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"आप फ़िक्र की बात कर रही हैं? फ़िक्र है तभी तो हर महीने विजय जी अपनी माँ को मोटी रकम भिजवाते हैं। अगर विश्वास ना हो तो पूछ लीजिये माँजी से।"
“आप फ़िक्र की बात कर रही हैं? फ़िक्र है तभी तो हर महीने विजय जी अपनी माँ को मोटी रकम भिजवाते हैं। अगर विश्वास ना हो तो पूछ लीजिये माँजी से।”
पूजा के बाद रमा जी आ कर बैठक में बैठी ही थी कि उनकी बहु सौम्या झट से चाय बना लायी।
“माँजी चाय गर्म ही पी लीजियेगा आपके पसंद की अदरक इलायची की चाय है और ये शॉल भी ओढ़ लीजिये मौसम बदल रहा है ठण्ड ना लग जाये आपको।”
सौम्या का यूं खुद का ख़याल रखता देख मन ही मन रमा जी ख़ुश हो रही थीं।
“ऐसी सुन्दर सुघड़ बहु बड़े भाग्य से मिलती है। जाने कौन से पुण्य किये होंगे जो ऐसी प्यारी बहु मिली मुझे”, रमा जी ये बात अपने हर आने जाने वालों को बताती रहती थीं।
रमा जी का छोटा सा परिवार था पति की मृत्यु कुछ साल पहले हो गई थी। दो बेटे थे अजय और विजय। अजय की नौकरी उसके पिता की जगह रमा जी ने लगवा दी थी। अपनी माँ के ये निर्णय विजय को पसंद नहीं आया था। जिस कारण विजय अपनी माँ और अपने भाई से चिड़ा सा रहता था अजय की नौकरी तो लग गई थी लेकिन आमदनी औसत ही थी वही विजय ने कड़ी मेहनत से ऊँचा पद पा लिया था।
सौम्या, अजय की पत्नी थी और दो साल पहले रमा जी के घर की बहु बन आयी थी। सौम्या का जैसा सुन्दर नाम वैसे ही गुण थे। अपनी सासूमाँ का आदर करना घर का काम-काज करना और सब का ख़याल रखना, हर काम में सौम्या सर्व गुण संपन्न थी।
कुछ समय बाद रमा जी ने देख सुन कर विजय की भी शादी रूपा नाम की लड़की से करवा दी। सौम्या और अजय ने अपने बड़े भाई भाभी होने के सारे फ़र्ज बहुत अच्छे से निभाये। समाज में सभी ने अजय और सौम्या की तारीफ मुक्तकंठ से की।
अजय जहाँ सीधा स्वाभाव का था वही विजय का स्वाभाव तेज़ था और उसकी पत्नी रूपा भी विजय के स्वाभाव जैसी आ गई। थोड़े दिनों में ही रूपा ने घर की सारी बातें जान ली और अपने पति को भड़काने लगी, “जब जेठ जी को ससुर जी की नौकरी बैठे बिठाये मिल गई है तो माँजी की जिम्मेदारी भी वही निभायें।”
विजय तो पहले ही इस बात पे अपनी माँ से थोड़ा नाराज़ सा था सो उसके मन में भी ये बात बैठ गई और स्वर्ग से सुन्दर घर में कलेश ने सेंध मार दी। आये दिन खटपट शुरू हो गई। थक कर रमा जी ने विजय से कह दिया अगर वो चाहे तो अलग हो सकता है। विजय भी इसी ताक में था बस बँटवारा हो गया और अपना हिस्सा के विजय अलग हो गया। अपनी जिम्मेदारी के नाम पे कुछ पैसे माँ को भेजने लगा जिससे कोई उसपे ऊँगली ना उठा सके।
रमा जी अपने छोटे बेटे बहु के व्यवहार से टूट सी गई थी और बीमार रहने लगीं। सौम्या एक पल भी अपनी सासूमाँ को अकेला ना छोड़ती। जो देखता कहता ऐसी बहु तो किस्मत वालों को मिलती है। देखते देखते साल से ऊपर बीत गया इस बीच एक बार भी विजय और रूपा पलट कर हाल पूछने ना आये अपनी माँ का।
कुछ समय बाद सौम्या को बेटा हुआ। छट्टी पूजन के लिये अजय के बहुत आग्रह करने पे विजय और रूपा घर आये। उनको देख रमा जी का चेहरा घृणा से भर उठा। छट्टी पूजन के लिये अजय की बड़ी बुआ भी आयी थीं। विजय और रूपा के व्यवहार से वो भी बहुत दुखी थीं। आज रूपा और विजय को देख उनका सब्र टूट गया।
“अरे रूपा बहु, इसी शहर में रहती हो और दो सालों में पहली बार ससुराल आ रही हो? क्या अपनी सासूमाँ की ज़रा भी फ़िक्र नहीं तुम दोनों पति पत्नी को? बँटवारा घर का हुआ है रिश्तों का नहीं। अपनी जेठानी को देखो कैसे अपनी सासूमाँ की सेवा करती है, कैसे रिश्तेदारी निभाती है।”
वाक्पटुता में निपुण रूपा कहाँ चुप रहने वाली थी। वह बोली, ” बुआ जी मैं तो चाहती हूँ माँजी मेरे साथ भी रहें, लेकिन जेठ जी और जेठानी जी से ऐसा मोह है उन्हें कि उनका कहाँ मन लगे हमारे घर पे? और आप फ़िक्र की बात कर रही हैं? अरे फ़िक्र है तभी तो हर महीने विजय जी अपनी माँ को मोटी रकम भिजवाते हैं। अगर विश्वास ना हो तो पूछ लीजिये माँजी से।”
अब तक चुप बैठी रमा जी का सब्र ज़वाब दे गया, “अरे वाह रूपा बहु! तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारी सास तुम्हारे पति के पैसों की भूखी है? मैंने तो तुम दोनों को नहीं कहाँ था मुझे पैसे भेजने को। इस उम्र में मैं रूपये पैसे की नहीं अपने बच्चों के आदर और प्रेम की भूखी हूँ। विजय के भेजे पैसे आज भी वैसे ही अकाउंट में पड़े हैं विश्वास ना हो तो दिखवा लेना। मेरे लिये तो अजय और सौम्या ही बहुत है जिनके पास धन भले कम हो लेकिन अपनी बूढ़ी माँ के लिये आदर भाव बहुत है।”
“माफ़ कीजियेगा माँजी, लेकिन फ़र्क तो अपने भी किया है अपने दोनों बेटों में। जेठजी को ससुर जी की नौकरी दिलवा दी और विजय जी से पूछा भी नहीं?” तैश में रूपा ने ज़वाब दिया।
“अब समझ में आया बहु तुम दोनों पति पत्नी के इस व्यवहार का असली कारण। तो सुनो रूपा बहु अजय शुरू से सीधा लड़का था और पढ़ाई में भी कमजोर था, वहीं विजय शुरू से मेधावी छात्र रहा। विजय को आसानी से अच्छी नौकरी मिल सकती थी जो मिली भी, इसलिए मैंने वो नौकरी अजय को दिलवाई।”
“याद रखना रूपा बहु, एक माँ बच्चों में कभी फ़र्क नहीं करती लेकिन कमजोर की फ़िक्र थोड़ा ज्यादा कर देती है इसका मतलब ये नहीं मैंने विजय को कम प्रेम किया है। मैंने कभी अपने दोनों बच्चों में फ़र्क नहीं किया है। और कुछ रूपये भेज मुझे पे एहसान जताने की कोई जरुरत नहीं बहु क्यूंकि जब दिल में आदर भाव ही नहीं तो फिर पैसे भेजनें का ढोंग क्यों करना?”
“मेरे लिये तो तुम दोनों बहुएं भी एक सामान ही हो मुझे तुम दोनों से कुछ नहीं चाहिये हां अगर हो सके तो महीने दो महीने में इस बूढ़ी माँ का हाल पूछ लेना। मेरी सेवा को चंद रूपये पैसे से मत तोलना रूपा बहु क्यूंकि बुजुर्गो को पैसा की नहीं बस दो मीठे बोल का लालच होता है।”
अपनी सासूमाँ की बातें सुन लज्जा से रूपा का सिर झुक गया। आज अपनी सासूमाँ की बातें सुन उसे अपनी गलती का आभास हो चला था।
मूल चित्र : Screenshot from Pehle Tum, YouTube
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