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इन पहली लेडी ड्राइवर का संदेश है- आओ! अपना दायरा तोड़ें

इन पहली लेडी ड्राइवर ने जब दुनिया को चौंका दिया तो, देश की न जाने कितनी ही महिलाओं के लिए संदेश दे दिया था, “आओ! अपना दायरा तोड़ें...”

इन पहली लेडी ड्राइवर ने जब दुनिया को चौंका दिया तो, देश की न जाने कितनी ही महिलाओं के लिए संदेश दे दिया था, “आओ! अपना दायरा तोड़ें…”

समाज, घर-परिवार, संस्कार, संस्कृत्ति और सामाजिक महौल को देखते हुए समझदारी भरे निर्णय लेना महिलाओं के व्यक्तित्व से सुई-धागे के तरह नथ्थी किया हुआ है।

इस साल विश्व महिला दिवस का ग्लोबल थीम स्त्रियों का नेतृत्व : कोविड के दौर में समान भविष्य का निमार्ण, जिसका मुख्य उद्देश्य, सामाजिक जीवन में औरतों द्दारा बराबर निर्णय ले पाना, लैंगिक समानता के लिए हर तरह की हिंसा का खात्मा और महिलाओं का सशक्तिकरण है।

अपने देश में महिलाओं के लिए घर के देहरी को लांघ कर सड़कों पर निकलना कभी आसान नहीं रहा है। पर आधी-आबाधी के कुछ महिलाओं ने सड़को पर अपने हौसले से वाहनों का चक्का दौड़ाया वह कई महिलाओं के लिए मिसाल बन गया।

इस महिला दिवस पर उन पहली लेडी यानी महिला ड्राइवर को याद करते हैं जिन्होंने सड़कों पर निकलकर न सिर्फ अपने लिए दायरों को तोड़ा, बल्कि अपने वक्त में वे आगे रहीं और दूसरी महिलाओं को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया और संदेश दिया – आओ दायरा तोड़ें…

पहली बाइक टैक्सी ड्राइवर – थुम्पा बर्मन

ट्रैक्सी ड्राइंविंग हमेशा से ही पुरुषों का काम माना गया है। मात्र 21 वर्ष की युवा थुम्पा बर्मन ने बाइक टैक्सी ड्राइविंग प्रोफेशन में जेंडर गैप को कम तो किया है, कितनी ही लड़कियों के लिए नए अवसर के दरवाजे भी खोल दिए।

जयपुर निवासी थुम्मा परिवार के आर्थिक स्थिति बिगड़ने के बाद दिल्ली आईं। अपनी 12 की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले कार फिर स्कूटी चलाने की ट्रेनिंग ली। जब एक ड्राइविंग कंपनी ने स्कूटी ड्राइविग के काम के लिए उन्हें आफर किया, जो उन्हें दिल्ली के झंडेवलान और करोलबाग में करना था, तो थुम्पा ने काम शुरू कर दिया। पहले लोग अजीब नज़रों से देखते थे पर पहले उनकी मां ने बाद में पैसेज़रों ने भी हौसला बढ़ाया और हिम्मत दी।

थुम्पा आज कमोबेश चार-पांच साल से यह काम कर रही हैं। वह कहती हैं, “हम महिलाओं के लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं है। हमें ज़रूरत है तो बस अपने दायरों को तोड़ने की और अपने ऊपर विश्वास करने की।”

थुम्पा ने न केवल अपने साथ सफ़र करने वाली महिलाओं को बेहतर और सुरक्षित राइडिग दे रही हैं, बल्कि अपने साथ-साथ ड्राइविग प्रोफेशन में औरतों के रोजगार के रास्तों को भी नई राह दिखा रही हैं।

आज दिल्ली के कई इलाकों में महिलाएं इलेक्ट्रानिक रिक्शा भी चला रही हैं। यह थुम्पा बर्मन के दायरा तोड़ने की मिसाल है जो आधी-आबादी के लिए प्रेरणा का काम किया।

पहली लेडी एंबुलेंस ड्राइवर – एम.वीरालक्ष्मी

एम.वीरालक्ष्मी तमिलनाडु में एंबुलेंस ड्राइवर के तौर पर पहली महिला है। उन्हें डायल 108 एंबुलेंस सेवा का ड्राइवर नियुक्त किया गया है जो आपात सेवा को मजबूत बनाने की कवायद है। डायल 108 एंबुलेंस सेवा एक लाइफ सेविंग मेडिकल डिवाइस सेवा है जिसमें जीवन रक्षक सुविधाओं के साथ लैस किया गया है जिसकी जरूरत अधिकांश मरीजों को आपात स्थिति में होती है।

एम.वीरालक्ष्मी ने ड्राइविंग लाइसेंस 2015 में लेने के बाद चार-पहिया वाहन चलाना शुरु कर दिया था। कुछ सालों तक उन्होंने टैक्सी भी चलाई। वह कहती हैं कि “एक ड्राइवर होने के नाते, मुझे सड़क का कोई डर नहीं है। लेकिन मैं केवल आय के लिए गाड़ी नहीं चलाना चाहती थी। मैं किसी भी तरह लोगों की सेवा करना चाहती थी, इसलिए एम्बुलेंस चालक बनना चाहती थी। परंतु, यह काम अभी तक पुरुष ही करते थे। मुझे आश्चर्य हुआ पर मैंने अपना आवेदन डाल दिया।

मुझे नहीं विश्वास था कि मुझे इस जिम्मेदारी वाले काम के लिए चुना जाएगा। एंबुलेंस चालक की जिम्मेदारी मिलने के बाद मुझे काफी खुशी हुई। वैसे भी जब महिलाएं प्लेन चला सकती हैं, ट्रेन-मेट्रो चला सकती हैं, कार-बाइक चला सकती हैं। तो थोड़ी सी नर्स की ट्रेनिग मिल जाए तो एंबुलेंस क्यों नहीं चला सकतीं? यह सब बकवास बात है कि महिलाएं एंबुलेस नहीं चला सकतीं। अभी तक किसी को मौका नहीं मिला इसलिए वह नहीं चला सकीं। मेरे बाद अगर और भी महिलाओं को यह मौका मिलेगा तो वो भी जरूर एंबुलेंस चला सकेंगी।”

पहली लेडी ट्रक ड्राइवर – योगिता रघुवंशी

ट्रक चालक, सुनते हम ज़हन में सोच भी नहीं सकते, कोई महिला यह काम कर सकती है। दस पहियों और 73 टन वजनी मल्टी एक्सल ट्रक चलाकर योगिता रघुवंशी उस मान्यता को तोड़ रही हैं। यही नहीं वह देश की पहली पढ़ी-लिखी लेडी ट्रक ड्राइवर हैं।

योगिता ने यह काम अपना शौक पूरा करने के लिए नहीं किया। साल 2003 में एक सड़क हादसे में पति के निधन के बाद दो बच्चों की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए यह काम शुरू किया। वकालत की पढ़ाई से उनकी उतनी आय हो नहीं रही थी। परिवार पालने के लिए उन्होंने बुटिक का काम भी शुरू किया पर आय में कोई खास फर्क नहीं आया इसलिए दोनों बच्चों के बेहतर लालन-पालन के लिए योगिता ने ट्रक चलाने का फैसला किया।

इस काम से रोजाना दो-तीन हजार की कमाई हो जाने की संभावना भी थी। योगिता कहती हैं कि उनके लिए यह आसान फैसला कतई नहीं था पर हार मानने का विकल्प भी उनके पास नहीं था। रात भर ट्रक चलाना, माल लादना, महिला होने के नाते नहाने की सुविधा न होना और सुरक्षा का भी खतरा इन तमाम  मुश्किलों ने भी योगिता का हौसला डिगने नहीं दिया।

योगिता कहती हैं, “ट्रक चलाना उनको कभी चुनौतिपूर्ण नहीं लगा, न ही इस बात की फिक्र की दूसरे मेरे बारे में क्या सोचते हैं? जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए मुझे इस दायरे को तोड़ना था, सो तमाम दुश्वारियों के बाद भी मैंने ये दायरा तोड़ दिया।”

पहली महिला बस चालक – वसंत कुमारी

वसंत ने जिस वक्त बस की स्टीयरिंग संभाला था उस वक्त महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अकेले सफर करने से डरा करती थीं। वसंत अपने इरादे में न झुकीं, न रुकीं, न हार मानी और एशिया की पहली बस ड्राईवर बनीं। ये वसंत का हौसला था जिसने धीरे-धीरे करके कई महिलाओं को हौसला दिया।

वसंत नब्बे के दशक में जब बस ड्राइवर के नौकरी के लिए आवेदन डाला था उस वक्त के अधिकारियों के इंटरव्यू याद करने बताती हैं, “जब मैंने नौकरी के लिए अप्लाई किया तो मुझसे अधिकारियों ने कहा कि विश्व में मुश्लिल से ही महिला या लेडी बस ड्राइवर्स हैं और आप पुरुषों के साथ अपनी नौकरी को कैसे मैनेज करेंगी?”

जिस वक्त वसंत ने यह नौकरी शुरू की उस समय डेस्क जॉब में कई महिलाएं थी पर बस ड्राइव करने वाली कोई महिला नहीं थी। बस चलाते हुए कई पुलिसकर्मियों, ट्रांसपोर्ट अधिकारी और पुरुष साथियों ने काफी सहयोग किया। जब लंबे रूट मिल जाता था तब थोड़ी तकलीफ बढ़ जाती थी।

आज जम्मू में पूजा देवी हो या दिल्ली में डीटीसी बस वलाने वाली वी.सरिता या मुबंई वेस्ट की बस चलाने वाली प्रतीक्षा दास सबों के लिए वसंत एक आदर्श हैं। वसंत ने अकेले साहस दिखाकर जो सफर शुरू किया आज कई महिलाएं उस सफर में शामिल हैं।

आज वसंत एक ड्राइविंग स्कूल फॉर विमन खोलना चाहती हैं जिसमें वह महिलाओं को सड़क पर चलने वाले हर वाहन चलाने कि ट्रेनिंग देना चाहती हैं।

पहली यात्री रेलगाड़ी चालक – सुरेखा यादव

भारतीय रेलवे के इतिहास में सुरेखा यादव आधी आबादी दुनिया के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। भारत ही नहीं, बल्कि एशिया की पहली यात्री रेलगाड़ी चलाने का गौरव सुरेखा यादव को हासिल है।

जब सुरेखा यादव ने यह कमान संभाली थी तो यह आसान सफर तो कतई नहीं रहा होगा। परंतु, तब से आज तक कमोबेश 50 से ज्यादा महिलाएं इस पेशे में आ चुकी हैं। इतना ही नहीं, सुरेखा से सार्वजनिक वाहनों में महिला सुरक्षा को बढ़ाने के दिशा में जो सुझाव भी दिए हैं जिसकी अपनी महत्ती भूमिकाएं रही है।

महिला यात्रिओं को ईव टींजिंग और छेड़छाड़ का शिकार होते देखकर सुरेखा यादव के सुझाव से आज मेट्रों, महानगरों के लोकल ट्रेनों में पहला डिब्बा महिलाओं के लिए और कई महानगरों में विमन ओनली बसें चल रही है।

मुंबई की पहली “लेडीज स्पेशल” ट्रेन चलाने का गौरव भी सुरेखा यादव के पास है। उनके इस शुरुआती सफर में उनकी मां का सहयोग किया। सुरेखा यादव ने रेलवे ड्राइवर के अपने इंटरव्यू में कहा था, “ट्रेन तो एक मशीन है,उसे नहीं पता होता है कि उसके पीछे कौन बैठा है। ये समाज द्दारा विभाजित किए गए काम महिलाओं को हमेशा कम आंकते रहे है।”

इन पहली लेडी ड्राइवर ने जब दुनिया को चौंका दिया तो, देश की न जाने कितनी ही महिलाओं के लिए संदेश दे दिया था, “आओ! अपना दायरा तोड़ें…”

मूल चित्र : Submitted by Author/YouTube

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