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मेरे पिता, मेरा अभिमान!

बाहर से सख्त अंदर से नर्म, वो मेरी हिम्मत, वो मेरा विश्वास, जिंदगी की दौड़ में बस भागते देखा मेरा पिता ही नहीं, तू है मेरा अभिमान।

बाहर से सख्त अंदर से नर्म, वो मेरी हिम्मत, वो मेरा विश्वास, जिंदगी की दौड़ में बस भागते देखा मेरा पिता ही नहीं, तू है मेरा अभिमान।

दो अक्षर का प्यारा नाम,
जितना छोटा उतना गहरा,
सारे बोझ को कंधे पर उठाए,
बढ़ चला एक मुस्कान के साथ।

बारिश, सर्दी, तपती गर्मी,
ना रोक पाये उसका अभियान,
शब्द ना निकले मेरे मुंह से,
उपहार लिए खड़ा मेरा आसमां।

हथेलियों से छांव बना कर,
शजर बना मेरा पिता,
दर्द को दुख की चादर से ढके,
बाहें फैलाए मेरा बागबान।

बाहर से सख्त अंदर से नर्म,
वो मेरी हिम्मत, वो मेरा विश्वास,
जिंदगी की दौड़ में बस भागते देखा
मेरा पिता ही नहीं, तू है मेरा अभिमान।

मूल चित्र : Madhu Ramanan via Pexels

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