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महादेवी वर्मा: ‘निराला’ ने उन्हें हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती यूँ ही नहीं कहा

मेरे लिए महादेवी वर्मा की कविता में ये लाइन हमेशा से प्रेरणादायक रही है, “घर तिमीर में, उर तिमीर में, आ! सखि एक दीपक बार ली।”

मेरे लिए महादेवी वर्मा की कविता में ये लाइन हमेशा से प्रेरणादायक रही है, “घर तिमीर में, उर तिमीर में, आ! सखि एक दीपक बार ली।”

हिंदी साहित्य की महर्षी लेखिका महादेवी वर्मा उन विरले साहित्यकारों में से एक हैं जिन्होंने भाषा और शिल्प में नवाचार की बुनियाद रखी। साथ ही साथ महिलाओं के अंर्तमन की भवनाओं को अभिव्यक्ति ही नहीं दिया उसको वहां स्थापित किया, जिसकी आकांक्षा हर साहित्य रचना को होती है, पाठकों के सदा याद रखने वाली स्मृतियों और जीवन में।

हिंदी कविता में वेदना और करूणा के सहज़ अभिव्यक्ति के साथ महादेवी वर्मा आधुनिक मीरा के रूप में छायावादी कविताओं की प्रमुख हस्ताक्षर रही हैं। यह उनके साहित्यक सीमाओं का एक बांधने जैसा है, जो काफी विशाल है। जिन्होंने नारी अभिव्यक्ति में कभी यह लिखा “मैं नीर भरी दुख की बदली” तो कभी पिरोया “उमड़ती कल थी, मिट आज चली” तो कभी उन्होंने हर महिलाओं को कहा “आओं सखि! एक दीप बार ली।”

हिंदी साहित्य में जिस स्त्री विमर्श ने अपनी ऊंचाईयां तय की है, उसकी ज़मीन मजबूत करने का काम महादेवी ने अपने लेखन से ही किया। उन्होंने अगर “मधुर-मधुर मेरे दीपक जल” कहकर रहस्यवाद को अभिव्यक्ति दिया तो उन्होंने यह भी लिखा कि “तब बुला जाता मुझे उस पार” जो, दूर के संगीत-सा वह कौन है?

फर्रुखाबाद, उतरप्रदेश में वर्ष 26 मार्च 1907 को जन्म हुआ महादेवी वर्मा का। शिक्षा-प्रेमी पिता गोविन्द प्रसार वर्मा और माता श्रीमति हेमरानी वर्मा के घर पैदा हुई महादेवी वर्मा के लिए शिक्षा के प्रति लगाव स्वाभाविक था। उनके नाना ब्रजभाषा के अच्छे जानकार ही नहीं कवि भी थे। उन्होंने स्वतंत्र रूप से शब्दों की तुकबंदी मात्र सात वर्ष के उम्र में शुरू कर दिया।

उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा मां से ली और इंदौर में पढ़ाई शुरू हुई पर शादी के बाद शिक्षा रोकनी पड़ी। ससुर के निधन के बाद महादेवी ने पुन: शिक्षा शुरू की और हमेशा अव्वल रही। उन्होंने संस्कृत और दर्शन में अध्ययन किया। दर्शन की छाप उनकी रचनाओं में भी दिखता है।

पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित हैं महादेवी वर्मा

बादल और दीपक महादेवी के प्रिय प्रतीक रहे हैं। वे लिखती हैं – दीप इसे नीरव जलने दो। सरसता, संगीतात्मकता, संक्षिप्ता, चित्रात्मकता और नाद-सौदर्य उनकी कविताओं की अपनी विशेषता रही है। ‘जीवन विरह का जलजात’ मानने वाली रचनाकार महादेवी ने असीम सत्ता को आधार बनाकर उसके प्रति अपने प्रेम का निवेदन किया है।

दीपशिखा, सप्तपर्णा, हिमालय, अग्निरेखा आदि आपके अन्य चर्चित काव्य संग्रह रहे हैं। नीहार, रश्मि, नीरजा व संध्यगीत नामक से छायावादी काव्य संग्रहों की रचना की जो यामा नाम से छपा था जिसको सर्वश्रेष्ठ भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।

पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित महादेवी महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से महिला विद्यापीठ प्रयाग से जुड़ीं। ‘भारतीय नारी जिस दिन अपने संपूर्ण  प्राण-आवेग से जाग सके, उस दिन अपने संपूर्ण प्राण-आवेग उसकी गति रोकना किसी के लिए संभव नहीं।’ इस भूमिका के साथ उन्होंने स्त्री-जीवन की पीड़ाओं को समझकर उनके सशक्तिकरण के लिए ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ नाम से पुस्तक की रचना की।

उसके अधिकारों के संबंध में यह सत्य है कि वे भिक्षावृत्ति से न मिले हैं, न मिलेंगे, क्योंकि उनकी स्थिति आदान-प्रदान योग्य वस्तुओं से भिन्न हैं। समाज में व्यक्ति का सहयोग और विकास की दिशा में उसका उपयोग ही उसके अधिकार निश्चित करता रहता है। अधिकार के इच्छुक व्यक्ति को अधिकारी भी होना चाहिए।

सामान्यत: भारतीय नारी में इसी विशेषता का अभाव मिलेगा। कहीं उसमें साधारण दयनीयता और कही असाधरण विद्रोह है, परंतु संतुलन से उसका जीवन परिचित नहीं। महिलाओं को लेकर रचे गए उनके साहित्य के मूल्यांकन से यह स्पष्ट झलकता है।

वे कवि ह्रदय होने के साथ-साथ गद्य लेखिका भी थीं

हिंदी जगत में महादेवी का लेखन अपनी विराट छवि के लिए है। साहित्य के शायद ही कोई विधा हो जहां उन्होंने लेखन नहीं किया। वे कवि ह्रदय होने के साथ-साथ गद्य लेखिका भी थी। संस्मरण और रेखाचित्र लेखन के लिए भी वो अदभुद्द थीं। साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध लिखकर महदेवी ने आलोचनात्मक शक्ति का परिचय दिया।

घीसा, रामा, भक्तिन, चीनी फेरीवाला, पर्वतपुत्र, निराला भाई, दद्दा, गोरा और गिल्लू आदि इनकी प्रमुख कथेतर गद्य की रचनाएं हैं। तभी उन्हें “हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती” सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने कहा।

यहां सुनिए महादेवी वर्मा की आवाज़ में उनकी रिकॉर्डिंग 

महादेवी वर्मा के रचनाओं के जिज्ञासु पाठक के रूप में स्त्री विमर्श पर उनका लिखा गया साहित्य एक मार्गदशक के तरह है जो भटकने नहीं देती है हर स्त्रीस्वर और उनकी अभिव्यक्तियों। वे हमेशा स्त्री विमर्श के मूल को पहचाने के लिए बार-बार महादेवी वर्मा को पढ़ने के लिए मजबूर करता है। मेरे लिए महादेवी वर्मा की कविता में वह लाइन हमेशा से प्रेरणादायक रही हैं जिसमें वह लिखती हैं, “घर तिमीर में, उर तिमीर में, आ! सखि एक दीपक बार ली।”

मूल चित्र : Wikipedia

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