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घर संभालने के लिए केवल लड़की को ही क्यों सामने परोस दिया जाता है? लड़के के माता-पिता क्या लड़कों की जिम्मेदारी नहीं होते?
एक महिला हर एक कदम पर जज की जाती है, क्योंकि महिलाओं को जज करना, आज भी लोगों के लिए एक पसंदीदा टाइम पास है। कभी महिलाओं की फोटो देखकर उन्हें जज कर लिया, कभी उनकी शरीर की बनावट को देखकर उन्हें जज कर लिया, कभी वीडियो देखते हुए महिलाओं को देखकर अनेक ख्याल बना लिया। मतलब सीधा है कि समाज महिलाओं को जज किया जाता है।
समाज ने महिलाओं को जज करने का बेड़ा अपने सिर उठा लिया है। अगर कोई महिला पीरियड्स पर बात करती है, तब उसे बेशर्म कह दिया जाता है। यह बात कोई भी नहीं देखता कि एक महिला अगर पीरियड्स के मुद्दे पर अपनी राय रख रही है, अपनी परेशानी शेयर कर रही है, तब उसे प्रोत्साहित किया जाए ताकि अन्य महिलाएं भी अपने हिस्से की तकलीफ शेयर करें।
पीरियड्स के समय परेशानी होने पर केवल एक महिला ही समझ सकती है कि उसे किस तरह की पीड़ा महसूस हो रही है। पैड लेने से लेकर घर के कामों को करने में उसके अनुभव कैसे हैं? इसके बारे में भी खुलकर बात होने चाहिए मगर समाज चूंकि जज करने लगेगा इसलिए महिलाएं नहीं बोलती हैं। ऐसे भी महिलाओं को सुपर का दर्जा देकर समाज ने महिलाओं का शोषण करने का तरीका बहुत अच्छा निकाला है।
दूसरी ओर अगर एक महिला कंडोम या अन्य गर्भनिरोधक खरीदने जाती है, तब भी दुकानदार की आंखें महिला पर टिक जाती है। यहां कोई भी नहीं देखता कि एक महिला अनचाहे गर्भ से बचने के लिए सुरक्षा लेना चाहती है। अगर पति ने सुरक्षा नहीं ली, तब वह गर्भवती हो जाएगी और एक बच्चे को नौ माह तक उसे अपने अंदर रखना होगा। चूंकि गर्भ गिराने का हक भी महिलाओं को नहीं है। उन्हें केवल बच्चा पैदा करने की मशीन समझा देता है।
साथ ही अगर कोई नौजवान लड़की कंडोम, गर्भनिरोधक या प्रेगाकिट जैसी चीजें खरीदने जाए तब सबसे पहले लोग उसकी मांग को टटोलते हैं कि क्या लड़की की मांग में सिंदूर है? मतलब अगर महिला शादी शुदा है, तब भी उसे जज किया जाता है और अगर शादी शुदा ना हो, तब भी जज किया जाता है।
शादी के बाद प्रायः यह देखा जाता है कि महिलाओं को किचेन, घरवालों की सेवा का काम सौंप दिया जाता है। ऐसे भी आजकल कई घरों में शादी केवल इसलिए होती है ताकि लड़की आकर घर संभाल ले। लड़की के सपनों का क्या? लड़की के पढ़ाई का क्या? घर संभालने के लिए केवल लड़की को ही क्यों सामने परोस दिया जाता है? लड़के के माता-पिता क्या लड़कों की जिम्मेदारी नहीं होते?
अगर लड़की ऑफिस जाती है और घर में भी सब काम करती है, तब लड़के भी बराबरी करें और दोनों कामों को निभाए। हालांकि ऐसा बहुत कम देखा जाता है। लड़कियों को शादी मैटेरियल केवल घर के कामों को करने, बड़े बुजुर्गों की तिमारदारी करने, पति को खुश करने, एक साल बाद बच्चे अगर पोते हो जाए तब सोने पर सुहागा समझा जाता है। ऐसी लड़कियां समाज के लोग प्रेरणा सरीखी होती हैं।
वहीं अगर कोई लड़की अपना ट्रैक बदल दे और अपने मन की करने लगे, तब तो कुलटा, कुल नाशिनी, असंस्कारी और भी पता नहीं क्या क्या कह दिया जाता है।
यह तो कुछ ही उदाहरण हैं, जहां महिलाएं कठघरे में डाल दी जाती है। जज करने की आदत ख़तम नहीं होने वाली क्योंकि यह आज लोगों के लिए एक गॉसिप भी है और समय निकालने का माध्यम। महिलाएं अगर सही करें तब भी समाज को गलत ही लगेगा क्योंकि वह पुरुषों को महिलाओं पर हावी होना सिखाता है।
महिलाओं के लिए बेहतर यही होगा कि जब समाज उन्हें बेशर्म कहे तब असलियत में बेशर्मों की तरह ही पेश आया जाए ताकि अपने हिस्से की सांस बची रहे और अपने हिस्से का कोना भी।
मूल चित्र : Still from Bollywood movie Hum Saath Saath Hain
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