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आजकल कुंवारी लड़कियां मिलती ही कहाँ हैं?

रमन के तरह-तरह के विचित्र सवालों के बाद रमन ने संध्या से बड़ा ही विचित्र सवाल पूछा, "अच्छा, आप कुंवारी हैं कि नहीं?"

रमन के तरह-तरह के विचित्र सवालों के बाद रमन ने संध्या से बड़ा ही विचित्र सवाल पूछा, “अच्छा, आप कुंवारी हैं कि नहीं?”

“संध्या तू सुन भी रही है, मैं क्या बोल रही हूं? माँ हूँ, तेरे भले के लिए ही समझा रही हूं। हर चीज सही समय से ही अच्छी लगती है। तेरे पापा और मैंने तुझे कभी किसी काम को करने से नहीं रोका-टोका। अब तेरी बारी हमारी बात मानने की।

सुन बिटिया रमन बहुत अच्छा लड़का है। यहीं कानपुर में सीए है। अच्छा खासा पैसे वाला परिवार है। मेरी बात मान शादी के लिए हाँ कर दे”, संध्या की माँ सरला जी ने फोन पर बात करते हुए कहा।

“ठीक है माँ, जैसा आपको और पापा को ठीक लगे। लेकिन अभी तो घर नहीं आ पाऊंगी मैं, क्योंकि ऑफिस से छुट्टी अगले महीने के बाद ही मिल पाएगी”, संध्या ने कहा।

“फिर ठीक है बिटिया, अगले महीने की कोई तारीख रखकर उन्हें घर पर बुला लेते हैं। अब फोन रखती हूं, तू अपना ध्यान रखना।”

“ठीक है माँ।”

संध्या एक स्वतंत्र विचारों की आधुनिक परिवेश में पली-बढ़ी लड़की थी। वो मुंबई के एक मल्टीनेशनल कम्पनी में मैनेजर थी। संध्या के मम्मी-पापा ने अपने दोनों बच्चों में कभी कोई भेदभाव नहीं किया था। उन लोगों ने संध्या और उसके भाई दोनों को समान शिक्षा और अधिकार दिए थे। अगले महीने संध्या अपने घर कानपुर आयी। दो दिनों बाद संध्या को देखने रमन और उसके परिवार वाले भी आये।

औपचारिक बातचीत के बाद रमन के पापा ने कहा, “भाई साहब बुरा ना माने तो बच्चों को थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दिया जाए, वो भी आपस में कुछ पूछ ना चाहें तो पूछ लें एक-दूसरे से। आखिर जीवन तो उन्हें ही बिताना है एक साथ।”

“हाँ-हाँ, क्यों नहीं। आइये हम लोग बाहर चलते हैं”, संध्या के पापा ने कहा।

रमन ने मौका पाते संध्या से सवालों की बौछार शुरू कर दी। सवाल शुरू हुए, “संध्या जी आप कितने सालों से मुंबई में हैं?”

“जी चार साल से।”

रमन ने अगला सवाल किया, “शादी के बाद आपको नौकरी तो वहाँ की छोड़नी होगी क्योंकि अब शादी होने के बाद अलग रहना थोड़ा मुश्किल काम है। माँ-पापा की सेवा घर की जिम्मेदारी भी तो आपको देखनी करनी पड़ेगी ना। क्या कहती हैं आप?”

संध्या ने कुछ नहीं कहा।

रमन ने आगे कहा, “अच्छा छोड़िए। ये तो हर लड़की करती है, तो आप भी करेंगी ही। वैसे मेरी तरफ से कोई रोक-टोक नहीं रहेगी, बस मां-पापा को ध्यान में रखकर करिएगा सब कुछ कि उन्हें कोई तकलीफ ना हो।”

संध्या फिर भी चुप रही।

रमन के तरह-तरह के विचित्र सवालों के बाद रमन ने संध्या से बड़ा ही विचित्र और एक महिला को अपमानित करने वाला सवाल पूछा, “अच्छा आप कुंवारी हैं कि नहीं?”

संध्या ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, “मतलब?”

रमन ने कहा, “अरे, अब आप कोई बच्ची थोड़ी ना है जो बात को नहीं समझ रहीं। मेरा मतलब आप उतने बड़े मुंबई जैसे शहर में अकेली रहती हैं, तो कभी किसी के साथ…अब आप समझ तो गयी होंगी। बड़े शहरों में लड़का-लड़की माता-पिता से झूठ बोलकर लिव-इन में साथ रहते हैं। मेरा मतलब कि आप कुँवारी तो है ना?”

संध्या ने कहा, “हाँ हाँ, समझ गयी मैं आपकी बात को। नहीं, कुंवारी हूँ मैं।”

रमन ने इतना सुनते ही गहरी सांस ली और संध्या की बात बीच में काटते हुए कहा, “फिर तो सब बढ़िया। ये बात सुनकर बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि आजकल कुँवारी लड़कियां मिलती कहाँ हैं? बाकी तो भगवान की दया से कोई कमी है नहीं आप में – सुंदर हैं, कामकाजी हैं।”

तब तक संध्या और रमन के पापा वहाँ आ गए।

रमन के पापा ने पूछा, “और बेटा पूछ लिया जो पूछना था? तो कैसी लगी आपको संध्या?”

रमन ने कहा, “हाँ पापा मुझे संध्या पसंद है।”

इतना सुनते ही सब एक-दूसरे को बधाई देने लगे कि तभी बीच में संध्या ने कहा, “रमन आपने खुद तो सारे सवाल पूछ लिए लेकिन मुझे तो मौका ही नहीं दिया?

खैर, आपने पूछा था कि क्या मैं कुँवारी हूँ? तो क्या आप बता सकते है कि क्या आप कुंवारे हैं क्योंकि मैंने जब आपका एफबी एकाउंट खंगाला था तो पता चला कि आपके तो तीन-चार ब्रेकअप हुए हैं।”

इतना सुनते रमन की निगाहें झुक गयीं और वो गुस्से में  संध्या को घूरने लगा। तो रमन के पापा ने कहा, “ये कैसा बेहूदा सवाल है?”

संध्या ने कहा, “अंकल जी इसका जवाब तो आपको अपने बेटे से पूछना चाहिए क्योंकि शुरुआत तो इन्होंने ही की है। तो मिस्टर रमन दूसरी बात कोई शहर, जगह, स्थान या समय किसी महिला का चरित्र नहीं बता सकते। समझे आप?

और जिन पुरुषों को महिला के चरित्र के साफ होने का चरित्र प्रमाणपत्र चाहिए होता है, उस पुरूष को अपना भी चरित्र प्रमाणपत्र साथ लेकर चलना चाहिए। महिलाओं के बारे ऐसी ओछी सोच वाले रखने वाले इंसान से मुझे नहीं करनी शादी। अपनी इस गिरी हुई सोच के कारण मुझे नहीं पसंद आये आप और आपके महिलाओं के प्रति विचार। आपको पत्नी नहीं रोबोट चाहिए जो आपकी जी हुजूरी करे। माफ कीजियेगा लेकिन मैं नहीं कर सकती।”

ये कहकर  संध्या वहाँ से चली गयी।

प्रिय पाठकगण, उम्मीद करती हूँ कि मेरी ये रचना आप सबको पसन्द आएगी। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हुँ। कहानी का सार सिर्फ इतना है कि इस पुरूष प्रधान समाज मे पुरूष का चरित्र कितना भी खराब क्यों ना हो कोई उस पर उंगली नही उठाता, लेकिन वही बात अगर एक अकेली लड़की की हो तो वो कितनी भी शरीफ हो लेकिन लोग सवाल जरूर खड़ा कर देते हैं। लेकिन अब जरूरत है हम महिलाओं को इसका विरोध करने की और खुद अपने आत्मसम्मान के रक्षा करने की।

मूल चित्र : Still from Mehndi Hai Rachne Waali, YouTube 

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