कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
जाते-जाते निशा ने अपनी भाभी से बोला, "मेरे मायके को बनाए रखना भाभी और किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बेझिझक बताना।"
जाते-जाते निशा ने अपनी भाभी से बोला, “मेरे मायके को बनाए रखना भाभी और किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बेझिझक बताना।”
घर के बाहर से ही महिलाओं के रोने की आवाजें आ रही थीं। कमरे में प्रवेश करते ही विनय की फ़ोटो में माला लटक रही थी। पूरा कमरा धूप और अगरबत्तियों से महक रहा था। फोटो के ठीक सामने लता सफेद साड़ी में अपने दो बच्चों के साथ बैठी थी।
निशा (विनय की बहन) को सामने देख लता अपने आंसूओं पर काबू नहीं कर पाई। निशा अपने भाई की मौत पर समय रहते आ नहीं पाई थी। विनय एक सड़क दुघर्टना में काल कवलित हो गया।
लता जिसे हर कोई देख उसके रूप की तारीफ करता था। आज उसे सफेद साड़ी में देख बर्बस ही रोए जा रहा था। शाम होने को आई और धीरे-धीरे सभी सांत्वना देकर लता को चले गए। अब बस घर में दो बच्चे लता और उसकी ननद थी।
“भाभी! कुछ खा लो देखो शरीर का क्या हाल बना लिया! जब तुम ही ठीक नहीं रहोगी तो इन बच्चों को कौन देखेगा?”
“निशा! कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा अभी। उनकी उम्र ही क्या थी? सब कैसे करूंगी उनके बिना कुछ भी समझ नहीं आ रहा।”
“कुछ तो हल निकालना होगा भाभी वरना घर चलाना मुश्किल होगा। जहां तक मुझसे बनेगा मैं हर संभव सहायता करूंगी।”
“अब तो बस तेरा सहारा है निशा और तुझे देखकर ही थोड़ी ताकत मिल रही है।”
“भाभी आफिस से कुछ दिनों की छुट्टी ली है जिससे यहां पर सब कुछ ठीक कर सकूं। आपके बहनोई को भी बोल दिया है कुछ ना कुछ हल तो निकलेगा। आप परेशान ना हों अब हम सब मिलकर देखेंगे।”
एक-दो दिन में निशा ने कई लोगों से बात करी पर कुछ समाधान नहीं निकला। तभी उसने देखा लता अपनी स्कूटी से घर का सामान लेकर आ रही है। निशा की आंखों में जैसे चमक आ गई।
शाम को चाय पीते हुए निशा बोली, “भाभी मुझे एक आइडिया आया है, अगर बुरा ना लगे तो सुझाव दूं?”
“तुझे कब से पूछना पड़ गया निशा? जो दिल में है बोल दे। अपनों की बातों का बुरा नहीं मानते।”
“तो सुनो भाभी! आप गाड़ी तो चला लेती हो तो क्यूं ना आप कैब चलाना शुरू कर दें? मैं अपनी कार आपको दे दूंगी। कम से कम घर में पैसे आने शुरू हो जाएंगे।”
लता सोच में पड़ गई करे या ना करे।
“क्या सोच रही हो भाभी? निशा लोग क्या कहेंगे मर्दों की तरह गाड़ी चला रही है? तो क्या हुआ भाभी आजकल तो हर क्षेत्र में औरतें हैं और कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता।
वैसे भी ये समाज के ठेकेदार आपको पैसे की मदद नहीं करने वाले। आखिर अपने बच्चों का सोचो उनकी भी जरुरतें पूरी करनी हैं। पैसे नहीं होंगे तो पढ़ाई लिखाई कैसे होगी? आप आराम से सोच लो भाभी अच्छा लगे सुझाव तो जरूर बताना।”
कुछ समय बाद लता ने निशा से बात कर कैब ड्राइविंग के लिए सारी फाॅरमेल्टी पूरी करी। ठीक एक सप्ताह बाद लता ने कैब लाकर अपने घर के बाहर खड़ी करी तो लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। पर लता ने ठान लिया था कि अपने घर को चलाने के लिए वो किसी की नहीं सुनेगी।
आज पहली सवारी लता को मिली थी। पूरे जोश के साथ लता अपने काम को कर रही थी। इधर निशा ने बच्चों की देखभाल के लिए एक दाई रख दी थी।
अब तो मोहल्ले की लता भाभी “कैब वाली भाभी जी” बन गई थी।
निशा की छुट्टियां खत्म हो गई थी और वो घर जाने की तैयारियां कर रही थी। लता ने निशा को गले लगाते बोला, “धन्यवाद निशा तुम्हारी जैसी ननद सबको मिले। अगर तुमने सभी चीजों को सही तरीके से संभाला ना होता तो सब कुछ बिखर चुका होता।”
दोस्तों! कैसी लगी मेरी कहानी अपने विचार ज़रूर व्यक्त करें और साथ ही मुझे फाॅलो करना ना भूलें।
मूल चित्र : Screenshot from The Whispers, Myntra, YouTube
read more...
Please enter your email address