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लॉक डाउन के दौरान मैं बहुत से साहित्य प्रेमी जनों के संपर्क में आई और अनेक हिंदी लेखकों, कवियों व साहित्यकारों को जानने का अवसर मिला।
हमेशा जब आप किसी के सम्पर्क में अधिक आते हैं, तो उसका प्रभाव आपके व्यक्तित्व पर स्वतः पड़ने लगता है। शायद इसलिए भारतीय संस्कृति में संग या संगति का इतना महत्व बताया गया है। आजकल फ़ेसबुक की संगति में कुछ सकारात्मक बातें जो मैंने महसूस की- सबसे पहले, लोग एक दूसरे को देख कर साहित्य में रुचि लेने लगे हैं, पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित भी हो रहे हैं। तो सोशल मीडिया की भी सही संगति हो तो सब के लिए बेहतर है।
कबीर दास अपने इस दोहे में भी यही बात कहते हैं – “उजल बुन्द आकाश की, परि गयी भुमि बिकार माटी मिलि भई कीच सो बिन संगति भौउ छार”
सोशल मीडिया का आभार है कि उसके माध्यम से नई हिंदी किताबें और लेखकों को जानने का अवसर मिल रहा है और हिंदी किताबों को पढ़ने का जो सिलसिला समाप्त सा हो रहा था, फिर से आरंभ हुआ है।
किताबों से मतलब सिर्फ़ कोर्स की पुस्तकों से नहीं है। मुझे याद है कतर में अपने शुरुआती दिनों में अपनी पसंद की किताबों को मँगवाने या इंडिया से वापस आते समय उनको अपने सामान के साथ लाने के लिए कितनी परेशानी उठाई है।
जो लोग बाहर रहते हैं उन्हें अंदाज़ा होगा कि जब एक-एक सामान किलो तोल कर आता है। तब प्रायः कम ज़रूरत की चीजें निकाल दी जाती हैं। हालाँकि सब से झगड़ कर भी मेरी किताबें साथ आती रही और आगे भी आएँगी।
जब से मैं कतर आई मुझे लगता था कि आजकल लोग हिंदी किताबें नहीं पढ़ते। पर लॉक डाउन के दौरान मैं बहुत से साहित्य प्रेमी जनों के संपर्क में आई और अनेक हिंदी लेखकों, कवियों व साहित्यकारों को जानने का अवसर मिला है।
तभी से उम्मीद लगती है कि हिंदी साहित्य में भी सुअवसर हैं। लोग पुस्तकें लेते हैं और पढ़ते भी हैं। मैं तो यही प्रार्थना करती हूँ कि केवल हिंदी ही नहीं बल्कि सभी भारतीय भाषाओं की किताबें लिखी और पढ़ी जाती रहें।
मूल चित्र : via YouTube
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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