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ज़्यादा हँसने-बोलने की ज़रूरत नहीं है ससुराल में…

इधर चंचल की शादी हो गई। माँ ने पहले ही बोला था कि ज्यादा बोलना नहीं और कोई कुछ बोले तो 'खीखी' मत करने लगना।

इधर चंचल की शादी हो गई। माँ ने पहले ही बोला था कि ज्यादा बोलना नहीं और कोई कुछ बोले तो ‘खीखी’ मत करने लगना।

“चंचल ओ चंचल! कहाँ मर गई? ये हाल रहा तो क्या करेगी ससुराल में? मुझे तो समझ ही नहीं आता इस लड़की के तो पांव ही नहीं रुकते”, विजया जी परेशान होकर अपने पति सुबोध जी से बोलती हैं।

“क्या करेगी शादी के बाद, ज्यादा दिन भी नहीं बचे हैं आप कुछ कहते क्यूं नहीं?” सुबोध जी जो अखबार पढ़ रहे थे उन्होंने बातों को अनसुना किया।

इधर चंचल की शादी हो गई। माँ ने पहले ही बोला था कि ज्यादा बोलना नहीं और कोई कुछ बोले तो ‘खीखी’ मत करने लगना।

डरी हुई चंचल ससुराल में कुछ बोलती ही नहीं थी। उसको तो ससुराल के नाम से डरा कर जो भेजा गया था। कोई कुछ बोलता तो हां या ना वरना चुप।

रुचिका जी चंचल की सास, बहुत दिनों से ये सब देख रहीं थीं। सबके जाने के बाद उन्होंने चंचल को बुलाया अपने पास और पूछा, “बेटा मैं देख रही हूं जब से तुम आई हो चुप-चुप सी रहती हो। कुछ समस्या है तो बताओ।”

उनकी बात सुनते ही चंचल की आंखों से आंसू आने लगे। बोली, “मां ने बोला था कम बोलना, ज्यादा हंसने बोलने की जरूरत नहीं है ससुराल में। यही कारण है मैं कुछ बोल नहीं रही।”

रूचिका जी हंसते हुए बोलीं, “हम बेटी लाये हैं, पुतला नहीं जिसके अंदर कोई भावनाएं नहीं होतीं। तुम मेरी बेटी हो, जैसा मन करे वैसे रहो और हां गलती करेगी तो डांट भी पड़ेगी। तैयार है ना फिर?”

चंचल की आंखों से आंसू आ गये, बोली, “मां आप तो मेरी भी मां से बढ़कर हो। शादी और ससुराल के नाम से तो लड़कियों को बस डराया ही जाता है पर अगर आप जैसी मां मिल जाए तो ससुराल घर बन जाता है।”

ससुराल के नाम पर हर लड़की डरी रहती है और अगर परिवार अच्छा मिले तो जिंदगी की गाड़ी आसान हो जाती है।

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मूल चित्र : Photo by Krishna Studio from Pexels

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