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तुम घर की बहू हो, बेटी नहीं। तुम्हें जिम्मेदारियों का कोई एहसास है कि नहीं? रात के खाने का टाइम हो चुका है और तुम्हारा अता पता ही नहीं।
मेघा की शादी की तैयारियां जोरों-शोरों से शुरू हो गई थी। वर-वधु के घरों में सारी रस्मों का श्री गणेश हो चुका था। इधर मेघा का घर गेंदे के फूलों से सजा हुआ था तथा ज़मीन पर गिरे गेंदे के फूल को उठाकर मेघा की बहने और सहेलियां उसे चिढ़ाने के मूड से बार-बार ‘ससुराल गेंदा फूल’ वाला गाना गाने लगी।
हाथों में मेहंदी लगाते हुए मेघा ने अपनी बड़ी बहन से पूछ ही लिया, “दीदी यह लोग मुझे बार-बार ससुराल गेंदा फूल कहकर क्यों चिढ़ा रहे हैं, आखिर ससुराल व गेंदा फूल का क्या संबंध है।”
दीदी के उत्तर देने से पहले ही मेघा की एक सहेली मेघा को कोहनी मारते हुए कहने लगीं, “थोड़ा इंतजार करो तुम्हें ससुराल जाकर सब पता चल जाएगा।”
उसकी बात खत्म होते ही फिर दीदी ने मेघा को उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, “देखो मेघा मायके और ससुराल में अंतर तो होता ही है, यहां हम अपने माता-पिता की परियां होती है और वह लोग फूल में बैठे भोरे की तरह हमारे आगे पीछे लगे रहते हैं। ससुराल भी एक फूल की तरह होता है पर वहां रहने वाले हमारे आगे पीछे नहीं लगते बल्कि हमें उनके आगे पीछे लगना पड़ता है। तुम्हें पता है गेंदे में खुशबू होने के बाद भी कोई भी भंवरा उसमें नहीं मंडराता है, इसीलिए ससुराल को गेंदा फूल कहा जाता है।”
दीदी की बात उसे समझ में नहीं आई और वह अपनी मेहंदी की रस्म का आनंद उठाने लगी। दूसरे दिन मेघा शादी करके अपने ससुराल चली गई। ससुराल में भी उसकी आवभगत बहुत भव्यता से हुई। ससुराल की सारी रस्में मेघा ने भी खुशी-खुशी निभाई, सास-ससुर का आशीर्वाद तथा छोटों का प्यार लेकर मेघा अपने वैवाहिक जीवन में मग्न हो गई। ससुराल में उसको सब प्यार करते थे तथा पति भी उसके हर निर्णय में साथ खड़े होते थे।
इसी बीच मेघा की सरकारी बैंक में अच्छी पद पर नौकरी लग गई। मेघा के ससुराल वाले मेघा की नौकरी से बहुत खुश थे। अब घर में कमाने वाले हाथ भी बढ़ गए थे। मेघा की ननद व सास मेघा के घर के कामों में उसका बराबर हाथ बंटाते। मेघा भी घर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने की कोशिश करती तथा घर में मिल रही सास और ननद की सहायता से वह ऑफिस में भी अच्छा काम करने लगी जिस कारण उसकी जल्दी ही तरक्की भी हो गई।
तरक्की के साथ-साथ उसके ऊपर अतिरिक्त जिम्मेदारी का भार भी आ गया। मेघा को अब सुबह जल्दी तथा शाम को ऑफिस से आने में देर हो जाती जिस कारण मेघा घर में ज्यादा समय नहीं दे पा रही थी, जिसके परिणामस्वरूप मेघा के ससुराल में मेघा के द्वारा घर के कामों में कम हाथ बंटाना सास और ननद के लिए सिर दर्द बनने लगा।
अक्सर ननद अपनी मां को यही जवाब देते हुए दिखती, “मम्मी सारे काम क्या मुझसे करा लोगी, भाभी को क्या मुंह देखने के लिए लाई हो, मुझे भी बहुत से काम होते हैं।”
अब आए दिन काम को लेकर घर में तनाव रहने लगा। मेघा सुबह जल्दी उठकर नाश्ता तैयार कर जाती लेकिन जब तक घरवाले नाश्ता खाते तब तक वह ठंडा हो चुका होता। रोज डाइनिंग में खाने और घर की रख-रखाव को ले कर मेघा के लिए बातें बनने लगी। मेघा का पति भी अंदर से मेघा की तरक्की से आघात था लेकिन वह घर वालों के सामने मेघा का साथ देता। जिस की वजह से घरवाले उसे जोरू के गुलाम से पुकारने लगे।
सर्दियों का समय चल रहा था। बाहर अंधेरा हो चुका था और मेघा अभी तक घर नहीं आई थी। उसे आज ऑफिस में बहुत काम था। रात के खाने की कोई तैयारी नहीं हुई थी और मेघा की ननद भी अपनी किसी दोस्त के रहने चली गई। घड़ी की सुइयां देखते हुए बड़बड़ाते हुए मेघा की सास रात के खाने की तैयारी करने रसोई में चली गई।
उन्हें बड़-बड़ाते हुए काम करता हुआ देख मेघा के ससुर ने उनसे कहा, “सर पर पट्टा बांध कर क्यों काम कर रही हो। अगर तबीयत ख़राब है तो खाना मत बनाओ, आज हम में से कोई खाना नहीं खाएगा। इस घर में बहू-बेटी होने के बाद भी बीमार मां खाना बना रही हैं, किसी को कोई शर्म नहीं आती है।”
इतने में हांपते हुए मेघा घर की सीढ़ियां चढ़ घर के अंदर पहुंची ही थी कि आग-बबूला हुए उसके ससुर राशन-पानी लेकर मेघा पर चढ़ पड़े और गुस्से में बोले, “यह कोई तुम्हारे आने का टाइम है? हमने भी नौकरी की है। विनय कब से घर आ चुका है। तुम्हारे घर आने का अनोखा टाइम है। तुम घर की बहू हो, बेटी नहीं, तुम्हें अपनी जिम्मेदारियों का कोई एहसास है कि नहीं, रात के खाने का टाइम हो चुका है और तुम्हारा अता पता ही नहीं। देखो बीमार सास खाना बना रही हैं।” ऐसा बोलते हुए वह अपने कमरे में चले गए।
पिता समान ससुर की यह बात सुनकर मेघा पत्थर की सील के समान जड़ित हो गई और आंखों में आंसू लिए अपने को संभालते हुए अपना बैग सोफे में रख सीधे किचन की तरफ भागी। किचन में पहुंचते ही उसने अपनी सास के हाथ से कलछी लेते हुए कहा, “सॉरी मां आज बहुत काम था। देर हो गई। आपको क्या हुआ है? आप जाओ आराम करो मैं खाना बनाती हूं।”
गुस्से में बैठी हुई सास को मानो मेघा की आरती उतारने का अवसर मिल गया, “अब क्या करना है सारा काम तो मैंने कर लिया। तुम करो अपनी नौकरी और हां, तुम्हें इतना पता नहीं है कि बाहर से आकर पहले हाथ-मुंह धोते हैं फिर रसोई के सामान को छूते हैं?”
यह सुनते ही मेघा जल्दी से बर्तन धोने वाले सिंक में ही हाथ साबुन से धोने लगी और जल्दी से दूसरी तरफ रोटी बनाने लगी। सब को खाना खिला कर मेघा बर्तन धो, रसोई की सफाई आदि काम निपटा कर जैसे ही कमरे में गए तो विनय शुरू हो गए।
“यह देखो मेघा तुम्हारा सारा सामान बाहर वाले कमरे में बिखरा पड़ा हुआ था। तुम घर की साफ सफाई में ध्यान तो नहीं देती हो और सामान फैला देती हो, यह सारा सामान मैं उठाकर लेकर आया हूं। थोड़ा ध्यान रखा करो।”
मेघा को यह समझ में नहीं आ रहा था कि कल तक जो उससे बहुत प्यार करते थे, वो परिवार आज उसके खिलाफ होता जा रहा था। मेघा ने यह नौकरी परिवार की सहमति से ही की थी और परिवार वाले इस बात से बहुत खुश थे कि अब कमाने वाले हाथ बढ़ गए हैं जिससे घर की आमदनी में वृद्धि होगी। मेघा अपनी कमाई की एक मोटी रकम घर के कामों में खर्च कर देती थी और जितना उससे होता वह घर का काम भी मन लगाकर करती।
विनय भी मुंह बना कर सो गए और मेघा अपने कपड़े बदल कर ऑफिस का काम कर सो गई। सुबह वह जल्दी उठकर सारी साफ-सफाई तथा घर का काम कर ऑफिस चली गई और हाफ-डे की छुट्टी लेकर वह घर जल्दी आ गई।
यह देखकर घरवाले अचंभित हो गए और अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगे। कहीं मेघा ने कल की बात दिल में लगा कर नौकरी तो नहीं छोड़ दी? अगर उसने नौकरी छोड़ दी तो बैंक से लिया हुआ लोन की किस्त किस तरह से अदा की जाएगी?
मेघा कुछ देर आराम कर शाम की चाय के साथ पकौड़े तथा रात के खाना की पूरी तैयारी कर विनय का इंतजार करने लगी। विनय भी मेघा को घर में देखकर हैरान हो रहा था। माता-पिता के साथ वार्तालाप करने के बाद उसने मेघा से पूछ लिया, “क्या बात है मेघा तुम आज जल्दी कैसे आ गए, ऑफिस में सब ठीक तो है?”
मेघा सब के हाव भाव को समझ गई थी कि वह लोग यह सोच कर परेशान हो रहे हैं कहीं मेघा ने नौकरी तो नहीं छोड़ दी। मेघा उनके माथे में आई चिंता की लकीरों को पढ़ चुकी थी और बड़े ही विनम्रता से बोली, “आप लोग घबराए नहीं। मैंने नौकरी नहीं छोड़ी है। कल रात सोने में मुझे देर हो गई और आज सुबह में जल्दी उठ गई थी जिस कारण मेरी तबीयत खराब होने लगी और मैं छुट्टी लेकर घर आ गई।”
यह सुनकर कि मेघा ने नौकरी नहीं छोड़ी है ससुराल वालों के चेहरे खिल उठे, मेघा के सास-ससुर मेघा की तबीयत के बारे में ना पूछते हुए उसे नौकरी की अहमियत बताने लगे। मेघा इनकी दोहरी मानसिकता को देखकर हैरान हो रही थी। कल तक जो घर के कामों के लिए मेघा को कोस रहे थे आज वह उसे अपनी नौकरी पर ध्यान देने की नसीहत दे रहे हैं।
सब को खाना खिला कर मेघा जैसी ही रसोई में बर्तन साफ करने जाने लगी तो उसकी सास ने मेघा को उसके कमरे में जाकर आराम करने के लिए कहा। लेकिन यह देख मेघा ने अपनी सास की बात का जवाब देते हुए कहा, “मां जी मैं आराम कैसे करूं। आपकी तो तबीयत ख़राब है। आप रसोई का काम कैसे निपटा पाएंगी?”
सास बात संभालते हुए बोली, “अरे वह तो कल सर्दी के कारण मेरे सर में दर्द हो रहा था। आज मैं ठीक हूं। तुम जाओ अपने ऑफिस के काम निपटाओ। रसोई मैं और तुम्हारी ननद देख लेंगे।”
मेघा को आज अपनी बहन की बात का सार समझ में आ गया कि ससुराल को गेंदा फूल क्यों कहते हैं। वह मुस्कुराते हुए अपने कमरे में आई और अपने ऑफिस के काम में लग गई।
मूल चित्र : Still from Why & What Sabhyta ad, YouTube
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