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कोरोना काल में बुजुर्ग महिलाएं अपने बुजुर्ग पतियों की देखभाल करने वाली एकमात्र सदस्य बन गईं, जिसके कारण अवसाद ने उन्हें घेर लिया।
कोरोना माहमारी के दौरान लोगों ने बिगड़ते स्वास्थ्य के साथ-साथ अकेलापन, चिड़चिड़ापन, अवसाद आदि चीज़ों को भी झेला है। साथ ही लोगों के बीच बढ़ती सामाजिक दूरी के कारण लोगों के अंदर हीन-भावना बढ़ने लगी।
नौकरियां जाने के कारण लोगों को आर्थिक परेशानी भी उठानी पड़ी, जिस वजह से उनके अंदर असंवेदनशीलता की जड़ें भी गहराने लगीं। कोरोना के कारण बच्चों समेत हर एक उम्र के लोगों को अपनी-अपनी जरुरतों के अनुसार परेशानियों का सामना करना पड़ा। पुरुषों को नौकरी छूटने के कारण घर के खर्चों की चिंता सताने लगी, वहीं महिलाओं के ऊपर काम के बढ़ते बोझ के कारण चिड़चिड़ापन और गुस्सा हावी होने लगा।
इस बीच बुजुर्ग लोगों को भी अपने स्वास्थ्य की चिंता सताने लगी क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है और कोरोना के कारण बुजुर्गों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी डगमगाने लगी थी। बुजुर्गों के मन में बीमार होने और अस्पतालों में भर्ती होने का डर हावी होने लगा था।
ऐसी कई रिपोर्ट सामने आई हैं, जिसमें कहा गया है कि बुजुर्ग महिलाओं को कोरोना काल में गंभीर मानसिक परेशानियां उठानी पड़ीं। बुजुर्ग महिलाओं को स्वयं समेत अपने घर के अन्य सदस्यों की चिंता ने अवसाद में ला दिया। हालांकि स्पष्ट आंकड़ों के अभाव में कहना मुश्किल है कि लगभग कितनों की संख्या में बुजुर्ग महिलाओं समेत बुजुर्ग पुरुषों को परेशानी उठानी पड़ी। बुजुर्गों की आवाज़ें नीतियों में भी शामिल नहीं जाती क्योंकि वे नीति निर्धारण निकाय में प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। ऐसे भी महिलाओं को नीतियों में जगह नहीं दी जाती है फिर बुजुर्ग होती महिलाओं को शामिल करने की बात ही बेमानी लगती है।
भारत में हमेशा छोटे-मोटे त्यौहार और फंक्शन आदि सेलिब्रेट किए जाते हैं मगर कोरोना ने लोगों की सहभागिता और पब्लिक मीटिंग को रोक दिया, जिस कारण आसपास की महिलाओं का एक-दूसरे से मिलना-जुलना भी कम हो गया। आमतौर पर भारत में महिला बुजुर्गों ने हमेशा से सामाजिक संपर्क और जुड़ाव के अपने तरीके खोजे हैं। अपने पोते, बच्चों और सहकर्मी समूहों से मिलना उन्हें पहचान, सुरक्षा और सहायता की भावना प्रदान करता है। महामारी और इसके परिणामस्वरूप सावधानियों ने इन खुशियों के स्रोतों को सीमित कर दिया है।
भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में पत्नियां अक्सर अपने पति से छोटी होती हैं। ऐसे में वृद्धावस्था में उनपर पतियों की देखभाल करना का जिम्मा होता है। महामारी ने सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण घरेलू मदद और भुगतान की जाने वाली देखभाल को व्यापक रूप से प्रतिबंधित कर दिया है, जिससे महिलाएं अपने बुजुर्ग पतियों की एकमात्र देखभाल करने वाली बन गईं।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार बुजुर्ग महिलाओं को इसलिए भी परेशानियां उठानी पड़ी क्योंकि उन्होंने घर की जिम्मेदारियों को एक बोझ के तरह ले लिया और बाकि सदस्यों के लिए चिंतित रहने लगीं। उन्होंने अपने आप को नज़रअंदाज कर दिया मगर अंदर-ही-अंदर बीमारी से डरी रहीं। कोरोना के अलावा उन्हें अपनी उन बामारियों की भी चिंता सता रही थी, जो उन्हें और उनके घर के सदस्यों को हो रही थी। जैसे- डायबिटीज, बल्ड-प्रेशर आदि बीमारियों की चिंता उन्हें मानसिक रुप से अवसाद की ओर ढकेलने लगीं।
महिलाएं अगर पढ़ी-लिखी हो, तब उन्हें ऐसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। ऐसी दलील दी जा सकती है मगर महिलाएं घर के लोगों की चिंता को लेकर बहुत सोचती हैं, जिस कारण उन्हें तनाव का सामना करना पड़ता है। इसे कम करने का एकमात्र तरीका यह हो सकता है कि महिलाओं के साथ समय बिताया जा सकता है। उन्हें अकेला ना छोड़कर, उनके साथ घर के बाकि सदस्य समय बिताएं।
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मूल चित्र : SoumenNath from Getty Images Signature via Canva Pro
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