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पुरुष जहां खुलेआम माँ बहनों की गालियां देते हैं, तो क्या ऐसे घरों की सभी महिलाएं फटी जीन्स या शॉर्ट में ही होती हैं? जवाब है नहीं।
जो पुरुष महिलाओं के साथ ऐसी अपमानजनक हरकतें करते हैं, या उनके पहनावे पर टिका-टिप्पणी करते हैं, क्या उनके घरों में उन पुरुषों को संस्कार नहीं सिखाया गया?
कुछ दिनों से सोशल मीडिया में महिलाओं के फटी जीन्स पहनने के मुद्दे पर जोर शोर से चर्चा हो रही है। किसी ने इसका विरोध किया, तो महोदय के परिवार के सदस्यों ने उनका बचाव करते हुए कहा कि “उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया। उनके कहने का आशय ये था कि महिलाओं का समाज निर्माण में अनूठा योगदान है। ऐसे में हमारे देश की महिलाओं की जिम्मेदारी है कि वो हमारी संस्कृति विरासत, परंपराओं और हमारी पहचान को बचायें।”
एक समारोह में भाषण के दौरान एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि “मैं एक बार हवाई जहाज से जयपुर आ रहा था मैंने उनकी तरफ देखा नीचे गम बूट थे जब और ऊपर देखा तो जीन्स घुटने से फटी हुई थी। 2 बच्चे उनके साथ में थे। पूछने पर पता चला कि उनके पति जेएनयू के प्रोफेसर हैं और वो महिला खुद एक एनजीओ चलाती हैं। ऐसे वस्त्र पहनकर जो महिला लोगो के बीच जाती हो वो समाज को क्या संस्कार देगी।”
लेकिन व्यक्तिगत तौर पर दोनों ही बातें ना तो एक महिला के तौर पर मुझे न्याय संगत लगीं, ना ही इसमें कोई आधार या व्यवहारिकता नजर आती है। जो इस बात को सही साबित करे कि कपड़ों से हम बच्चों को संस्कार सीखा सकते हैं या अपनी संस्कृति को बचा सकते हैं।
ये सोच और घटना ये दर्शाती है कि हमने विज्ञान में चाहे जितनी भी तरक्की कर ली हो लेकिन महिलाओं के प्रति सोच में जरा भी बदलाव नहीं हुआ है। आज के आधुनिक युग मे भी महिलाएं खुल के अपने विचार रखने या अपनी पसंद के कपड़े पहनने का अधिकार नहीं रखतीं। लगता है आज भी पुरुष वर्ग की यही सोच है कि महिलाएं घूँघट में घर की चार दीवारी में कैद रहें। कहीं न कहीं ज़्यादातर पुरुष चाहते शायद यही होंगे।
क्या जिन घरों में महिलाएं साड़ी पहनकर और सूट पहनकर रहती हैं, उन घरों के समस्त पुरुष संस्कारी होते हैं? साड़ी पहनी हुई महिला से जब उसके पति द्वारा मारपीट की जाती है या पुरुष खुलेआम माँ बहनों की गालियां देते हैं, तो क्या ऐसे घरों की सभी महिलाएं फटी जीन्स या शॉर्ट में ही होती हैं? जवाब है नहीं।
दअरसल देखा जाए तो, ज़्यदातर वक्त पुरुष अपनी जिम्मेदारियों से महिलाओं की आड़ लेकर बचना चाहता है। जबकि सत्य तो ये है कि एक बच्चे को संस्कृति और संस्कार सिखाने में कपड़ों का नहीं बल्कि माता-पिता के साथ पूरे परिवार की और समाज की बराबर की भागीदारी होती है।
एक महिला को उसके बच्चों के सामने उसके पति द्वारा अपमानित किया जाना, अपशब्द कहना, उसके साथ मारपीट करना क्या ये हमारी भारतीय संस्कृति और संस्कार हैं?
भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी के समान माना जाता है भारतीय संस्कार महिलाओं का सम्मान करना सिखाते हैं। जो पुरुष महिलाओं के साथ ऐसी अपमानजनक हरकतें करते हैं, या उनके पहनावे पर टिका-टिप्पणी करते हैं, क्या उनके घरों में उन पुरुषों को संस्कार नहीं सिखाया गया?
ऐसा क्यों होता कि यदि बच्चा कुछ अच्छा करता है तो सारी शाबाशी पिता यानी पुरुष को दी जाती है, और बच्चे ने कही कुछ गलत किया तो तुरंत माँ को गाली दी जाती है?
अधिकतर लोगों को कहते सुना जाता है कि जमाना बदल रहा है, लेकिन अफसोस आज भी समाज मे महिलाओं को लेकर लोगो के विचारों में कुछ खास बदलाव नहीं हुए हैं। आज भी एक महिला को उसके पसन्द के कपड़े पहनने, खाने ,और जिंदगी को अपने तरीके से जीने का अधिकार नहीं।
जो औरतें इन पितृसत्ता वाले समाज की रूढ़िवादी सोच और बीमार मानसिकता का विरोध करती हैं समाज, उन्हें चैन से जीने नहीं देता है ये समाज। हर बार उनके चरित्र पर उंगलियां उठाई जाती हैं और महिलाओं के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को कुचलने की पूरी कोशिश की जाती है। और ना भूलें कि कुचलने की कोशिश हमेशा अपने से बढ़कर जो होता है, उसी की की जाती है।
माननीय महोदय अगर वहाँ महिलाओं का सम्मान करते तो कम से कम उस सभा मे इस बात को बोलने से पहले सोचते कि वो एक शिक्षित आत्मनिर्भर महिला पर कैसे मिथ्या दोष को मढ़ रहे हैं। जिसका कि उनके पास कोई प्रमाण नहीं। महज कपड़ों से उन्होंने अनुमान लगा लिया कि महिला अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पाएगी या ये कि उसके बच्चे संस्कारहीन होंगे?
ईश्वर ने जन्म से लेकर मृत्यु तक मे महिला और पुरुषों में कोई भेद नहीं किया है। दोनों का जन्म एक माँ के गर्भ से नौ महीने पर ही होता है और आयु भी दोनों को समान दी क्योंकि भगवान ने सिर्फ इंसान बनाया था और समाज मे महिलाओं के प्रति ओछी सोच वालों ने पुरुषों को समाज मे प्रथम दर्जे पर और महिलाओं को उनसे नीचे रखा है। खुद के मन मानी नियम बना दिये गए।
समाज के पुरुष वर्ग का ये कैसा दोहरचरित्र है जो एक तरफ महिलाओं को मंदबुद्धि, कमजोर, लाचार और अबला कहते हैं तो दूसरी तरफ उन्हें ही ऐसी गम्भीर एवं महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी दे देते हैं?
पुरुषों को एक दूसरे से बदला लेना हो या ट्रोल करना हो, उन्हें हर बार एक महिला की ही जरूरत होती है। ये लोग हर बार शिकार सिर्फ महिलाओं को ही बनाते हैं। अपनी निजी और व्यक्तिगत झगड़े में भी एक दूसरे के घरों की महिलाओं को ही अपमान जनक शब्द कहेंगे। क्यों ये पुरुष अपनी लड़ाई स्वयं के दम पर नहीं लड़ पाते?
भारतीय समाज और संस्कृति में यदि महिलाओं के लिए साड़ी और सलवार कमीज है तो पुरुषों के लिए भी धोती-कुर्ता और सामान्य शर्ट पेंट ही बनाया गया है। पुरुषों का जीन्स पहनना और सेट वेट लगाकर बाल खड़े करने का फैशन भी पाश्चात्य संस्कृति है। यहाँ सवाल ये उठता है कि तब ऐसे पुरुषों से कोई ये क्यों नहीं कहता कि ऐसे पुरुष अपने बच्चे को क्या संस्कार देंगे?
जिस सभा में महिलाओं के अन्य समस्याओं जैसे घरेलू हिंसा, शिक्षा का अधिकार, पोषण, रेप जैसे जुर्म को बंद करने के तरीकों पर बात होनी चाहिए थी, वहां महिला के कपड़ों पर चर्चा हो रही थी?
ये घटना ये दर्शाती है कि फटी जीन्स और संस्कारों की बात का इस तरह से तूल पकड़ना निश्चित ही महिलाओं को उनके असल समाजिक समस्याओं के मुद्दों से भटकाने के लिए किया जाता है।
आखिर में सिर्फ एक सवाल की आखिर कब तक संस्कृति, संस्कार, धरोहर, इज्जत, परवरिश को लेकर महिलाओं पर निशाना साधा जाता रहेगा? कब पुरुष वर्ग अपनी भागीदारी को स्वीकार करेंगे? कब ये समाज स्त्री पुरुष के इस भेद को मिटाकर सिर्फ स्त्री को इंसान समझेगा?
मूल चित्र : Still from Biba Ad, YouTube
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