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माँ आप पढ़ी-लिखी हो कर भी ऐसा कैसे कर सकती हैं?

बेबाक ख्यालों और औरतों की आवाज़ बनी नंदिनी बस अपने घर पर ही मात खाती है क्यूँकि माँ आज भी पुराने रिवाज़ों से बाहर निकल ही नहीं पा रहीं।

बेबाक ख्यालों और औरतों की आवाज़ बनी नंदिनी बस अपने घर पर ही मात खाती है क्यूँकि माँ आज भी पुराने रिवाज़ों से बाहर निकल ही नहीं पा रहीं।

“मां! ये क्या आज भी तुमने कपड़ा ही इस्तेमाल किया?”

“नहीं नंदिनी! वो तो तेरा दिया पैकेट नहीं मिला था तो…”, हेमा ने अपनी बेटी से नज़रें चुराते हुए कहा।

“मां साफ-साफ दिख रहा तुम्हारी आंखों में। क्यूं अपना शरीर खराब कर रही इन कपड़ों का प्रयोग कर के? कितनी बिमारियां और मौतें महिलाओं की इन गंदे कपड़ों के इस्तेमाल से होती हैं। फ़िर भी तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहीं?”

“अरे हां…हां…टीचर जी…समझ गई आपकी बातें। चल अब खाना तो खा ले”, नंदिनी की बातों से बचते हेमा ने बात काटी।

हेमा की बेटी नंदिनी एक स्कूल में अभी अध्यापिका के पद पर आई है। शुरू से ही बेबाक ख्यालों और औरतों की आवाज़ बनी नंदिनी बस अपने घर पर ही मात खाती है। हेमा आज भी उन पुराने रिवाज़ों से बाहर निकल ही नहीं पा रही। माहवारी के समय हर बार वही पुराने कपड़ों का प्रयोग करने की आदत सी पड़ चुकी है, जिससे मां-बेटी में हर बार की बहस होती है।

अगले दिन स्कूल निकलने से पहले नंदिनी अपनी मां के हाथों में सेनेटरी नेपकिन का पैकेट देकर जाती है। जिससे कम से कम मां आज तो कोई बहाना ना बनाए।

इधर स्कूल में नंदिनी अपनी क्लास में व्यस्त थी कि चपरासी ने बोला, “मैडम आपके घर से फ़ोन आया है। आपकी माता जी की तबियत खराब है फ़ौरन घर बुलाया है।”

आनन-फानन में नंदिनी घर पहुंचती है।

“ये क्या मां! आपके तो कपड़े खराब हैं…इतनी ब्लीडिंग?” नंदिनी अपनी मां को तुरंत डाक्टर के पास लेकर जाती है।

डाक्टर के परामर्श पर कुछ दिन के लिए हेमा जी को कुछ चेकअप और चिकित्सकीय इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता है।

हेमा को डाक्टर ने बोला, “आपकी बेटी तो खुद महिलाओं की जागरूकता अभियान से जुड़ी है और कितनी महिलाओं को उसने माहवारी से उत्पन्न होने वाली बिमारियों से अवगत कराया है।

गांवों में तो आज भी महिलाएं एक ही कपड़े का प्रयोग बार-बार करके बिमारियों का घर बना लेती हैं। आप तो पढ़ी-लिखी हैं उसके बाद भी कपड़े का प्रयोग करती हैं। एक ही कपड़े को कई बार इस्तेमाल करने से कितनी घातक बिमारियां होती हैं जैसे टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (टीएसएस)। इन जैसी बिमारियों से शरीर के कई अंग तक काम करने बंद हो जाते हैं।

आपकी बेटी ने कितना अच्छा सुझाव दिया था कि आप सेनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करें। जो कई बिमारियों को होने से रोकता है।”

“सच कहा डाक्टर कभी-कभी बच्चे भी बड़ों को जीवन की बड़ी सीख दे जाते हैं। अब से मैं इस बात का जरूर ख्याल रखूंगी और अपने साथ के लोगों को भी जागरूक करूंगी।”

दोस्तों! ये जीवन की सच्चाई भी है कि आज भी कई महिलाएं राख, कपड़े या ऐसे ही कई चीज़ों का प्रयोग करती हैं जो उनके शरीर को नुक्सान देता है। कारण जागरुकता का अभाव, गरीबी और सैनिटरी नै‍पकिन तक उनकी पहुंच न होना जिम्‍मेदार है। मेन्‍स्‍ट्रूअल हेल्‍थ और हाइजीन के बारे में जागरूकता फैलाने का काम में आप सभी महिलाएं अपना सहयोग दें।

कैसी लगी मेरी कहानी अपने विचार ज़रूर व्यक्त करें। 

मूल चित्र : Screenshot from short film Chupchaap, YouTube

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