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जब याद आती है मां…

जेठ की दोपहर में, छांव को तलाशती हूं, जब जिंदगी की ठोकरों में, खुद को संभालती हूं, जब जली रोटी देखती हूं, तब याद आती है मुझे मां।

जेठ की दोपहर में, छांव को तलाशती हूं, जब जिंदगी की ठोकरों में, खुद को संभालती हूं, जब जली रोटी देखती हूं, तब याद आती है मुझे मां।

जब जली रोटी,
अधपके चावल को देखती हूं,
तब याद आती है मुझे मां।

जब बिस्तर के सिरहाने,
आंसुओं को समेटती हूं अकेली,
तब याद आती है मुझे मां।

जब बुखार से तपते बदन को,
ममता का स्पर्श याद करे,
तब याद आती है मुझे मां।

जब अजनबियों के बीच में,
अपनों को ढूंढती हूं,
तब याद आती है मुझे मां।

जेठ की दोपहर में,
छांव को तलाशती हूं,
तब याद आती है मुझे मां।

जब जिंदगी की ठोकरों में,
खुद को संभालती हूं,
तब याद आती है मुझे मां।

मूल चित्र : Still from Short film, Chutney, YouTube 

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