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मैं एक ऐसी बेटी हूँ जिसकी शादी तो हुई लेकिन कन्यादान नहीं…

"मेरे विवाह में कन्यादान की रस्म में पिता नहीं बैठे, बाद में उन्होंने कहा कि बेटी कोई सामान या दान की वस्तु नहीं", कहती हैं अंजली शर्मा। 

“मेरे विवाह में कन्यादान की रस्म में पिता नहीं बैठे, बाद में उन्होंने कहा कि बेटी कोई सामान या दान की वस्तु नहीं”, कहती हैं अंजली शर्मा। 

नोट : इंटरनेशनल विमेंस डे 2021के लिए ‘ये मेरा चैलेंज है’ कॉटेस्ट के अंतर्गत आयी आपकी सभी कहानियाँ एक से बढ़कर एक हैं। तीन बेहतरीन कहानियों की श्रृंखला में पहली कहानी है अंजलि शर्मा की। आपको हम सब की ओर से अनेक शुभकामनाएं !

चुनौतियां तो जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, मगर स्त्रियों के लिए चुनौतियां नए नए रूप ले कर आती हैं, या ये कहिए कि चुनौतियों से जूझना स्त्री जीवन का अनिवार्य अंग ही है। बचपन से ही जिन बाधाओं का सामना एक कन्या करती है वो साधारण मनुष्य होने के लिए नहीं मगर सिर्फ लड़की होने के कारण उसके हिस्से लिख दी जाती हैं। मान्यताएं, रूढ़ियाँ, समाज के नियम पग-पग में महिलाओं के लिए चुनौतियों के कांटे तैयार रखते हैं मानो अग्नि परीक्षा देने के लिए ही उसने जन्म लिया हो।

मैं इस मामले में कुछ भाग्यशाली थी। मेरा परिवार उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर के मध्यमवर्ग से था और पढ़ाई लिखाई का घर में पूरा ज़ोर था। परिवार में सभी शिक्षक थे। मेरे दादाजी की पीढ़ी की महिलाएं नौकरी में कार्यरत थीं और सार्वजनिक कामों में शामिल रहती थीं। मैंने सभी महिलाओं को हमेशा घर बाहर काम करते देखा। संगीत की शिक्षा, पढ़ाई, नौकरी के प्रयास में सभी को प्रेरित किया जाता था।

लड़की, लड़का या किसी भेदभाव से मेरा बचपन अछूता था। पिता ने मुझे अपनी सामर्थ्य से अधिक शिक्षा दी और मैंने भी पूरी मेहनत से अच्छी नौकरी पाई। मगर दुनिया में कदम रखते ही पता चला कि छोटे शहर का मेरा परिवार बड़े शहरों और आधुनिक समाज से कहीं ज़्यादा उदारशील था। एक नयी दुनिया से मुलाक़ात हुई जहाँ लड़की होना, योग्य होने को कभी-कभी मात देता था।

अकेले सफर करना, घर ढूंढना, मन मुताबिक जीना, कुछ भी आसान नहीं था। नौकरीपेशा स्त्री को ‘वर्किंग वुमन’, ‘करियर गर्ल’, ‘फॉरवर्ड’ ‘मॉडर्न’ की उपाधि बड़ी आसानी से दे दी जाती और मान लिया जाता कि आप कुछ अलग हैं, स्वार्थी हैं, घऱेलू नहीं हैं, परिवार नहीं चला सकतीं।

परिवर्तन भी हमसे ही आएगा…

बचपन से मेरा सपना था कि नौकरी लगने पर अपनी माँ के लिए एक घर खरीदूंगी। पैसों को शुरू से ही संचय करने की आदत थी और फिर कुछ समय में मैंने माँ के लिए एक छोटा सा घर खरीदा। ये मेरे लिए बहुत ही बड़ी उपलब्धि और अपार ख़ुशी की बात थी।

मगर ये बात शायद लड़की होने के कारण कुछ अलग थी। समाज लड़कों को दाद देता है माता पिता की सेवा के लिए। दहेज़ प्रथा जैसे भुगतान हो जाता है बेटे की पढ़ाई, लालन पालन का ऋण लड़की वालों से वसूलने के लिए। मगर एक लड़की अगर माता पिता के लिए अपना कर्त्तव्य पूरा करना चाहे तो वो रास नहीं आता। इस बात पर मैंने कई कटाक्ष सुने, बेटी पराया धन हैं वगैरह।

अगर लड़कियों को लेकर हम इस तरह के विचार रखेंगे तो बेटी बेटे में फ़र्क़ कहाँ से जाएगा? बहरहाल मैं आज भी अपने माता पिता का पूरा ख़याल रखती हूँ, बेटे की तरह नहीं बल्कि संतान की तरह। एक छोटा सा कदम है, कोई बड़ी क्रांति नहीं। मगर जानती हूँ कि परिवार और पास पड़ोस में कई लड़कियाँ प्रेरित हुईं। देखा कि दकियानूसी परिवेश में भी कई माता पिता ने सहर्ष छोटे कस्बों से उन्हें बाहर पढ़ने और काम करने भेजा। वे जागरूक हैं, घर गृहस्थी के साथ-साथ अपनी पहचान बनाने में प्रयासरत। जो लोग मेरी निंदा करते थे वो भी अपने बच्चों की पढ़ाई नौकरी के बारे में मुझसे पूछने लगे, उनकी आँखों मुझे प्रशंसा दिखाई दी।

बराबरी और शिक्षा का क्या अर्थ अगर हम पुरातन पंथी मान्यताओं में बंधे कन्या को निरीह, बेचारी या आश्रित मानते रहें और अवचेतन रूप से कमज़ोर समझते रहें। समाज कोई अन्य व्यक्ति नहीं बल्कि हम ही हैं, परिवर्तन भी हमसे ही आएगा, आवश्यकता है छोटे-छोटे कदम उठाने की।

बेटी का कन्यादान नहीं

मेरे विवाह में भी बेटी के कन्यादान की रस्म में पिता नहीं बैठे, अचम्भा हुआ मगर बहुत बाद में उन्होंने कहा कि बेटी कोई सामान या दान की वस्तु नहीं जो दान किया जाए। बेटियां परिवार और समाज की नीव हैं उन्हें सशक्त बनाएं पुरातन रूढ़ियों में न बांधें, इसलिए बेटी का कन्यादान बिलकुल ठीक नहीं। बिदाई में भी उन्होंने कहा तुम पढ़ाई के लिए, नौकरी के लिए बाहर गयी, अब अपना परिवार बना रही हो, ख़ुशी का समय है, रोने का नहीं। मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

जीवन में हर समस्या का डट कर सामना करना मैंने अपने परिवार और परवरिश से सीखा। आत्मनिर्भर रहना, अपने और दूसरों के लिए मज़बूत सहारा बनना, परिवार के प्रगतिशील विचारों से सीखा।

अपने लेखन से जागरूकता जगाने को प्रयासरत हूँ, एक समाजसेवी प्रोग्राम की सदस्य हूँ जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को डिजिटल माध्यम से माइक्रो बिज़नेस चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है। हर छोटा कदम एक नयी उड़ान की शुरुआत है, एक नयी कहानी, एक नए इतिहास का आगाज़ है। मज़बूती से अपने और अन्य महिलाओं के पंखों को उड़ान दें, हम सब मिलकर साथ आगे बढ़ें।

मूल चित्र : Photo by Alok Verma on Unsplash

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