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बहु, अब तुम सिर्फ आराम करो…

"आ गयी महारानी? ये भी नहीं सोचा कि बताकर जाएं। सारा काम घर में पड़ा हुआ है। मैं घर के कामों की वजह से आज सरला बहन के पास भी नहीं जा पायी।"

“आ गयी महारानी? ये भी नहीं सोचा कि बताकर जाएं। सारा काम घर में पड़ा हुआ है। मैं घर के कामों की वजह से आज सरला बहन के पास भी नहीं जा पायी।”

“अरे! सरला बहन आप आइये ना कैसे आना हुआ?” शकुंतला जी ने अपनी पड़ोस की सहेली से कहा।

“अरे मैं तो कल के लिए निमंत्रण देने आयी थी। कल मेरे पोता जन्म की खुशी में छोटी सी पार्टी रखी है, तो सोचा निमंत्रण भी दे दूँगी और मिलना भी हो जाएगा। तुम तो आजकल दिखती ही नहीं।”

“शकुंतला जी, अरे समय ही कहाँ मिलता है आजकल? क्योंकि बहु का बच्चा जो हुआ है। अभी बच्चा हुए एक महीना भी नहीं हुआ है तो सोचा हमारी सास ने तो नहीं रखा हमारा ख्याल, लेकिन मैं क्यों उनके जैसी बनूँ? हम तो जच्चा बच्चा का अच्छे से ख्याल रखते हैं। बहु को बोल दिया है कि तीन महीने बाद ही रसोई में जाने की सोचना।”

“सच बहुत ही नेक विचार हैं तेरे, वरना कौन सी सास-ननद इतना सोचती हैं घर की बहू के बारे में। वो भी बच्चा जब नार्मल डिलीवरी से हुआ हो। अच्छा चलती हूं, लेकिन कल ध्यान से चली आना।”

“हाँ क्यों नहीं, बहुत बहुत बधाई हो।”

तब तक शकुंतला जी ने अपनी बहु रमा से कहा, “बहु सब्जियां कट गईं क्या?”

“हां माँजी।”

दरअसल रमा से घर के सारे काम कराए जाते थे सिवाय खाना बनाने के। सब्जियां काटना, आटा गूँथना, बर्तन कपड़े सब कुछ बस खाना बनाने नहीं दिया जाता था। इस बात से रमा का मन झुंझला जाता कि कहने को तो मैं कोई काम नहीं करती लेकिन सारे काम कराए जाते हैं जिसकी वजह से उसका खाना-पीना भी ढंग से नहीं हो पाता था।

उसी दिन रमा दोपहर में झूठे बर्तनों का ढेर लिए सारे बर्तन साफ कर रही थी और कमरे में उसका बेटा उठकर जोर-जोर से रोने लगा। इधर सास-ननद साथ बैठकर दोपहर में टीवी देख रही थी।  भाग्यवश उस दिन रमा के पति अमन ऑफिस से जल्दी घर आ गए।

ये सब देखकर अमन को बहुत गुस्सा आया। लेकिन मजबूर था किसी को कुछ बोल नहीं सकता था कुछ बोलने पर घर मे महाभारत शुरू हो जाता और शकुंतला जी बेटे को अपनी मां के रूप में की गई अपने बेटे के प्रति सारे कर्तव्यों को गिना डालतीं।

अमन ने बेटे को गोद मे लिया औऱ रमा से कहा, “तुम जल्दी से काम खत्म करके आओ।”

रमा सास ननद के व्यवहार से दुखी तो रहती लेकिन उसे इस बात की खुशी रहती थी कि कम से कम उसके पति का साथ उसके साथ था। तब तक चिरपरिचित अंदाज में शकुंतला जी ने कहा, “अरे बेटा तू कब आया? ये क्या बहु तुम मेरे पोते का खयाल भी नहीं रख पातीं? तुम्हें इसीलिए तो सारे कामों से छूटी दी है कि तुम मुन्ने का ख्याल रख सको।”

रमा और अमन सब कुछ चुपचाप सुनते रहे। सच दोनों जानते थे लेकिन सच बोल नहीं सकते थे।

अगले दिन अमन ने कहा, “रमा तुम तैयार हो जाओ।”

“लेकिन कहां जाएंगे हम?”

“याद नहीं अस्पताल चलना है हमें?”

“अमन लेकिन अभी तो मुझे काम है। अच्छा माँजी को छत से आ जाने दीजिए बता दूँ फिर चलते हैं।”

“रमा, जितना कह रहा हूं तुम उतना ही करो बस।”

थोड़ी देर बाद अमन और रमा और बच्चे अस्पताल चले गए। अमन के फोन पर लगातार शकुंतला जी का फोन आ रहा था लेकिन अमन ने फोन उठाया नहीं।

सुबह आठ बजे से निकले हुए दोनों जब शाम को पांच बजे घर पहुंचे तो शकुंतला जी गुस्से से भरी पड़ी थीं। अमन को आता देखकर उन्होंने कहा, “देख बेटा पता नहीं महारानी सुबह से बिना बताए कहाँ गायब हो गयी हैं?”

तभी पीछे से रमा को आता देखकर रमा की ननद निशा ने कहा, “माँ वो देखो, भाभी भी आ गयी।”

“आ गयी महारानी? ये भी नहीं सोचा कि बताकर जाएं। सारा काम घर में पड़ा हुआ है। मैं घर के कामों की वजह से आज सरला बहन के पास भी नहीं जा पायी।”

तब अमन ने कहा, “कैसे काम माँ? रमा को तो आपने तीन महीने आराम करने के लिए कहा है।  आपने ही तो कल कहा था। तो मैंने सोचा आज मुन्ने का टीका भी लगवा देता हूं। दूसरा महीना लग गया है। इसलिए अपने साथ अस्पताल लेता गया।”

रमा ने घर की चारों तरफ नजरें दौड़ाईं तो देखा कि रसोई में जूठे बर्तनों का अंबार लगा हुआ है, पूरी रसोई बिखरी पड़ी हुई है।

फिर अमन ने कहा, “रमा तुम कमरे में जाओ मुन्ने को लेकर और आराम करो और साथ ही डॉक्टर ने तुमको भी अपना ख्याल रखने के लिए बोला है। तो तुम अपना और मुन्ने का पूरा ध्यान रखो।”

इतना सुनते शकुंतला और निशा का मुँह बन गया। शकुंतला ने कहा, “वाह बेटा माँ की तकलीफ तुझे नहीं दिखी और बीवी की तकलीफ तुझे नजर आ गयी। इतनी जल्दी जोरू की गुलामी करने लगा तू और ये सारे काम कौन करेगा?”

“माँ पहले तो आप इस बात का निर्णय कीजिये कि रमा को काम करना है कि नहीं? आपको किसने कहा काम करने के लिए? मैंने तो पहले ही कहा था कि एक नौकर लगा देते हैं लेकिन आपको ही मंजूर नहीं था और अब मैं जोरू का गुलाम कहा से हो गया? मैंने तो वही कहा रमा से, जो आप कहती हैं कि बहु तुम तो बस आराम करो।

माँ अगर मेरा कर्तव्य आपके और इस घर के प्रति है तो अपने बेटे और अपनी पत्नी का खयाल रखना भी मेरा ही कर्तव्य है। आज एक दिन आधा अधूरा काम करके आपको  गुस्सा आ गया।

आप रमा से सिर्फ खाना नहीं बनवाती हैं, बाकी घर के पूरे काम कराती हैं। फिर भला ये कैसा आराम हुआ जिसकी वजह से रमा का खाना भी खाना नहीं हो पाता। और जब रमा खाएगी नहीं तो स्वस्थ कैसे रखेगी खुद को भी औऱ बच्चे को भी? पूरी रात मुन्ना दूध के लिए रोता रहता है। डॉक्टर ने कहा, रमा जब तक तनावग्रस्त रहेगी और खाने में पौष्टिक आहार नहीं लेगी तब तक दूध नहीं बनेगा।

मैं सब कुछ अपनी आंखों से देख रहा हूँ कि कौन कितना काम करता है और कौन कितना आराम करता है। और शायद अब ये सच आप को भी अच्छे से पता हो गया महज कुछ घण्टों में ही।

मैंने एक काम वाली  को बोल दिया है, जो अभी थोड़ी देर में आती होगी। आज से घर के झाड़ू-पोछा- बर्तन के काम वही करेगी। बाकी आपको जो ठीक लगे वो काम कीजिए वरना मत कीजिए।”

कहकर अमन वहां से चला गया और शकुंतला जी मुँह फुलाये बेटी के संग रूम में जा बैठीं।

प्रिय पाठकगण, उम्मीद करती हूं कि मेरी ये रचना आपको पसंद आएगी। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हुँ।

मूल चित्र : Still from short film Methi ke Laddoo, YouTube

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