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शन्नो और अनस की शादी हो गयी, एक ही कपड़ों के जोड़े में बिना मेहँदी और चूड़ियों के शन्नो ब्याह दी गयी और अब उसके सारे सपने चूर-चूर हो चुके थे।
“शन्नो! कहां रह गई? अभी तक घर नहीं आई?”
“कहीं रुक गयी होगी”, अम्मा ने कहा।
“अम्मा मुझे इसका चाल चलन पसन्द नहीं। इसके कपड़े देखने का भी मन नहीं करता, अम्मा इतने ‘गन्दे और खुले हुए’ कपड़े।”
“हां! क्या करूं? इसके चाल चलन देख कर कोई भी इससे शादी नहीं करना चाहता ऊपर से सहानी जी का लड़का इसको घूर-घूर कर देखता रहता। डर है कहीं कुछ कर न बैठे।”
इतनी देर में शन्नो घर आ जाती है।
“आ गयी आवारागर्दी कर के?” अम्मा ने गुस्से में पूछा।
“अम्मा मैं बाज़ार गई थी मेकअप लेने, देखो मेरी जूती। अपनी कमाई हुई ईदी से लाई हूं।”
“इसको अंदर रख आ, वरना तेरे अब्बू और तेरा भाई अगर आ गए तो फिर वही इतवार की रात याद कर लेना।”
“अम्मा तुम भी बेकार की बातें मत किया करो, फ़िल्म देख कर पिट लिए थोड़ा सा तो क्या हुआ। अबकी बार मैं फिर से देवदास देखूंगी। तब तो अब्बा की पिटाई ने अधूरी कर दी थी फ़िल्म।”
“तू भी बेकार की बातें करती है”, अम्मा शन्नो को डांटती हुई बोलीं।
वहीं शन्नो के अब्बू शन्नो की अम्मा को चेतावनी देते हुए कहते हैं, “इसको कह दो कि अपनी लटों को पीछे रखा करे, नहीं तो गंजी ही करवा दूंगा। रानी, तुझसे मैंने कितनी बार कहा है शन्नो को काबू में रखो।”
पर शन्नो भी कहाँ चुप रहने वाली थी, “अब्बा बाल हैं तो दिखेंगे ही। इसमें गलत ही क्या है?”
“खाना नहीं खा रहा होता तो आज इसे मज़ा चखा देता।” अब्बू बोले।
शन्नो बहादुर होने के साथ-साथ आज़ाद ख्याल रखने वाली लड़की थी। उसको डांट और मार से कोई खास फर्क नहीं पड़ता था। रात को पिटी सुबह फिर वही काम।
“आज मैं 2 बजे तक आ जाऊंगा। शन्नो को देखने लड़के वाले आएंगे। मेहताब का कोई दोस्त है उसने रिश्ता बताया है। अधेड़ उम्र का है मगर अच्छा कमाता है। इसकी शादी करनी ज़रूरी है वरना पूरे शहर में बेइज़्ज़ती का ढिंढोरा पिटती रहेगी। मेहताब बहुत गुस्सा होता है इसकी आदत पर।”
“ठीक है मैं उसको तैयार कर दूंगी।” अम्मी ने कहा
“ज़्यादा तामझाम मत करियो। कहीं मेहताब फिर मारने को चढ़े उसको”, अब्बू बोले।
बहुत ध्यान रखने के बावजूद जैसे ही तैयार हो कर शन्नो आयी उसका भाई बोल पड़ा, “अम्मा इसका मुंह देखो कैसा पुता हुआ लग रहा है? इसको कह देना आज तो कम से कम ढंग से तैयार हो कर आए और आप इसको अपने कपड़े दे दो पहनने के लिए। इसके कपड़े इतने चुस्त होते हैं मुझे शर्म आ जाती है।”
शन्नो इतने में बोली, “मैं ऐसे ही जाऊंगी।”
“शन्नो क्यों गुस्सा दिला रही है मेहताब को, मान जा अपने भाई की बात”, अम्मी बोलीं।
खैर! शाम को शन्नो को देखने वाले आते हैं।
“लड़की का कद कामद तो ठीक है। मगर रानी बहन ये हमारे घर में चल नहीं पाएगी। आप तो जानती हैं अबरार के अब्बू जब से हज कर के आए हैं तब से बहुत पाबंद हो गए हैं। ये तो मेकअप लगाती है और बिना सर ढके सामने आई है। आप ही इसको कुछ समझातीं।” अब अम्मी बगलें झांकने लगीं और भाई आँखें दिखाने लगा।
लेकिन शन्नो को कोई फ़र्क़ न पड़ा, उल्टा इस बात पर कटाक्ष करते हुए वह बोल पड़ी, “आंटी माफ कीजिएगा आपने अपना सिर ढका हुआ है क्या? आपने तो अपने बालों में फूल लगाया हुआ है और साथ के साथ आपके चेहरे पर भी मेकअप है। आपकी बेटी जो आपके साथ है उसने तो जीन्स और सिर्फ कुर्ती डाली हुई है। इसका दुपट्टा कहां गया?”
“अरे! ये तो बड़ी ज़ुबांदराज है। मेहताब तुम्हारी बहन तो बड़ी घटिया है। ऐसी लड़की पर थू है। मैं इस घर का पानी भी नहीं पी सकती।”
“आंटी इसकी ज़ुबान दो दिन में ठीक हो जाएगी, आप जैसा चाहें वैसा रखें। शादी के बाद कहां जाएगी। जैसा आपको रखना होगा ये वैसा ही करेगी। माफी मांग शन्नो।”
“नहीं, मेहताब मैं ऐसी लड़की को अपनी बहू नहीं बना सकती।”
“आप पहले खुद की सोच को साफ कीजिए आंटी आपके घर के मर्दों ने शायद आपको भी उनकी सोच जैसा ही बना लिया है”, शन्नो ने कहा।
वो लोग तो चले गए लेकिन शन्नो शायद आज तक ऐसी तकलीफ में कभी नहीं रोई। उसके सारे कपड़े और उसका सारा सामान मेहताब ने जला दिया था। पूरे शहर में उसकी बदनामी होने लगी थी। लोग तरह तरह की बातें बनाते। शन्नो अब अपनी माँ के कपड़ों में क़ैद होकर रह गयी। बाहर आना जाना सब बन्द। उसकी हंसी की किलकारी और आवाज़ की खनक कहीं खो चुकी थी। 6 महीने बीत गए शन्नो घर की चारदीवारी में बंद कर दी गई।
फिर एक दिन शन्नो के अब्बू बोले, “रानी आज सहारनपुर वाले मौलाना आएंगे शन्नो को देखने। उनका एक बेटा है, दिल्ली में काम करता है कढ़ाई का।”
“मौलाना से बोलिए सीधी शादी कर लें। चार आदमी वो ले आएं चार यहां से हो जाएंगे।”
“ठीक कह रही है वैसे, मैं मेहताब से बात कर के देखता हूं।”
“हां अब्बा बिल्कुल ठीक। जल्दी भगाओ इसको। शादी के बाद ये जाने और इसका शौहर।”
“अब्बा आप जो भी करो, जैसा भी करो अब मुझे मंज़ूर है। मगर अम्मा मुझे दुल्हन ज़रूर बनाना। मैं इस घर से दुल्हन बन कर निकलना चाहती हूं। ऐसे खाली हाथ, बिना चूड़ी, बिना सजाये ना भेजना, ऐसे तो तो घर से जनाज़ा निकलता है।”
“नहीं, बहुत सादगी से शादी होगी। कोई चमक धमक करने की ज़रूरत नहीं।”
शन्नो और अनस की शादी हो गयी। एक ही कपड़ों के जोड़े में बिना मेहेंदी और चूड़ियों के शन्नो ब्याह दी गयी। उसके सारे सपने चूर-चूर हो चुके थे। उसका ख्वाब था कि वो शादी वाले दिन वो अपने सारे अरमान निकालेगी।
पहली रात अनस ने शन्नो से एक ही बात पूछी, “शन्नो तुमने अपने हाथों को इतना खाली क्यों रखा हुआ है?”
कोई जवाब न मिलने पर उसने कहा, “कोई बात नहीं शन्नो। तुम शायद थक गई हो सो जाओ। मैं भी सोने जा रहा हूं। बस एक बात करनी थी तुमसे।”
अनस ने शन्नो का हाथ पकड़ कर बोला, “ये डिब्बा तुम्हारे लिए है। इसमें कुछ है जो मैंने तुम्हारे लिए दिल्ली के मीना बाज़ार से खरीदा है। ये लो गजरे की लड़ियां और तुम्हारी मुंह दिखाई। मुझे पता नहीं तुमको क्या पसन्द है क्या नहीं। लेकिन इसमें कुछ चूड़ियां हैं धानी रंग की। मेरा सपना था मैं अपनी बीवी को शादी की पहली रात मुंह दिखाई में श्रृंगार दान दूं। तुमको ये सब पसंद आया?”
ये सब देख कर शन्नो अचंभित हो गयी। उसका मन कृषि से झूम उठा। उसे एक नयी आज़ादी महसूस हुयी और उसने कुछ ही पलों में उन सारी चीजों से खुद को सजा लिया और ये सब देख कर अनस भी खुशी से झूम उठा।
“देखो शन्नो तुम हमेशा मेरी दोस्त बन कर रहना। हम मियां और बीवी बाद में हैं पहले दोस्त। आज रात तुम मेरे लिए मेहँदी और सारे श्रृंगार करोगी? मुझे अच्छा लगेगा देखो ये लाल सुर्ख शादी का जोड़ा तुम्हारे लिए लाया हूं।”
शन्नो समझ गई थी सारे आदमी मेहताब नहीं होते कुछ अनस भी होते हैं। और अब उसके अपनी ज़िन्दगी जीने के दिन आ गए थे…अनस के साथ!
मूल चित्र : Jessicaphoto from Getty Images Signature via Canva Pro
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