कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

कौन थीं मीरा बहन जिन्हें 20वीं सदी की आधुनिक मीरा बाई कहते हैं?

मेडलीन स्लेड यानि मीरा बहन को भारत में कई लेखक मीरा बाई का दूसरा जन्म मानते हैं और उन्हें बीसवी सदी का मीरा बाई भी कहते हैं।

मेडलीन स्लेड यानि मीरा बहन को भारत में कई लेखक मीरा बाई का दूसरा जन्म मानते हैं और उन्हें बीसवी सदी का मीरा बाई भी कहते हैं।

सर एडमंड स्लेड ब्रिटिश नौ सेना के उच्च अधिकारी जो बबंई में नौसेना के ईस्ट इंडीज स्क्ववाड्रन में कमांडर इन चीफ के रूप में तैनात थे, उनके घर 22 नवबंर 1892 को एक लड़की पैदा होती है मैडेलीन स्लेड। विलासिता के परिवेश में उसका लालन-पालन होता है। बचपन में प्रकृत्ति और संगीत से उसका लगाव भावनात्मक रूप से होता है। बीथोवन के संगीत मैडेलीन को आध्यात्मिक सुख मिलता है। विवाह में उनकी कभी कोई दिलचस्पी नहीं होती इसलिए अपना हाथ मांगने वाले लड़को को वो ना कह देती है। अपना अधिक समय वह घर के फार्म पर बिताती, घुड़सवारी और शिकार पर जाया करती।

बीथोवेन के जीवन पर आधारित रोम्यां रोलां की पुस्तक “ज्यां क्रिस्टोफर” को अंग्रेजी में पढ़ने के बाद उसका मूल फ्रेंच में पढ़ने के लिए वह फ्रेंच सीखने पेरिस आ जाती है। यही उनकी मुलाकात रोम्यां रोलां से होती है जो मैडेलीन में गहरी आध्यात्मिक भूख देखते हुए गांधीजी के बारे में पढ़ने को कहती है। वह पेरिस से वापस आकर गांधीजी पर लिखी हर साहित्य को पढ़ती है और प्रभावित होकर गांधीजी के साथ रहने की अभीप्सा जाग उठती है। वह सादा जीवन जीना शुरू कर देती है। शिकार, मांस, मदिरा सब छोड़ देती है और अपने कमरे के सारे फर्नीचर निकाल कर फर्श पर सोने लगती है।

फिर वह गांधीजी को पत्र लिखती है। उत्तर में गांधीजी लिखते है कि यदि वर्ष के अंत में उनको गांधीजी के साथ रहने की इच्छा होती है तो वे आ सकती है। मेडलीन भारत आने का टिकट खरीद लेती है और 25 अक्टूबर 1925  को पी एंड ओ जहाज पर सवार होकर बंबई 6 नवबंर 1925 को पहुंचती है। गांधीजी उनके स्वागत के लिए वल्लवभाई पटेल, महादेव देसाई और स्वामी आंनद को भेजते हैं। 7 नवंबर 1925  को मेडलीन महात्मा गांधी से मिलती है और वे मीरा बहन हो जाती हैं। भारत में मेडलीन स्लेड को अभी मीरा बहन के नाम से ही जानते हैं।

मीरा बहन अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी से अपनी पहली मुलाकात के बारे में लिखती हैं

अपनी आत्मकथा “द स्पिरिट्स पिलग्रिमेज” में महात्मा गांधी से अपनी पहली मुलाकात के बारे में वे लिखती हैं कि “उस समय मैं अपनी भौतिक अस्तित्व की चेतना खो चुकी थी। समूचा ध्यान इस विचार पर केंद्रित हो चुका था कि क्या होने वाला है। एक अथवा दो मिनट के भीतर कार एक इमली के एक बड़े वृक्ष के नीचे जा थमी। हम लोग उतरे और एक संकरे ईटों से बने रास्ते पर चल पड़े जो सीताफल के बाग से गुजरता था।

फिर एक छोटे से बगीचे से होते हुए एक अहाते में पहुंचे तो एक सादी इमारत खड़ी थी। जैसे मैं भीतर घुसी एक पतला-दुबला गेहुंर रंग का एक व्यक्ति उठा और मेरी ओर आगे बढ़ा। एक ज्योंति के अतिरिक्त मुझे और किसी वस्तु की चेतना न थी। मैं घुटनों के बल झुकी। हाथों ने धीरे से मुझे उठाया और आवाज ने कहा, “तुम मेरी बेटी बनकर रहोगी- अब मेरी चेतना लौट रही थी।” हां ये महात्मा गांधी थे और मैं अपने लक्ष्य तक पहंच चुकी थी।”

मीरा बहन ने सारे समान हटवाकर फर्श पर सोने का निश्चिय किया

आश्रम में मीरा बहन के लिए तमाम सुविधाओं का ध्यान रखते हुए एक अलग कमरा तैयार किया गया था। मीरा बहन ने सारे समान हटवाकर फर्श पर सोने का निश्चिय किया। उसके बाद गांधीजी से उन्होंने हिंदी, कपास की धुनाई-कताई सब सीखा। वह गोलमेज सम्मेलनों में अग्रेजों से बात करने की संपर्क सूत्र भी बनी। वे मीरा बहन ही थी जो गांधीजी के जेल प्रवास के दौरान देश भर में सरकारी आतंक के बारे में रिपोर्ट  विदेशी राज्यों को भेजती थी।

भारतीय अखबारों पर उस दौर में प्रतिबंध था इसलिए वह यहां प्रकाशित नहीं होते थे। इस कार्य के लिए उन्हें भी गिरफ्तार किया गया और जेल से छूटने के बाद बबंई प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। महात्मा गांधी के साथ वे इंग्लैड और अमेरिका यात्रा पर साथ रही हैलीफ्रैक्स, होर, स्मट्स तथा चर्चिल के सामने गांधीजी का पक्ष उन्होंने ही रखा।

मीरा बहन ने गांधीजी के निजी सेवाओं की सारी जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले लिया था। उन्होंने खान अब्दुल गफ्फार के साथ उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में भी पठानों के बीच रहकर काम किया। जब गांधीजी पुणे के आगा खान महल में नज़रबंद कर दिए गए। तब अंतिम संघर्ष टालने के लिए वह बापू और वायसराय के बीच संपर्क सूत्र बनी।

भारत सरकार ने 1981 में उन्हें पद्मविभूषण प्रदान किया

आगा खान महल के कैद से मुक्ति मिलने के बाद मीरा बहन ने रुड़की और हरिद्दार में “किसान आश्रम” की स्थापना की, बाद में श्रृषिकेश के समीप “पशुलोक” नाम से भी एक आश्रम का शुरुआत किया। आजादी के बाद उन्हें कश्मीर बख्शी गुलाम अहमद ने बुलाया वहां सरकारी अधिकारियों से उन्हें अधिक सहयोग नहीं मिला और 1959 में उन्होंने भारत छोड़ दिया।

भारत सरकार ने 1981 में उन्हें पद्मविभूषण प्रदान किया। मीरा बहन इस उपाधि को लेने भारत नहीं आ सकी। वियाना में भारतीय राजदूत ने स्वयं उनके पास गए। उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया। 20 जुलाई 1982 को उनकी मृत्यु हुई। भारत में कई लेखक मीरा बहन को मीरा बाई का दूसरा जन्म मानते हैं और उन्हें बीसवी सदी का मीरा बाई भी कहते हैं। भक्ति और आध्यात्म की साकार मूर्ति के रूप में मीरा बहन भारतीय महिला संघर्ष के इतिहास में दर्ज है।

ओथर्स नोट : इस लेख को लिखने के लिए सुशीला नैयर के संस्मरण और मीरा बहन की आत्मकथा “द स्पिरिट्स पिलग्रिमेज” से मदद ली गई है।

मूल चित्र : YouTube, gandhivichar.blogspot

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

240 Posts | 736,428 Views
All Categories