर्स करना है।” किशोरवय बेटे ने पहली बार अपने पिता का विरोध किया था।

“नाक कटवाने पे तुला है तुम्हारा बेटा.. समझाओ इसे हमारे खानदान में आज तक कोई मर्द रसोई में झाँकने नहीं गया और ये रसोईया बनेगा?”

“रसोईया नहीं पापा कुक बनुंगा। अपना होटल खोलूंगा मैं।” 

दोनों पिता पुत्र अपने तर्क देते और बीच में पिसती मैं। किसी तरफ जाऊं पति या पुत्र। दोनों ही प्रिय थे। बेटे का चेहरा देखती तो कलेजा मुँह को आ जाता। वो सारे उदाहरण आँखों के सामने तैर जाते जहाँ माता पिता के दबाव में बच्चे गलत कदम उठा लेते थे।

इसी चिंता में एक रात करवटें बदल रही थी। प्यास लगी तो रसोई की तरफ बढ़ी। राघव के कमरे की लाइट जल रही थी। कमरे के एक कोने में घुटनों में मुँह छिपा राघव बैठा था।

सिर पे हाथ फेरा तो पैर पकड़ रोने लगा, “मम्मा प्लीज पापा को समझाओं। मुझे नहीं बनना इंजीनियर। नहीं जाना कोटा। क्या फायदा ऐसी पढ़ाई कर जिसमें मेरी रूचि ही नहीं? मुझे बहुत आगे जाना है माँ। ऐसे मुझे बंधन में मत बांधो। प्लीज मेरी बात समझो माँ…” 

बेटे को रोता देख मेरी भी रुलाई छूट गई। दोनों माँ बेटे गले लग रो पड़े तभी नज़र दरवाजे पे गई तो राघव के पापा खड़े हमारी बातें सुन रहे थे।

उस रात जाने क्या सोचा राघव के पापा ने या शायद बेटे को खो ना दें? इस डर से ही सही, एक मूक सहमति मिल गई राघव को और ख़ुशी ख़ुशी मेरा बेटा अपने सपनों को पूरा करने मुंबई निकल पड़ा।

दोनों बच्चे मेरे घरोंदे से उड़ चुके थे। अब बारी थी तो उनके सफलता पे गर्व करने की। बेटी तो अपनी पहचान बना ली अपनी मेरी नज़र और उम्मीद राघव पे थी। समय बीता पढ़ाई पूरी करते ही राघव को लन्दन के बड़े रेस्तरॉं में जॉब मिल गई।

“पापा मेरी जॉब लग गई और जल्दी ही मैं ज्वाइन कर लूंगा। थैंक यू पापा आपने और माँ ने मुझे मेरे सपनों को जीने दिया।” राघव ने फ़ोन कर ख़बर सुनाई तो मेरी जान में जान आयी। एक डर तो मेरे भी मन में था कहीं कोई गलती तो नहीं कर रही थी।

लन्दन जाने से पहले राघव घर आया और राघव के पापा ने एक बड़ी सी पार्टी दी।

“सिन्हा साहब ये है मेरा बेटा राघव, लन्दन में जॉब लगी है और सैलरी इतनी है जितनी पूरे खानदान में किसी को आज तक नहीं मिली। अरे मिश्रा जी मिले आप राघव से? हेड कुक की जॉब लगी है वो भी इतने नामी होटल में।” गर्व से राघव को सबसे मिलवाते उसके पापा घूम रहे थे तो उसकी दादी अपनी सहेलियों से अच्छी लड़की ढूंढ़ने को कह रही थीं।

“देख रहा है राघव ये तेरे ही पापा है ना या कोई और है?” हँसते हुए मैंने पूछा तो राघव भी हँसने लगा।

“सच कहा मम्मा, थैंक यू मम्मा। आपके सपोर्ट से ही मेरे सपने पूरे हुए।” राघव के बातें सुन मुस्कुरा कर उसके गालों पे थपकी दे दी मैंने।

अपने बेटे की मुस्कान और चमकती ऑंखें बता रही थी कि अपने सपनों को पाने का उसका पहला कदम उसे बहुत आगे ले जाने वाला था। आज मैं निश्चिंत थी मेरे बेटे ने अपनी जिंदगी खुद चुनी थी और इस बात को गलत साबित कर दिया कि लड़कों का रसोई में क्या काम?

क्या आपके बच्चे ने कभी आपसे ऐसा कुछ शेयर किया? क्या आपने उसका साथ दिया?

मूल चित्र : Screenshot, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,909,212 Views
All Categories