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घर हो या बाहर, ज़्यादातर पुरुषों को एक आत्मनिर्भर और उनके बराबर या उनसे बेहतर काम कर दिखाने वाली महिला आंखों में चुभती है...
घर हो या बाहर, ज़्यादातर पुरुषों को एक आत्मनिर्भर और उनके बराबर या उनसे बेहतर काम कर दिखाने वाली महिला आंखों में चुभती है…
मुझे हैरानी होती है,जब पुरुषों को किसी मंच से महिलाओं के सशक्तिकरण के बारे में बात करते हुए जब सुनती हुँ। अब आप कहेंगे ये तो अच्छी बात हुयी? जी बिलकुल! लेकिन उन्हीं पुरुषों द्वारा किसी और जगह, किसी और मंच पर, या ज़्यादा दूर नहीं जाते, घर या ऑफिस या पास-पड़ोस में एक सशक्त महिला – उनकी बीवी, महिला रिश्तेदार, दोस्त, कुलीग के चरित्र पर कटाक्ष करते सुनकर सोच में पड़ जाती हूँ।
आखिर पुरुषों का ये दोहरचरित्र खुद महिलाएं क्यों नहीं समझ पातीं? सब कुछ देखते-सुनते जानते समझते हुए भी चुप क्यों रहती हैं? क्यों वो भीड़ में बैठकर तालियां बजाती हैं? क्यों वो शिकायत दर्ज नहीं करातीं। जहाँ विद्रोह की आवाज गूँजनी चाहिए, वहाँ ऐसे मर्दों के लिए चापलूसी की तालियां क्यों बजायी जाती हैं?
क्यों पुरुषों को एक आत्मनिर्भर और उनको हर क्षेत्र में बराबर की टक्कर देने वाली या उनसे बेहतर काम कर दिखाने वाली महिलाएँ आंखों में चुभती हैं? येन केन प्रकारेण पुरुष तब उस महिला को दबाने की पुर जोर कोशिश में लग जाते हैं।
वो हर तरह के हथकंडे अपनाने लगते हैं महिला को गिराने और नीचा दिखाने के लिए। फिर तो पुरुष महिला के चरित्र से लेकर पारिवारिक जीवन तक पर हमलावर हो जाते हैं। आज के आधुनिक युग मे जहाँ सब कुछ डिजिटल हो गया है, यही पुरुष सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर महिला की फ़ोटो, मिम्स, सेक्स, अभद्र जोक्स प्रसारित और प्रकाशित कराने लगते हैं। कभी-कभी तो पुरुषों का महिलाओं के खिलाफ ये विद्रोह इतना निम्न स्तर का हो जाता है कि वो अश्लीलता की हर हद पार कर जाता है।
दअरसल इस पितृसत्तात्मक समाज ने समाज की रूपरेखा ही ऐसी बनायी जिसमें महिलाओं को दूसरे दर्जे पर रखा और सदैव इस बात का एहसास दिलाया कि बिना पुरुष उनका कोई अस्तित्व नहीं, बिना उनके महिलाएं कुछ भी नहीं कर सकतीं। लेकिन जब भी किसी महिला ने इनके इसी समाजिक ढांचे को तोड़ते हुए खुद के दम पर अकेले इनके बराबर या इनसे ऊपर समाज मे किसी भी क्षेत्र में कोई मुकाम हासिल किया, तब इन पुरुषों के अहम को करारी चोट लगी।
पहले मुझे विश्वास नहीं होता था, लेकिन आज मुझे ये यकीन हो चला है कि इनके मन में डर हो गया है कि अगर इसी तरह सारी महिलायें ऐसा करने लगीं तो पुरुषों का पूरा आस्तिव ही खतरे में आ जायेगा। अब तक जहाँ उनका मुकाबला सिर्फ पुरुषों से होता था, अगर महिलायें भी आ गयीं तो मुकाबला और भी कठिन हो जाएगा।
यकीन न हो तो इतना तो मानेंगे न कि उस कामयाब महिला को कमजोर करने के लिए आपस में दुश्मन पुरुष भी मित्र हो जाते हैं और साथ में कुछ महिलाओं को भी शामिल कर लेते हैं ताकि ये कमजोर ना पड़ें। लेकिन मौका कुछ भी हो पुरुषों को हर तरफ हर कदम पर महिलाओं की ही आवश्यकता होती है।
ऐसा नहीं है कि महिलाओं को पुरुषों की आवश्यकता नहीं, लेकिन पुरुष अपने गुरुर में इस सत्य को स्वीकार ही नहीं करना चाहते कि समाज में स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक यानी समान हैं। इनको बस अपनी सत्ता खोने का डर सताने लगता है। जिसको बचाने में, फिर कहूँगी, घर हो या बाहर, ये अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।
शुरू से पुरुषों की मानसिकता रही है कि एक महिला अबला, डरपोक, कमजोर, लाचार होती है। जहाँ लोग महिला को इंसान ना समझकर भोग की वस्तु मात्र समझते हों, ऐसे में अगर कोई महिला इनकी मानसिकता, वहम और बंदिशों को तोड़कर कामयाबी हासिल करती है तो वो पुरुषों को हजम नहीं हो पाता।
आगे रहने वाली महिला उनको खटने लगती हैं क्योंकि वो इनके गलत गतिविधियों के खिलाफ विरोध करती है। इसलिए पुरुष हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं महिला को रोकने, चुप कराने के और फिर जय हो पितृसत्ता की, एक महिला की बदनामी करने में तो महिला भी पुरुषों का ही साथ देती हैं। एक महिला के बारे में, उसके कपड़े, उसके चरित्र के बारे में बात करने का एक भी मौका ये कैसे गँवा दें?
मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साइट्स आजकल जहाँ अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है, वहीं इसका प्रयोग बहुत सी गलत गतिविधियों के लिए भी किया जाता है।
पुरुषों के द्वारा इस माध्यम का भरपूर प्रयोग किया जाता है एक अकेली आत्मनिर्भर महिला को बदनाम करने के लिए, अब चाहे वो सशक्त महिला राजनीति से हों, बॉलीवुड से हों, बिजनेस के क्षेत्र से हों या किसी भी क्षेत्र से, जहाँ वो पुरुषों को कड़ी टक्कर दे रही हैं। उस महिला के खिलाफ अभद्र मीम्स, अश्लील मैसेज, पोस्टर, आपत्तिजनक वीडियो, गाली-गलौज प्रसारित, प्रचारित किए जाते हैं।
इतना ही नहीं, इस साजिश के तहत उस महिला के परिवार पर भी प्रहार करके उसको कमजोर करने की कोशिश की जाती है। और इन सब के बीच में उस महिला का वास्तविक दर्द, उसकी पीड़ा उसका संघर्ष कहीं ना कहीं सब दबा दिया जाता है।
आज ज़रा ‘मेन विल बी मेन’ या ‘नॉट आल मेन’ को, अगर अभी तक नहीं किया तो, खिड़की से हमेशा के लिए बाहर फेंक दें, क्यूंकि इस बात के बदले एक ही बात है मेरी तरफ से कि शायद ही कोई महिला ऐसी हो इस धरती पर आज जिसने इन मर्दों के मुँह से अपनी ‘तारीफ’ ना सुनी हो या उनके हाथों ने उसको बिना मर्ज़ी से छुआ न हो। अब बोलिये मेरी ये नाराज़गी जायज़ है कि नहीं? और अगर आप मर्द हैं और इसे पढ़ रहे हैं तो आपका भी उन मर्दों पर शर्मिंदा होना जायज़ है, आखिर आपने उन्हें कभी रोका भी तो नहीं। क्या आपके घर की औरतों ने कभी इन बातों पर अपनी नींद खोयी?
लेकिन अब पुरुषों को ये समझना होगा कि जब-जब महिला को दबाया या कुचला जाएगा, और जितना उसके साथ ये सब किया जाएगा, एक महिला उतनी ही मजबूत बनकर उभरेगी और उस पर करारा प्रहार करेगी।
पुरुष क्यों भूल जाते हैं कि एक महिला जननी और शक्ति दोनों रूपों में मजबूत है। अगर उसकी कलाई चूड़ियां पहनती हैं, तो तलवार उठाकर प्रहार करने की भी ताकत रखती हैं। और इस बात का प्रमाण हर युग में महिलाओं ने हर क्षेत्र में दिया है।
यहाँ विरोध पुरुषों का नहीं बल्कि उस सोच और उस सामाजिक ढांचे का है जो महिलाओं के सम्मान पर चोट करता है और महिला का सरे आम अपमान करता है, जो ये भूल जाता है कि एक महिला भी मनुष्य है जिसे ईश्वर ने सब कुछ पुरुषों के बराबर ही दिया है चाहे वो सांसें हो या जीवन।
हर विरोध को दर्ज कराने या करने का एक सभ्य तरीका होता है, लेकिन जहाँ ये सभ्यता की सीमा लांघी जाएगी, वहीं एक महिला अपनी आत्मसम्मान की रक्षा और बचाव के लिए मजबूती से पुरुषों का विरोध करेगी।
पुरुषों को ये हमेशा याद रखना चाहिए कि हर युद्ध और हर युग के सभी क्षेत्रों में जब जब जरूरत पड़ी है, हर बार महिलाओं ने अपने बहादुरी और अदम्य साहस का परिचय दुनिया के सामने रखा है। इसलिए महिलाओं को कमजोर अबला या दूसरे दर्जे का ना समझकर उसको इंसान समझिए।
मूल चित्र : Still from Short Film Ek bahut Chhoti si Love Story, YouTube
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