कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

सदियों बाद आज फिर ज़िंदा हो रही हूँ मैं…

एक सदियों पहले ही मर चुकी थी, एक अचानक से नई उगी थी। एक ने पहन लिया था सन्नाटा, एक आंदोलन चला रही थी...

एक सदियों पहले ही मर चुकी थी, एक अचानक से नई उगी थी। एक ने पहन लिया था सन्नाटा, एक आंदोलन चला रही थी…

एक स्त्री डरी हुई थी,
एक स्त्री डरा रही थी।
एक भाग रही थी,
एक भगा रही थी।

एक ने काढ़ रखा था लंबा घूंघट,
एक अपनी बोली लगा रही थी।
दूर खड़ी एक स्त्री किसी दूसरी की कहानी सुना रही थी,
इधर एक स्त्री खुद खबर बनी अखबार बिकवा रही थी।

एक फूलों सजे मंच पर चढ़ी थी,
दूसरी जमीन पर बैठी उसे देखकर ताली बजा रही थी।
एक लंबी चुप्पी तानकर सो चुकी थी,
दूसरी अभी रोकर उठी थी।

एक सदियों पहले ही मर चुकी थी,
एक अचानक से नई उगी थी।
एक ने पहन लिया था सन्नाटा,
एक आंदोलन चला रही थी।

इनमें से किसी को नहीं पता,
वे अपने स्त्री होने की कीमत चुका रही थी।

मूल चित्र: Pexels

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

98 Posts | 300,174 Views
All Categories