कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
मुझे कपड़े पहनने की इजाज़त भी आपसे लेनी पड़ती है और काम के लिए देर रात बाहर रहना हो तो आस-पास का माहौल देखना पड़ता है, तो मैं रिबेल ना करूं?
मैंने कल रात मैंने एक गाना सुना और एक सवाल बड़ी ज़ोर से मन में आया कि महिलाओं को आख़िर अपना हक मांगने क्यों पड़ता है? क्यों उन्हें समानता के लिए भी रिबेल होना पड़ता है?
हम बार-बार कहते हैं कि 21वीं सदी आ गई है और हमने कई उपलब्धियां हासिल कर ली हैं। लेकिन फायदा क्या है क्योंकि आपकी दुनिया की आदी आबादी तो अभी भी अपने बेसिक हक के लिए लड़ रही है।
उन्हें कपड़े पहनने की इजाज़त भी आपसे लेनी पड़ती है। उन्हें काम के लिए भी देर रात बाहर रहना हो तो आस-पास का माहौल देखना पड़ता है। एक बीवी और मां के रूप में आपने उन्हें एक भूमिका में बांध दिया है। वो औरत अपने बेसिक हक के लिए भी इतना जूझती है कि वो शायद ख़ुद फेमिनिज़्म का मतलब भूलती जा रही है। लेकिन ऑप्शन क्या है?
आपको अगर समानता का कॉन्सेप्ट समझ आ जाए और आप औरतों पर फालतू के नियम-क़ानून लगाना छोड़ दें तो उसे चिल्लाना नहीं पड़ेगा।
दो स्थितियां बताती हूं– एक है ‘मैं फेमिनिस्ट हूँ वाली’ कि मेरा मन मिनी ड्रेस पहनने का मन ना भी हो लेकिन मैं पहन लेती हूं क्योंकि मुझे साबित करना है कि ‘my body, my choice’ और दूसरी है ‘मैं अच्छी बेटी और बहू हूँ’ यानि मुझे खाना बनाना कितना ही बुरा क्यों ना लगता हो लेकिन मैं सबका दिल जीतने के लिए सीख लूंगी।
अब ये औरत बीच में फंस गई है। या तो उसे अच्छा बनने के लिए समाज के नियमों को फॉलो करना पड़ता है या फिर अपनी आवाज़ आपको सुनाने के लिए फेमिनिज़्म का झंडा लहराना पड़ता है।
इंडियन-अमेरिकन रैपर और गायिका राजाकुमारी ने 8 मार्च, 2021 को महिला दिवस के मौके पर अपना नया सिंगल रिलीज़ किया।
BOAT ब्रांड के साथ कोलेबॉरेट करके उन्होंने ये सॉन्ग लॉन्च किया है। राजाकुमारी के इस गाने में कई जानी-मानी फीमेल सेलिब्रिटी नज़र आ रही हैं। अभिनेत्री कियारा आडवाणी, एक्टर और फिटनेस फ्रीक बानी जे, एमएमए प्रोफेशनल सानिका पाटिल, जेंडर फ्लूइड आर्टिस्ट और मूर्तिकार दुर्गा गावड़े और टेलीविजन अभिनेत्री आयशा अदलखा भी दिखाई दे रही हैं।
राजाकुमारी ने इस गाने को फेमिनिस्ट मूवमेंट का एंथम कहा है जिसके ज़रिए समाज में महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचारों और उनकी आवाज़ दबाने की कोशिशों का विरोध करते हुए महिला सशक्तिकरण की बात कही गई है। इस गाने का मोटा-मोटा मतलब यही है कि महिलाओं को सदियों से लगाए जा रहे नियम-क़ानूनों को तोड़कर चैम्पियन बनना होगा, ब्रेक द रूल्स!
आपने कभी सोचा है कि फीमेल एम्पॉवरमेंट के नाम पर बनने पर कई फिल्म्स और सीरीज़ में सेक्स, ड्रिंक्स, फैशनेबल कपड़े पहनी हुई औरतें क्यों दिखाई देती हैं?
शायद इससे बहुत लोगों को आपत्ति होती है। फॉर मोर शॉट्स, लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का, नेटफ्लिक्स की सीरीज़ बॉम्बे बेगम्स जैसे कई उदाहरण आपके सामने हैं।
हो सकता है ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि औरतों की ऐसी भूमिका से हमारे समाज को चिढ़ है इसलिए उसे बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जाता है? ताकि लोगों को आपत्ति हो और कम से कम महिलाओं के अधिकारों पर बात तो हो? वो कहते हैं न एनी काइंड ऑफ़ अटेंशन इस गुड अटेंशन? कुछ अटेंशन मिलेगी तभी शायद कुछ बात बनेगी?
देखिये ऐसा ऐसा सोचना सही भी हो सकता है और ग़लत भी। बाकी यह दर्शक और निर्देशक की अपनी-अपनी समझ पर निर्भर करता है कि वह क्या और कैसे दिखना चाहता है।
अब औरत शायद इतना दुखी हो चुकी हैं कि उन्हें अपनी बात रखने के लिए रिबेल बनना ही पड़ता है क्योंकि समानता का कॉन्सेप्ट आपको समझ नहीं आता है।
लिखते-लिखते, लेखिका निर्मला पुतुल की कविता की कुछ पंक्तियां याद आ गई:-
तन के भूगोल से परे, एक स्त्री के मन की गांठे खोलकर
कभी पढ़ा है तुमने, उसके भीतर का खौलता इतिहास
अगर नहीं तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में…!
और हाँ, मुझे अभी भी फॉर्म में Daughter of यानि पिता (माँ का नहीं) या Wife of यानि पति का नाम लिखना पड़ता है। सोचिए फिर!
I’mma do whatever I want
I am a rebel
Kisi ki na sune na
यानि मैं जो चाहूंगी वो करूंगी, मैं बगावती हूं…किसी की सुने ना, मैं बगावती हूं…
https://www.youtube.com/watch?v=a5_3OFjGn-A
मूल चित्र : Screenshot of song Rebel, YouTube
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