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इन्हें क्यूँ कहते हैं ये जोड़ कर नहीं रखती घर, ये नहीं रहना चाहती बना कर किसी से, सिर्फ इसलिए क्यूंकि कभी कभार कर देती है जरा सी शिकायत!
ये स्त्रियांबाँधने और बंधने मेंबहुत मजबूत होती हैं।बालों को समेट, घुमा फिरा केजितनी सरलता से जूड़ा बना लेती हैं,उतनी ही सरलता से, वैसे ही ह्रदय से,बांध लेती है खुद को सात फेरो में,एक कतई अजनबी से ताउम्र।
ये स्त्रियांमन्नत मांग के कुछ सिक्के,उन्हें चूम के, गांठ बांध लेती हैं,अपने आंचल के किनारे पर एक छोर में,ऐसे ही मन्नत की तरह सहेजती हैं,नौ मास अपने गर्भित अनदेखे प्रेम को,और आखरी सांस तक बाँध लेती है,उस संतान से यही स्त्रियां।
इन्हें क्यूँ कहते हैं ये जोड़ करनहीं रखती घर, ये नहीं रहना चाहतीबना कर किसी से, सिर्फ इसलिए क्यूंकिकभी कभार कह देती है बात, कर देती हैजरा सी शिकायत!और फिर सब बांध देते हैं उन स्त्रियों को,बुरी औरत के दायरों में, जहाँ वो कोसती हैखुद को, अपने बंधन को।
मूल चित्र : Baljit Johal via Pexels
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