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समाज के नाम पर, हे भगवान! कितना ध्यान रखोगे तुम, इतनी परवाह कि हमें आदत नहीं, इतनी परवाह करते रहे तुम, तो हो जाएगी हमारी भी आदत खराब।
दोहरा मापदंड अपनाते हैं,जरा उसकी पराकाष्ठा देखिए तो जनाब,खुद की बेटी मिनी पहनेऔर हम जींस पहने तो खराब।
खुद की बेटियां किसी से भी बात कर ले,उससे कोई फर्क नहीं पड़ता,लेकिन हम भाई के दोस्तों से भी बात कर ले,तो उसका देना पड़ता है हमें जवाब।
कहां गई थी,किसके साथ आ रही हो,कौन था वो,जो इतना मुस्कुरा कर बात कर रही हो।
हे भगवान! कितना ध्यान रखोगे तुम,इतनी परवाह कि हमें आदत नहीं,इतनी परवाह करते रहे तुम,तो हो जाएगी हमारी भी आदत खराब।
समाज के नाम परमेरे प्यारे दोस्तों,अपने घर में ध्यान दो,क्यों दूसरो के चरित्र परछींटे लगाने का देखते हो ख्वाब।
मूल चित्र : Sharath Kumar via Pexels
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