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ऐसा नहीं बोलते हर्ष वो तुम्हारे पापा हैं और आपको मम्मी-पापा के बीच में नहीं बोलना है और ये सब किसी को नहीं बताना है, वरना...
ऐसा नहीं बोलते हर्ष वो तुम्हारे पापा हैं और आपको मम्मी-पापा के बीच में नहीं बोलना है और ये सब किसी को नहीं बताना है, वरना…
चेतावनी : इस कहानी में घरेलू हिंसा का विवरण हैं जो आपको परेशान कर सकता है
“तू ऐसे नहीं मानेगी, जब तक तुझे अच्छे से बेल्ट से ना मारूं कोई बात समझ नहीं आती। ये ले और ले…आज तो तेरी खाल उधेड़ दूंगा।”
दस वर्षीय हर्ष अपनी मां अल्पना को मार खाते देख वहीं जड़वत हो गया। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वैसे तो ये हर रोज़ की बात थी ये पर आज कुछ ज़्यादा ही हो रहा था आशुतोष के बेरहमी से पीट कर जाने के बाद हर्ष दौड़ता हुआ अपनी मां से चिपक गया।
“मां! पापा कितने गंदे हैं वो आपको बहुत पीटते हैं। मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तो मैं भी उनको पीटूंगा।”
“ऐसा नहीं बोलते हर्ष वो तुम्हारे पापा है और आपको मम्मी पापा के बीच में नहीं बोलना है। याद है ना आपको मम्मी ने क्या बोला था कोई भी आए बाहर का या घर का भी उसे ये सब नहीं बताना है। वरना मम्मी आपसे कभी बात नहीं करेगी।”
“हां मम्मी! मैं किसी को भी नहीं बोलूंगा…आप जल्दी से ठीक हो जाओ मम्मी।”
आशुतोष और अल्पना की लड़ाई का रोज़ का था। आशुतोष की ग़लत संगत की वजह से उसका घर पीकर आना अल्पना को खलता था। उसके विद्रोह के परिणाम का अंत उसके शरीर पर बने जख्मों के निशानों को देखकर पता लगाया जा सकता था।
अल्पना ये आस लगाए बैठी थी कि शायद एक दिन सब ठीक हो जाए। पर ये आस ही थी। आशुतोष जैसे मर्द अगर इतनी आसानी से सुधर जाएं तो बात ही क्या थी।
हर्ष के स्कूल में पैरेंट्स टीचर मीटिंग थी तो अल्पना ने आशुतोष से भी चलने का आग्रह किया।
“देखो अल्पना! इन फालतू की चीज़ों के लिए मेरे पास समय नहीं। तुम खुद जाओ और देखो उसके स्कूल का और हां सुबह-सुबह मेरा दिमाग मत ख़राब किया करो। मेरे पास और भी कई काम है करने को, बेवकूफ औरत।”
तभी आशुतोष का फ़ोन बजता है। दूसरी तरफ से उसका कोई दोस्त रात की पार्टी का प्लान बताता है और आशुतोष चहकता हुआ हां कर देता है।
अल्पना ये सब सुन रही थी पर मजाल है जो वो बोले और आशुतोष उसकी बात मान ले। कितनी बार सोचा सब कुछ छोड़कर चली जाए पर हर्ष का चेहरा आंखों के सामने आते ही विद्रोह की भावना ठंडी पड़ जाती थी।
इधर मीटिंग के लिए स्कूल जाने पर हर्ष की टीचर ने जो बताया उससे अल्पना गहन चिंतन में पड़ गई।
“मिसेज़ दीक्षित आजकल हर्ष कुछ डरा सा रहता है। अगर कुछ पूछो तो रोने लगता है और पढ़ाई का तो पूछिए ही मत, पता नहीं कहां ध्यान रहता है। वैसे अगले महीने सेल्फ डिफेंस की क्लासेज शुरू हो रहीं हों सके तो हर्ष को भी भेजना आप।”
अल्पना को सब पता था पर हर्ष को लेकर वो काफी संजीदा थी। बच्चे की पढ़ाई पर असर कौन मां झेलती है। उसने हर्ष की पढ़ाई पर और ध्यान देना शुरू किया और साथ ही उसे सेल्फ डिफेंस की क्लास भी शुरू करा दी।
पहले दिन की क्लास में ही हर्ष के मस्तिष्क पर गहरा असर छोड़ा। उसके सर के बताए शब्द गूंज रहे थे – “प्रताड़ित करने से प्रताड़ना झेलने वाला भी गुनहगार होता है। साथ ही ऐसे हर व्यक्ति की हर संभव मदद करें जो किसी समस्या में फंसा हो। आपकी एक मदद किसी के जीवन को सुधार सकती है।”
घर आकर हर्ष ने अपनी मम्मी को भी यही बोला, “मम्मी आप क्यूं झेलती हैं ये सब। क्यूं नहीं किसी की सहायता लेती हैं? अगर किसी की सहायता से कुछ सही हो सकता है तो ज़रूर लें।@
अल्पना ने हर्ष की बातों पर गौर किया और अपनी बहन से मदद मांगी। उसकी बहन और घर वालों ने आशूतोष से बात की पर नतीजा सिफर निकला। अंततः अल्पना ने मन बना लिया आशूतोष को छोड़कर अपना अलग रहने का। इधर तलाक का नोटिस देकर अल्पना अब काफी हल्का महसूस कर रही थी।
उसे अपने बच्चे की दी हुई सीख आज समझ आ रही थी। जो कदम वो डर कर नहीं उठा पा रही थी वो हर्ष के जादू भरे शब्दों ने असर दिखा दिए थे।
अल्पना ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था तो धीरे-धीरे अपनी आजीविका के लिए उसने अपने को सशक्त बनाते हुए नौकरी शुरू की और आज वो स्वतंत्र रूप से अपने घर को चला रही।
सखियों! कई महिलाएं सिर्फ इस उसमें ज़िंदगी निकाल देती हैं कि शायद आने वाले वक्त में सब सही हो जाएगा और इस भ्रम में वो खुद कितना शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ना झेलती हैं, ये उनसे अच्छा कोई नहीं जानता। इसलिए कदम उठाएँ अपने लिए, अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट के लिए। आपको भी स्वतंत्र रूप से जीने का उतना ही हक है।
किसी के द्वारा शारीरिक दंश झेलना ही उपाय नहीं है। इसलिए मूक-बधिर ना बनके समय रहते आवाज़ उठाएं और यदि आपके आसपास ऐसा होते देख रहे तो कृपया तमाशा ना देखें। किसी की जिंदगी बचाकर आप समाज को संदेश दें।
मूल चित्र : Still from the Short Film, Sparsh, YouTube
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