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उसकी उदासी बिजॉय तुरंत भांप गया और बोला, "कुछ वचन हम भी एक-दूसरे से लेना चाहते हैं। बोलो ना शर्मिष्ठा, मुझसे क्या वचन लोगी तुम?"
उसकी उदासी बिजॉय तुरंत भांप गया और बोला, “कुछ वचन हम भी एक-दूसरे से लेना चाहते हैं। बोलो ना शर्मिष्ठा, मुझसे क्या वचन लोगी तुम?”
दास बाबू का पूरा घर फूलों से सज हुआ था। रंग-बिरंगी लाइटों की रोशनी से घर जगमगा रहा था। घर के बाहर पूरी बारात के खाने पीने और सोने का इंतजाम था और अंदर शर्मिष्ठा और बिजॉय की शादी चल रही थी।
शादी की सभी रस्मों को बिजॉय और शर्मिष्ठा बहुत ध्यान से सुन रहे थे और आगे जाकर उन रस्मों को पूरे मन से निभाने का दृढ़ निश्चय भी कर रहे थे।
एक-एक करके विवाह की रस्में आगे बढ़ रही थीं और फिर आया सप्तपदी यानी की सात वचन और सात फेरे। फेरे शुरू होने के पहले शर्मिष्ठा ने पंडित जी से उन वचनों का मतलब समझना चाहा जो कि हर पति-पत्नी विवाह के समय एक दूसरे से लेते हैं, लेकिन सप्तपदी के वचनों को सुनकर शर्मिष्ठा उदास हो गई।
शर्मिष्ठा बोली, “मैं शादी के बाद भी अपने माता-पिता की ज़िम्मेदारी उठाऊंगी और उन्हें उतनी ही प्राथमिकता दूंगी जितनी कि आज तक देती आयी हूं।
जितनी प्रेम से मै तुम्हारे घर-परिवार को अपनाऊँगी उतने ही प्रेम से तुम मेरे परिवार को अपनाओगे।
मैं तुम्हारे माता-पिता की बेटी बनूंगी और तुम मेरे माता-पिता के बेटे।
अब बोलो, तुम्हे क्या वचन चाहिए?”
बिजॉय हंसकर बोला, “अरे! जो वचन मुझे चाहिए वो तुमने ही मांग लिए! चलो अच्छा है हम दोनों इन वचनों को साथ-साथ निभाएंगे।”
शर्मिष्ठा और बिजॉय ने सप्तपदी के वचनों के साथ-साथ अग्नि के सामने अपने खुद के भी वचन लिए। पूरा मण्डप तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
शर्मिष्ठा और बिजॉय के माता-पिता को अपने बच्चों की सोच पर गर्व हो रहा था। एक समझदार और सुलझा हुआ जीवनसाथी पाकर शर्मिष्ठा भी बहुत खुश थी।
मूल चित्र : Photo by UniQue PhotoGraphy By Sonam Singh from Pexels
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