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जब श्वेता तिवारी घरेलू हिंसा पर खुल कर बात कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं?

श्वेता तिवारी और जाने कितनी महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है लेकिन इनमें से कई चुप रहीं कितने कारणों की वजह से। 

श्वेता तिवारी और जाने कितनी महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है लेकिन इनमें से कई चुप रहीं कितने कारणों की वजह से। 

“बस एक थप्पड़ है लेकिन मार नहीं सकते!” ये केवल एक फ़िल्मी डायलॉग नहीं है अपितु एक बेहद कड़वी और बदरंग सच्चाई है समाज की जहाँ थप्पड़ मारना आम बात है। भारतीय समाज में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार कोई नई बात नहीं है।

भारतीय समाज एक पुरुषप्रधान समाज है जहाँ पुरुष अपने वर्चस्व को बरकरार रखने के लिये महिलाओं के स्वाभिमान को दबा कर रखने में विश्वास करते हैं और इसके लिये वो बल प्रयोग करने से भी नहीं पीछे हटते। अपनी मर्दानगी साबित करने के लिये घर में महिलाओं पे हाथ उठाना जैसे मामूली बात होती है इन पुरुषों के लिये।

सबसे दुखद स्थिति तो तब होती है जब कई बार महिलायें अपने हक़ के लिये आवाज़ ही नहीं उठा पातीं।  समाज का भय या फिर पुरुष समाज में उनकी बातें कौन सुनेगा ये सोच कर वो घरेलु हिंसा को अपनी नियति मान चुप रह जाती हैं।

यहाँ मैं श्वेता तिवारी के एक बेहद इमोशनल वीडियो का जिक्र करना चाहूंगी जो उन्होंने कुछ दिनों पहले इंस्टाग्राम पे जारी किया। श्वेता तिवारी खुद घरेलू हिंसा का शिकार रही हैं, एक नहीं दो-दो बार और इस इमोशनल वीडियो में श्वेता के आँखों में मुझे वही दर्द दिखा जो एक आम महिला के आंखों  में होता है।

किसी सेलिब्रिटी का घरेलू हिंसा के मुद्दे पे मुखर हो समने आना उन औरतों को, जो इस स्थति से गुजर रही हैं, एक सकारात्मक सन्देश देता है। इससे एक बात तो साबित हो गयी कि वर्ग कोई भी हो पुरुष मानसिकता वही होती है, जहाँ वो औरतों को अपने से कमतर ही समझते हैं।

वीडियो के द्वारा श्वेता बताती है, “मैंने अपनी लाइफ में बहुत कुछ सहा है लेकिन मैं नहीं चाहती कि  पलक (उनकी बेटी ) कभी ऐसी स्थति से गुज़रे।” श्वेता आगे कहती हैं कि जब भी उन्होंने खुद को कमजोर पाया तो उन्होंने अपने अच्छे दिनों की कल्पना की। साथ ही कहा कि वो हमेशा पलक के साथ खड़ी रहेंगी और कभी उसे अकेला महसूस नहीं होने देंगी।

श्वेता ये भी कहती हैं कि कई महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है लेकिन वो चुप रहती हैं क्यूंकि उन्हें लगता है कि यह उनके बच्चों को प्रभावित करेगा। लेकिन आपकी चुपी से आपके बच्चे सीखते हैं। वे घरेलू हिंसा को स्वीकार करना सीखेंगे और अगर आप इसके खिलाफ कदम उठाती हैं तो वो मजबूत बनेंगे और सही गलत के बीच फैसला लेना सीखेंगे।

दो शादियां और दोनों ही में घरेलू हिंसा किसी भी महिला के मनोबल को तोड़ने के लिए काफी है, लेकिन श्वेता एक बेहद मजबूत महिला हैं और बिना समाज के दबाव में आये उन्होंने शादी से निकल जाना ही उचित समझा। शादी निभाते हुए हिंसा बर्दाश्त करना उन्हें स्वीकार्य नहीं था।

लोगों द्वारा श्वेता के घरेलू हिंसा के खिलाफ उठाये गए कदम की काफ़ी आलोचना भी हुई। इस आलोचना के ऊपर श्वेता कहती हैं कि “मैंने जो किया उसने मेरी बेटी को बुद्विमान और मजबूत बनाया है।”

आगे बढ़ने से पहले ये जानना आवश्यक है कि घरेलु हिंसा क्या है? किसी भी महिला या बच्चों के साथ होने वाले शारीरिक, लैंगिग, मौखिक एवं मानसिक हिंसा को घरेलु हिंसा माना जाता है।

घरेलू हिंसा के कारण

घरेलु हिंसा के मुख्य कारण एक नहीं अनेक होते है लेकिन मुख्य तो पतियों की वो मूर्खतापूर्ण मानसिकता होती है जहाँ वो महिलाओं को खुद से हर मामले में कमतर मानते हैं। कई बार दहेज़ से असंतुष्टि, शारीरिक संबन्ध बनाने से इंकार करना, महिलाओं का बाँझपन, महिला का किसी बात से इंकार करना जैसे कई अनगिनत कारण होते हैं घरेलु हिंसा के।

अकसर मैं सोचती हूँ क्यों पुरुष घरेलू हिंसा करते हैं और जहाँ तक मेरे विचार हैं तो पति बने पुरुष हिंसा का रास्ता इसलिए अपनाते हैं क्यूंकि वे केवल इस माध्यम से वो सब प्राप्त करना चाहते हैं  जिनपे वो अपना हक़ समझते हैं। हिंसा का प्रयोग कर अपनी पत्नी या किसी भी महिला के जिंदगी को अपने नियंत्रण में करना एक बेहद निंदनीय प्रयास है।

क्यों रहती हैं महिला ऐसे हिंसक माहौल में

जब भी हम किसी महिला को ऐसी स्थति में देखते है तो पहला सवाल यही ज़हन में उठता है, “आखिर क्यों है वो महिला ऐसे पुरुष के साथ? निकल क्यों नहीं जाती ऐसी शादी से?”

लेकिन यक़ीन मानिये जितनी आसानी से हम ये कह जाते हैं उससे कई गुणा मुश्किल एक महिला के लिये होता है उस हिंसक माहौल से निकलना। हमारे समाज में बचपन से लड़कियों को सिखाया जाता है पुरुष और पति ही सब कुछ है तो ऐसे में कई बार महिला इस आशा में जीवन गुजार देती है कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा।

जो महिला बाहर जाने का विचार करती है वो ये सोच कई बार रुक जाती है की समाज और धर्म क्या कहेगा? कई बार शिक्षा और दक्षता की कमी तो कई बार पैसे और सुरक्षा का अभाव भी होता है। ऐसे अनगिनत कारण हैं जो महिलाओं को घरेलु हिंसा को अपनी नियति मान चुप रहने पे मजबूर करते हैं। 

बच्चियों को सहना नहीं लड़ना सिखायें

पुरुषों की कुंठित मानसिकता होती है कि वो मर्द हैं और औरत उसके इशारे पे ही चलेगी वर्ना वो हिंसा का प्रयोग कर महिला को नियंत्रण में कर लेंगे। ऐसी मानसिकता कहीं ना कहीं हम ही अपने बच्चों में रोपते हैं।

अकसर लड़कियों को कहा जाता है ससुराल तुम्हारा घर है और पति देवता। लड़के बचपन से अपने पिता को जैसा व्यवहार करते देखते हैं और वैसा ही बड़े होने पे करते हैं। बहुत जरुरी है हम अपनी बच्चियों को सशक्त बनायें जो कि शिक्षा से ही संभव है। साथ ही लड़कों की भी परवरिश ऐसी हो कि वो औरतों का सम्मान करना सीखें।

अब समय आ गया है कि लड़कियों को जुल्म और हिंसा को सहना नहीं उससे लड़ना सिखायें और इसके लिये महिलाओं को खुद आगे आना होगा। महिलाओं को खुद घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठानी होगा।

समझदारी दिखायें और आगे बढ़ें

श्वेता तिवारी के वीडियो से महिलाओं को जरूर सीख लेनी चाहिये और घरेलू हिंसा का शिकार होने के बजाय हिंसा का विरोध करना चाहिये। आज सरकार भी घरेलु हिंसा के मामले में बहुत कड़े कानून बना रही है।

हर जिले में सुरक्षा अधिकारी मौजूद होते हैं बस जरुरत है तो हिम्मत की और समाज और लोग क्या कहेंगे इस सोच से निकलने की, क्यूंकि कोई आपकी मदद तभी कर सकेगा जब आप खुद आगे बढ़ मदद मांगेंगी।

दरवाजे के पीछे होने वाले ऐसे हिंसक रवैया महिलाओं के मनोबल और आत्मविश्वास को तोड़ते हैं।  ये एक ऐसा चक्र है जो कभी खत्म नहीं होता तो इस आशा में कि “एक दिन सब ठीक होगा ” रहना समझदारी नहीं है। साथ ही ये भी गुजारिश करुँगी कि चुप ना रहें और घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की मदद के लिये आगे बढ़ें।

जब स्वेता तिवारी घरेलू हिंसा पर खुल कर बात कर सकती हैं तो हम क्यों नहीं?

मूल चित्र :

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