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शानदार कामेडी हॉरर फिल्म रूही में सबसे अच्छी खूबी यह है कि इसमें चुड़ैल तो महिला ही है पर वह अपने स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में भी सचेत है।
लॉकडाउन के बाद साल के शुरूआत में कुछ फिल्मों ने थियेटर रिलीज़ करने का साहस दिखाया। परंतु लोगों ने थियेटरों का रूख पहले के तरह नहीं किया। एक बार फिर से बड़े पर्दे पर हॉरर कामेडी “रूही” ने साहस दिखाया और महाशिवरात्री के दिन रिलीज़ हुई। “रूही” लोगों को सिनेमाघरों में लाने कामयाब हो पाती है या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है।
चर्चित बेवसीरिज “पाताललोक” लिखने वाले हार्दिक मेहता ने अपने निर्देशन में मृगदीप सिंह लांबा और गौतम मेहरा की फनी वन लाइनर्स के भरोसे “रूही” की कहानी कहने की कोशिश की है। फनी वन लाइनर्स और अभिनेताओं की कामेडी टाइमिग, जहां मनोरंजन करते है, फिल्म का हॉरर, अच्छी सेमोनेटोग्राफी और साउंड के बाद भी निराश करता है।
शानदार कामेडी हॉरर कहानी में सबसे अच्छी खूबी यह है कि इसमें चुड़ैल तो महिला ही है पर वह अपने स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में भी सचेत है। जिस रूही के शरीर पर आफजा का कब्जा है वह कहती भी है मैंने तुम्हें दुनिया से लड़ने की ताकत दी है नहीं तो तुम थी ही क्या?
जब शहर के सारी लड़कियों के नसीब में पकउवा शादी मजबूरी है क्योंकि समाज ने उसको स्वीकार कर लिया है। तब एक आत्मा की लड़की से उसके स्वतंत्र अस्तित्व की बात करना क्या नायाब और अनूठा नहीं है? मेरे हिसाब से बेमिसाल है खासकर उस दौर में जब हम जानते है कि पूरे कोरोनाकाल में बाल विवाह का रिकार्ड अपने देश में ही नहीं कई विकासशील देशों में बढ़ा है।
उत्तर भारत के कई इलाकों में पकऊवा शादी लंबे समय से चलन में है जहां लड़को को किडनैप करके उसकी शादी करवा दी जाती है। “रूही” की कहानी में थोड़ा उलटा है, बागड़पुर शहर में भंवरा पांडेय (राजकुमार राव) और कतन्नी (वरूण शर्मा) लोकल न्यूजपेपर में रिपोर्टर कम किडनैंपिंग करते हैं। दोनों शहर के एक उठाईगिरे के लिए लड़कियों को किडनैप करके उसकी शादियां करवाते है। बागड़पुर शहर के लोग इस चलन से आम हो चुके है उनको कोई समस्या नहीं है।
इसी काम में भंवरा और कतन्नी रूही को किडनैप करते है जो दोनों को एक आम लड़की लगती है। जब पता चलता है कि उसके शरीर पर अफजा की आत्मा का कब्जा है तो अफजा से कतन्नी और रूही से भंवरा को प्रेम हो जाता है। उसके बाद तीनों का त्रिकोण प्रेम, रूही के शरीर से अफजा के मुक्ति के लिए दोनों दोस्त आपस में भिड़ते भी हैं और दोनों एक-दूसरे के प्रेम को पाने के लिए सहयोग भी देते हैं।
रूही को आफजा से मुक्ति मिलती है या नहीं? दोनों में किसका प्यार सफल होता है ये जानने के लिए आपको यह हल्की-फुल्की हॉरर कामेडी देखनी होगी।
फिल्म रूही में सारा कमाल अच्छे डायलॉग अदायगी जो हंसाती है, का ही है। जिसमें वरूण शर्मा और राजकुमार राव अपने कॉमिक टाइमिंग में जमें भी है। राजकुमार अपने अभिनय में संतुलन रखने का प्रयास किया है। रूही और आफजा का चरित्र निभाने वाली जाह्नवी कपूर अपने हाल में चर्चित फिल्मों के सामने निराश करती हैं। उनके अभिनय के सफर की शुरुआत है इसलिए उम्मीद हैं वे आगे और बेहतर करेंगी।
फिल्म रूही में मध्यांतर के पहले कहानी बांधे रखती है। उसके बाद फिल्म अपनी कहानी में फंसी हुई लगती है। कहीं न कहीं “रूही” राजकुमार राव के “स्त्री” का बोझ अपने कंधे पर ढ़ोए हुए दिखती है। अपने कुछ नयेपन के बाद भी वह “स्त्री” के साये से बाहर नहीं निकल पाती है।
यही ‘रूही’ का सबसे बड़ा बैकड्रॉप है। दूसरा ‘रूही कॉमेडी जितना अधिक मनोरंजन करती है उसका हॉरर जरा भी प्रभावी नहीं लगता है। यह सारी चीज कहानी के नयेपन पर हावी हो जाती है जो यह है कि चुड़ैल से भी किसी को प्रेम हो सकता है।
दूसरा नयापन यह है कि रूही जिसके शरीर पर अफज़ा की आत्मा का कब्जा है, दोनों ही अपने प्रेम से इतर अपना स्वतंत्र जीवन की तलाश करती है। वह अपने प्रेमियों के “पलट” के टोटके में फंसती नहीं है आगे बढ़ जाती हैं। आमतौर पर हॉरर कहानियों में आत्मा भगाने और आत्मा मुक्ति की बात होती है जिसमें अक्सर भूत का अभिनय करने वाला केवल आड़ी-तेढ़ी शक्ले बनाता रहता है। रूही में यह सब नहीं है।
मूल चित्र : Screenshots of film Roohi
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