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प्यार तो दोनों को ही था एक दूसरे से पर नासमझी से दोनों की बुद्धि फिर गई थी...नीता और अमित की कहानी हर रिश्ते के उतार चढ़ाव को दर्शाती है।
प्यार तो दोनों को ही था एक दूसरे से पर नासमझी से दोनों की बुद्धि फिर गई थी…नीता और अमित की कहानी हर रिश्ते के उतार चढ़ाव को दर्शाती है।
“मैं तो फंस गया शादी कर के!”
“तुम नहीं, मैं फंस गई तुमसे शादी कर के!”
अमित और नीता सुबह से बहस कर रहे थे। सात आठ महीने की नई-नई शादी में रोज़ के झगड़ों से अमित परेशान हो उठा था। आज भी सुबह से नीता ने ज़िद पकड़ ली थी गोवा जाने की।
“देखो नीता अभी नई शादी है मुझे हम दोनों के लिये घर भी लेना है अभी मैं इतने खर्चे नहीं कर सकता।”
“क्यों नहीं कर सकते खर्च? इतनी अच्छी तो नौकरी है और फिर कितने वादे किये थे सगाई के बाद तुमने? आखिर वैलेंटाइन डे आकर भी चला गया। रोज़ तो आते नहीं ऐसे दिन। सब कहीं ना कहीं घूमने तो जाते ही हैं। मेरे जीजाजी को देखो शादी के सात साल बाद भी वैलेंटाइन डे पे दीदी को घुमाने लें कर जाते हैं और एक मेरा पति है”, नीता ने रोते हुए कहा तो अमित भी नाराज़ हो उठा।
“हर बात पे जीजाजी को क्यों लें आती हो तुम हां? नहीं कमाता तुम्हारे जीजाजी जितना मैं।”
दोनों की अर्रेंज मैरिज थी। शादी के बाद नीता पति के साथ दिल्ली आ गई। शादी के शुरुआत के दिन में दोनों खुब घूमते बाहर खाते-पीते थे। कुछ समय बाद जब शादी का खुमार अमित के सर से उतरा और आटे दाल का भाव मालूम चला तो अमित को रोज़ रोज़ बाहर घूमना खाना-पीना अखरने लगा। आखिर नई-नई नौकरी थी और आमदनी भी ज्यादा नहीं थी, ऊपर से दिल्ली जैसे महानगर का खर्च भी ज्यादा होता था।
दिन भर घर में नीता बोर हो जाती थी और जब अमित को कहीं चलने को कहती तो अमित बहाने बना देता बस फिर क्या था छोटे-छोटे नोंक-झोंक अब लड़ाइयों में बदलने लगे। अमित को लगता कैसी नासमझ बीवी मिल गई, वही नीता सोचती अब अमित उससे प्यार नहीं करता। गलतफहमी की दीवार खड़ी हो चुकी थी और कोई बड़ा भी नहीं था जो दोनों को समझाता।
आज भी वही हुआ लड़ाई शुरू हुई और गुस्से में अमित अपना डब्बा ले निकल पड़ा । लंच टाइम में डब्बा खोला ही था की एक दो दोस्त भी आ गए अपना डब्बा ले के।
“अरे! अमित, चखा तो कैसी सब्ज़ी बनाई है भाभी ने?”
रवि ने कहा तो अमित संकोच से भर गया अभी नीता इतना अच्छा खाना बना नहीं पाती थी। वहीं उसके दोस्त की बीवियां बहुत अच्छा खाना बनाती थीं। अभी अमित कुछ कहता तब तक रवि ने एक चम्मच सब्ज़ी निकाल कर खा ली, “अरे ये क्या शायद नमक डालना भाभी भूल गई।”
“हां भाई, नई शादी में फीकी सब्ज़ी भी पनीर से कम थोड़े लगती है”, अशोक ने व्यंग से कहा तो सारे दोस्त हँसने लगे।
अमित तो पहले ही नीता से नाराज़ था, इस सब्ज़ी वाली बात पे और भी उखड़ गया। शाम को घर आके लड़ने लगा नीता से, “क्या है नीता एक सब्ज़ी भी ठीक से नहीं बनती तुमसे? कितना शर्मिंदा होना पड़ा आज तुम्हारे कारण मुझे। सब हॅंस रहे थे।” गुस्से से चीखता अमित, नीता को डांटने लगा।
“देखो अमित सुबह जल्दी-जल्दी में भूल गई नमक डालना। अब आठ बजे निकलना होता है तुम्हें इतनी सुबह सुबह मुझसे नहीं होता”, नीता ने दुगनी तेज़ आवाज़ में जवाब दिया।
“ये क्या बात हुई अपनी गलती मान सॉरी बोलने के बजाय तुम बहस कर रही हो मुझसे? अरे! कहाँ फँस गया तुमसे शादी कर? इतना बचपना है तुममें।”
अमित ने कहा और दोनों की बहस ने जोरदार झगड़े का रूप ले लिया। गुस्से में अमित ने पैर पटकता और घर से निकल गया। इधर नीता ने भी रोते हुए अपने रूम का दरवाजा बंद कर लिया।
रोते-रोते नीता की आंख लग गई, जब नींद खुली तो घड़ी में सुबह के पांच बज रहे थे। रूम से बाहर हॉल में देखा तो अमित कहीं नहीं दिखा। बाथरूम, किचेन कहीं भी नहीं था अमित। अब नीता को थोड़ी चिंता और डर दोनों लगने लगा। जल्दी से फ़ोन किया अमित पर उसका फ़ोन तो घर पे ही था।
नीता का गुस्सा ठंडा हो चूका था, पर अब खुद पे गुस्सा आ रहा था, “कितना परेशान करती हूँ मैं अमित को। दिन भर का थका इंसान पानी भी नहीं पूछा और लड़ने लगी और कुछ हो गया अमित को तो मैं क्या करुँगी?”
अमित का चेहरा उसकी हँसी आँखों के सामने तैरने लगी और नीता के आंसू गिरने लगे, “क्या करे कहाँ जाये ढूंढ़ने? हे प्रभु! मेरे अमित को सही सलामत घर भेज दो। मैं अब कभी लड़ाई नहीं करुँगी।”
अमित भी लड़ के निकल तो आया था, अब जाये कहाँ? तो पार्क के बेंच पे लेट गया। जब गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ तो नीता की याद आने लगी, “उफ़! कुछ ज्यादा ही बोल दिया मैंने। अभी सीख ही तो रही है, अनुभव भी तो नहीं है उसे। कितना रो रही थी।”
वादा किया था कभी आँखों में आंसू नहीं आने दूंगा और अब मेरी वजह से…। थोड़ा घूमने और खाने का शौक ही तो है। ज्यादा नहीं तो महीने में दो-तीन बार तो ले ही जा सकता था। गोवा ना सही दिल्ली ही घुमा देता आखिर पहला वैलेंटाइन डे था हमारा।”
प्यार तो दोनों को ही था एक दूसरे से, पर नासमझी और अहं से दोनों की बुद्धि फिर गई थी। सुबह की पहली किरण के साथ भूखा प्यासा अमित घर लौटा। अमित को देखते नीता गले लग रोने लगी।
“ऐसा क्या कर दिया था मैंने जो तुम मुझे छोड़ के चले गये? कुछ हो जाता तुम्हें तो मैं क्या करती बताओ? अब माफ़ भी कर दो अमित अब मैं कभी फालतू के खर्चे नहीं करवाउंगी। ना ही कहीं घुमाने ले जाने को कहूँगी।”
“नहीं नीता, तुम मुझे माफ़ कर दो। गुस्से में ज्यादा ही बोल गया”, अपनी नीता के आंसू पोछते हुए अमित ने कहा।
“बताओं कब चलना है गोवा? अभी टिकट करवाता हूँ।”
“नहीं अमित, मुझे कहीं नहीं जाना। तुम्हारा साथ तुम्हारा प्यार हो तो मेरे लिये हर डे वैलेंटाइन डे है।”
“मेरी नीता इतनी समझदार कब हो गई?” हँसते हुए अमित कहा तो रोते रोते नीता भी हॅंस पड़ी।
दोनों पति पत्नी एक दूसरे को माफ़ कर एक बार फिर से दोनों प्रेम के पंछियों ने विश्वास, प्रेम और समझदारी से अपने जीवन की शुरुआत की।
मूल चित्र: Photo by Joy Deb from Pexels
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