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आपको दिख नहीं रहा भाभी या आपने जानबूझ कर आंखे बंद कर रखी हैं? अमित का कॉफ़ी बनाना, नाश्ता बनाना और घर के कामों में उलझें रहना?
शादी के बाद आज पहली बार मेरी बुआ सास आने वाली थी। मम्मीजी ने दो हफ्ते पहले ही बता दिया था और ये भी कह दिया था की थोड़ी कड़क स्वाभाव की है वो। शादी के समय उनकी बहु की डिलीवरी और फिर फूफाजी के ऑपरेशन के कारण वो आ ना सकी थीं सो अब मुझे देखने और मिलने आने वाली थीं। मेरे ससुराल में मैं, मेरे पति अमित और मम्मीजी ही थे। ससुरजी तीन साल पहले लंबी बीमारी के बाद गुजर चुके थे।
मम्मीजी से पूछ कर मैंने बुआ जी के कमरे को अच्छे से सजा दिया हर जरुरत की चीज़ कमरे और बाथरूम में भी रख दी। बुआ जी को जिस दिन आना था मम्मीजी से पूछ मैंने खाने की सारी चीज़ें उनकी पसंद की बनाईं।
अमित, जा कर बुआ जी को स्टेशन से घर लें आये मैं भी अच्छे से तैयार हो गई थी। गुलाबी सूट और हल्का सा मेकअप कर जब मम्मीजी के सामने आयी तो मुझे देख उनके होठों पे आयी मुस्कुराहट बता गई की मैं अच्छी लग रही थी।
बुआ जी के आते ही मैंने पैर छुए और बुआ जी ने आशीर्वाद दे मुझे गले लगा लिया। इतना स्नेह पा मैं खिल उठी और खुब खातिरदारी की उनकी। रात को खाना खा बुआ जी और मम्मीजी कमरे में बैठी बातें कर रही थी तो मैं भी पास चली गई।
“आओ बहु, बैठो हमारे पास भी”, बुआ जी ने कहा तो मैं भी बैठ उनकी बातें सुनने लगी तभी अमित कॉफ़ी बना लाये।
“ये लीजिये आप सब लेडीज आराम से कॉफ़ी पीते हुए बातें कीजिये।”
“अरे अमित तुमने क्यों बनाया कॉफ़ी बहु बना देती”, बुआ जी ने अमित को कहा तो जाने क्यों मुझे उनके चेहरे पे नाराजगी के भाव दिख गए।
“बुआ, कॉफ़ी तो मैं ही रोज़ बनाता हूँ रात को। अब सिया भी ऑफिस जाती है और माँ भी दिन भर घर में व्यस्त रहती है तो ऐसे में एक कप कॉफ़ी तो सुकून की मैं उन्हें पिला ही सकता हूँ।”
अमित की बातों का बुआ जी ने कोई ज़वाब तो नहीं दिया लेकिन उनके चेहरे के भाव ने स्पष्ट कर दिया की बहु के बैठे बेटा रसोई में कॉफ़ी बनाये ये बात उन्हें रास नहीं आयी थी।
“मम्मीजी कल मेरी मीटिंग है तो मैं ज़रा पहले निकलुँगी। बहुत कोशिश की लेकिन मीटिंग टाल नहीं पायी मैं नाश्ता बना दूंगी, आप प्लीज खाना देख लीजियेगा।”
मैं अपने कमरे में जाने से पहले मम्मीजी को बता ही रही थी की अमित ने कहा, “कोई बात नहीं सिया कल मैंने छुट्टी ली है सुबह नाश्ता बनाने में मम्मी की मदद कर दूंगा और बाद में बुआ जी और मम्मी को मार्किट घुमा दूंगा फिर हम तीनों लंच भी बाहर ही लें लेंगे। तुम आराम से ऑफिस निकल जाना।”
अमित की बात सुन मैं निश्चिंत हो मुस्कुरा दी।
बुआ जी एक हफ्ते रही हमारे पास और उनके जाने से एक दिन पहले रात को उनके लिये कुछ तोहफ़े लें मैं मम्मीजी के कमरे के तरफ बढ़ी लेकिन मेरे कदम दरवाजे के पास ही ठिठक गए। ना चाहते हुए भी अंदर की आवाज़े मैं सुनने लगी।
“भाभी, आपने सिया को कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है। बहु है घर की चाहे नौकरी करे या ना करे लेकिन इस घर के कर्त्तव्यों से पीछे नहीं हट सकती।”
“लेकिन दीदी, सिया ने क्या किया?” आश्चर्य से मम्मीजी ने पूछा।
“आपको दिख नहीं रहा भाभी या आपने जानबूझ कर आंखे बंद कर रखी हैं? अमित का कॉफ़ी बनाना, नाश्ता बनाना और घर के कामों में उलझें रहना? क्या किसी मर्द को ये शोभा देता है? कभी देखा था भैया को औरतों के काम करते? अभी उनको गए तीन साल ही हुए है और इस घर का रिवाज़ ही बदल डाला आपने?” बुआ जी के तीखे शब्द मेरे दिल में तीर की तरह चुभ गए थे।
“माफ़ कीजियेगा दीदी, लेकिन जो परिभाषा आपने मर्द की दी उससे मैं कतई सहमत नहीं हूँ। आपके भाई जीवन भर मर्द होने के दंभ में रहे हर पल मुझे दबा के रखा। उनके जूते के फीते बाँधने से लेकर खोलने तक की जिम्मेदार मैंने निभाई है, फिर भी कभी मुझे उनसे पत्नी का सम्मान और हक़ नहीं मिला। सारा जीवन उन्होंने मर्द होने के दंभ में निकाल दिया लेकिन मैंने मेरे बेटे को उनके जैसा नहीं बनने दिया।”
“मेरा बेटा वो मर्द है जो अपनी पत्नी की इज़्ज़त ही नहीं करता उसकी जिम्मेदारियों को भी बांटता है। पति पत्नी की जिम्मेदारी सांझी होती है उसमे कोई दंभ और अहम् नहीं होना चाहिये। मुझे गर्व है कि मेरा बेटा मेरी बहु की भावना को समझता है उसकी इज़्ज़त करता है। दीदी, आपके भाई की चाकरी करते हुए जो जीवन मैंने जिया है वैसा जीवन मेरी बहु कभी नहीं जियेगी।”
मम्मीजी की बातें सुन मेरी आँखे बरस पड़ीं। जानती थी मैं कि मम्मीजी जैसी सास किस्मत वालों को मिलती है लेकिन सास के रूप में मुझे देवी मिली है आज ये भी जान गई थी।
आंसू पोछ अपने कमरे की तरफ वापस मुड़ गई ये सोच की तोहफ़े कल दे दूंगी क्यूंकि मम्मीजी का जवाब सुनने के बाद बुआ जी की जो उतरी शकल होगी उसे देखने की अभी तो बिलकुल इच्छा ना थी।
मूल चित्र : Screenshot from Ministry of Family & Health Welfare, YouTube
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