कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

एक बेटी की ज़ुबानी!

मेरी तबाही और मौत पर, मोमबत्ती जलाना अब छोड़ दो, थक गयी मै आंसू बहा कर, तुम जुलुस का रुख मोड़ लो। कोख में मार डालो अब क्यूंकी...

मेरी तबाही और मौत पर, मोमबत्ती जलाना अब छोड़ दो, थक गयी मै आंसू बहा कर, तुम जुलुस का रुख मोड़ लो। कोख में मार डालो अब क्यूंकी…

बाग़ी ही पैदा हुई थी, या बस एक बेटी?
अगर भांप लेती हवस की बदबू,
तो शायद कोख में ही जान दे देती।

भय, संशय से थक सी गयी हूँ अब,
पर चरित्र मेरा ही गन्दा,
सामाजिक निर्णय है गज़ब।

जबसे होश संभाला है,
कोई इज़्ज़त बचाने वाला है।
पहरेदारी करते हैं पर
बाकी रखवालों से डर ते है।

मैं भ्रमित, चकित सी रहती हूँ,
आपबीती ना कहती हूँ,
क्यूंकी अनसुना कर देते हैं,
फिर सड़क पर मोर्चा निकाल लेते हैं।

सहम जाने को तहज़ीब कहके,
सुशील, संस्कारी मानते हैं।
पलटवार कर देने पर,
वैश्या है वो, जानते है।

समाज की पाबंदियों का गहना हमने पहना है,
बगावत करने वालो को तो,
पीड़ा और ज़ख्म सहना है।

मेरी तबाही और मौत पर,
मोमबत्ती जलाना अब छोड़ दो,
थक गयी मै आंसू बहा कर,
तुम जुलुस का रुख मोड़ लो।

अब समझ में आया मुझको
सीता जी का पाताल प्रवेश।
औरत होने की कीमत है,
बस नफरत, हिंसा और द्वेष।

घुट रही मेरी साँसे,
इच्छाओं का कोई पता ही नहीं,
कोख में मार डालो अब क्यूंकी,
इंसानियत की कोई सतह ही नहीं।

डूब गयी है फितरत तेरी,
मर्दानगी के अंधे कुएं में,
राख बिछी है बेटियों की,
घुटन है शमशानी धुंवे में।

मूल चित्र : Pranav Kumar Jain via Unsplash

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Indulekha Dutta

Small town girl with big size dreams !! Passionate about writing & biking. read more...

2 Posts | 5,871 Views
All Categories