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हवा में फैलती है एक सुनहरी लहर, एक उजली चादर, सुबह की जमे हुए कुहासे को निगलती। जाड़े के धुएं को समेटती...
हवा में फैलती है एक सुनहरी लहर, एक उजली चादर, सुबह की जमे हुए कुहासे को निगलती। जाड़े के धुएं को समेटती…
हुस्न पहाड़ों काक्या कहना,कि बारहों महीनेयहाँ मौसम जाड़ों का
भीनी सी सुबह में,कुमाऊँ हिमालय के चट्टानों सेसूरज की लालिमा उभरती है,एक भोर की धूप उगती है,
तो मानो जमी हुयी चोटी,कुछ कसमसा के पिघलती है,लजाती हुयी पानी पानी सीझरनों में फूटती है।
ठंडा कलरव करता जलसरजू में आकर समाता है,ज्यों ज्यों दिन चढ़ता है,प्रवाह उत्तेजित होती जाती है।
झाग वाला मीठा रसनदी के उफान में हिचकोले खाता पानी,और किनारे भीगते सुडौल, मुलायम फिर भी सख्त पत्थरनिर्मल नीर में डूबते, तैरते हमराही
हवा में फैलती है एक सुनहरी लहरएक उजली चादर, सुबह कीजमे हुए कुहासे को निगलतीजाड़े के धुएं को समेटती
आहा! अब सब कुछ साफ़ दिखता हैचितचोर है ये दृश्यनीला और हरा, चमकदार और सुरीलाजैसी रागिनी सर्द बयार पे सवारगुलाबी सी शर्माती हो
सनोबर और देवदार के वृक्षक्या लच्छेदार हरी छठा बिखेरते हैंसुर्ख खड़े हैं लम्बी कद काठी मेंअपनी महफूज़ शाल ओढ़ेसर्द मौसम में खिले हुए
ये तिरछी रेखाएं देखते होइस मनोरम से परिदृश्य मेंयही तो है कुमाऊँ घाटीउभरती टहलती खिलखिलाती उछलती
ये पगडंडियां हैं पहाड़ों कीबादलों की परछाई इन्हे सींचती हैबूढ़ी के बाल से बादलजी चाहता है एक ठंडा टुकड़ा निगल जाऊं
और ये खुला नीला आकाशये तो पहाड़ों का ही प्रतिबिम्ब हैकौन रंग रौग़न करता है ऐसी?कि एक परत चढ़ जाती है निरालेपन की
पहाड़ों की पुरबाई, ये पानी की रवानगीये सर्दी के मरहमी धूप, एक रस भरा आलिंगनये प्राकृतिक छटा, एक मोहिनी सी धुनहै एक सम्मोहन, एक ठंडा मीठा ख्वाबएक नरम ऊनी स्वेटर, एक लिहाफों की शाम
हुस्न पहाड़ों काक्या कहनाकि बारहों महीनेयहाँ मौसम जाड़ों का।
मूल चित्र : Unsplash
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