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विदा होकर भी कहाँ विदा हो पाती हैं बेटियाँ…

घर के किसी कोने में आज भी उनकी साइकल सजती है, त्योहारों में अब पहले सी शरारत कहाँ होती है, कहीं रूमाल तो कहीं हेयर क्लिप छोड़ जाती हैं बेटियाँ!

घर के किसी कोने में आज भी उनकी साइकल सजती है, त्योहारों में अब पहले सी शरारत कहाँ होती है, कहीं रूमाल तो कहीं हेयर क्लिप छोड़ जाती हैं बेटियाँ!

विदा होकर भी विदा नहीं होती हैं बेटियाँ
घर के किसी ना किसी कोने में बसी होती हैं बेटियाँ
आवाज़ भले ही ना आए खिलखिलाने के उनकी
पर हाथों की छाप दरवाज़े पर छोड़ जाती हैं बेटियाँ
विदा होकर भी विदा नहीं होती हैं बेटियाँ

अधूरे सपनों को छोड़ जाती हैं बेटियाँ
बिन बोले ही बहुत कुछ कह जाती हैं बेटियाँ
माँ बाप कुल ख़ानदान के लिए घर से तो विदा हो जाती हैं बेटियाँ
पर अपने दिल को घर में ही छोड़ जाती हैं बेटियाँ
घर में ना दिखते हुए भी हर पल घर के कोने कोने में दिखती है बेटियाँ
क्योंकि विदा होकर भी कहाँ विदा हो पाती है बेटियाँ

छोड़ जाती हैं पीछे अपना बचपन, अपना अल्हड़पन
चाह कर भी विदा नहीं कर सकते उनके साथ वो बचपन
अलमारी भरी रहती है आज भी उनके कपड़ों से
तरह तरह की चप्पल आज भी सजी रहती हैं शू रैक पर

स्टडी टेबल पर अपना नाम लिख जाती हैं
दराज में किताबें, तो अटैची में सर्टिफ़िकेट छोड़ जाती हैं बेटियाँ
दीवाल पर टंगे फ़ोटो फ़्रेम में पलों को क़ैद कर जाती हैं बेटियाँ
रसोई के किसी खाने में अपनी महक छोड़ जाती है बेटियाँ
शाम सुबह की चाय की चुस्कियों में बसी होती हैं बेटियाँ

घर के किसी कोने में आज भी उनकी साइकल सजती है
त्योहारों में अब पहले सी शरारत कहाँ होती है
हिदायत देने पर भी,
कहीं रूमाल तो कहीं हेयर क्लिप छोड़ जाती है बेटियाँ
माँ कहती भी है सब सामान ठीक से रख लेना
फिर भी ना जाने क्यों कुछ ना कुछ छोड़ ही जाती हैं बेटियाँ

पराया कहने से परायी नहीं हो जाती है बेटियाँ
क्योंकि बसी हुई हैं घर के हर कोने कोने में
इसलिए विदा होकर भी विदा नहीं होती है बेटियाँ
सिर्फ़ पराया कह देने से परायी नहीं होती हैं बेटियाँ

मूल चित्र : Sonam Singh via Pexels

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