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शादी के बाद सिर्फ मुझे ही बदलना पड़ता है, ऐसा क्यों?

हमारे देश में क्यूं ऐसा होता है कि सिर्फ लड़कियों को शादी के बाद इतनी बेड़ियों के जंजाल में जकड़ दिया जाता है? क्या ये कभी नहीं बदलेगा?

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हमारे देश में क्यूं ऐसा होता है कि सिर्फ लड़कियों को शादी के बाद इतनी बेड़ियों के जंजाल में जकड़ दिया जाता है? क्या ये कभी नहीं बदलेगा?

हमारे देश में क्यूं ऐसा होता है कि सिर्फ लड़कियों को शादी के बाद इतनी बेड़ियों के जंजाल में जकड़ दिया जाता है?

शादी के समय तो ये सोलह श्रृंगार बहुत सुहाते हैं, पर धीरे-धीरे कितनी कठिनाइयां होने लगती हैं ये कोई क्यूँ नहीं सोचता।

चाहे शादी के बाद हर सुबह तैयार होना हो, क्यूँकि आप रात में तो चूड़ियां, जेवर उतार कर सोते हैं, या बच्चा होने के बाद बच्चे की मालिश-नहलाना जैसा काम करना हो। अचानक बच्चे को चोट लग सकती है न?

पायल चुभती है, तो कभी जूती पहनने पर बिछिया उंगलियों में चुभ जाती हैं।

इस परंपरा को इतना महत्पूर्ण बना दिया गया है कि अगर कोई लड़की अच्छे से श्रृंगार करके न रहे और उसका पति किसी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर मे पड़ जाए तो दोषी उसी लड़की को ही ठहराया जाता है। जबकि, लड़के के चरित्र का विस्तृत विश्लेषण किया जाना चाहिए। हां कि नहीं?

मैं यह बिल्कुल नहीं कहना चाहती कि मुझे यह साज-श्रृंगार अच्छे नहीं लगते। मुझे ये अच्छे लगते हैं और मैं अपनी सुविधा अनुसार पहनती भी हूँ और यह मानती हूं कि दूसरों को भी अपनी सुविधा के अनुसार इन्हें पहनना चाहिए, पर जबरदस्ती मजबूरी में पहनना पड़े तो?

ये बातें बोलने के लिए शायद मुझे आलोचना का सामना भी करना पड़े, पर एक सच्ची बात यह भी है कि शादी हमारे देश और समाज में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन, अगर सब कुछ बदलता है, तो सिर्फ एक औरत के लिए, मर्दों के लिए कुछ भी नहीं बदलता।

एक औरत की पहचान, कपड़े पहनने से लेकर कपड़ों का चुनाव करने तक सब कुछ, काम करने के तरीके, बात करने का तरिका, खान-पान, मसलन हर छोटी चीज़ बदल जाती है। और धीरे-धीरे हम औरतें खुद को इन सभी बदलाव का आदि भी बना लेती हैं। पर क्या हो जब वापस इन सबको छोड़ना पड़े?

क्या होता है एक औरत के साथ जब उसका पति ना रहे तो? क्या ये एक एक चिन्ह जिसे इतने दिनों तक अपने अस्तित्व का बनाए रखा, छूट पातें हैं इतने आसानी से? क्या जीवन समाप्त हो जाता है वहीं उसी क्षण? नहीं ना? फिर क्यूँ ये समाज नहीं छोड़ देता एक औरत को वैसे जैसे वो अपना जीवन जीना चाहती है?

क्यूँ हर बार सफाई देनी पड़ती है हर छोटे बड़े फैसलों पर? क्यूँ हर बार खुद को सही होते हुए भी सही साबित करने की नाकाम कोशिश करनी पड़ती है?

क्या ये बातें आपके मन को कचोटती नहीं?

सोचिएगा जरूर क्यूँकि सोचेंगे तो सोच बदलेगी, नजरिया बदलेगा, एक पूरी पीढ़ी बदलेगी, शायद कहीं से कुछ नयी शुरुआत हो जाए।

मेरा नज़रिया अगर ठीक लगा हो तो कृपया कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं।

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मूल चित्र : Photo by DreamLens Production from Pexels

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Shivangi Srivastava

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