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क्या एक दिन बेटा अपने ससुराल में खाना खा ले, तो वो अपने परिवार से दूर हो जाएगा? क्या त्यौहार सिर्फ आपके घर है, आपकी बहु के मायके में नहीं?
जैसे जैसे होली का त्यौहार पास आ रहा था दिव्या का दिल उदास सा हो रहा था। दिव्या की शादी को अभी कुछ ही महीने बीते थे और शादी के बाद होली पहला त्योहार पड़ रहा था। पर बाकि लड़कियों की तरह वो चाह कर भी ख़ुश नहीं हो पा रही थी।
हमेशा चहकने वाली दिव्या की उदासी उसके ससुराल वाले भी भाँप गए थे, पर पूछने पे दिव्या बस मुस्कुरा कर रह जाती। आखिर क्या कहती? शादी के बाद एक लड़की की जिम्मेदारी उसके ससुराल पक्ष की भी तो थी।
दिव्या अपने मम्मी पापा की इकलौती बेटी थी। बहुत मन्नतों के बाद दिव्या का जन्म हुआ था। दिव्या के मम्मी पापा की जिंदगी दिव्या के इर्द-गिर्द ही थी। कोई त्यौहार हो या दिव्या का जन्मदिन दोनों बहुत उत्साह से मनाते थे।
इकलौती बेटी के लिये, ससुराल भी अपने शहर में ही ढूंढा था उन्होंने कि बिटिया से मिलते-जुलते रहेंगे। लेकिन कहाँ किसी ने सोचा था, दिव्या की सासूमाँ को बिलकुल पसंद नहीं था दिव्या का मायके जाना और ख़ास कर दिव्या के पति अलोक को तो वो बिलकुल दिव्या के घर भेजना नहीं चाहती थी। जब भी दिव्या के मम्मी पापा खाने पे या यूं ही कभी मिलने मिलाने को बुलाते, वो कोई बहाना बना मना कर देती। दिव्या को बहुत बुरा लगता लेकिन चुप रह जाती।
इस बार भी दिव्या की मम्मी ने दिव्या की सासूमाँ को फ़ोन कर होली के दिन मिलने के लिये बुलाया। लेकिन सासूमाँ ने साफ साफ कह दिया, “कैसी बात कर रही है आप बहनजी त्यौहार के दिन कोई कैसे आ सकता है?”
“अगर आप दिव्या और दामाद जी को भेज देती तो थोड़ी रौनक मेरे घर भी हो जाती”, दिव्या की माँ ने मिन्नत करते हुए कहा।
लेकिन सासूमाँ ने दो टूक ज़वाब दे दिया, “अब दिव्या इस घर की बहू है। त्यौहार मना ले फिर किसी दिन आपसे मिल आएगी।”
सासूमाँ की बातें दिव्या भी सुन रही थी। उसे बहुत दु:ख हुआ। दिव्या का बुझा चेहरा अलोक से भी छुपा नहीं रहा।
“क्या बात है दिव्या, तुम उदास क्यों लग रही हो? कोई बात है तो बताओ?”
“वो अलोक बात ऐसी है कि मम्मी ने होली के लिये हम सब को शाम में खाने पे बुलाया है। आपको तो पता ही है ये पहली बार होगा की हमारी शादी के बाद कोई त्यौहार वो अकेले मनाने वाले है।”
“तो इसमें उदास होने की क्या बात है? आज मम्मी जी का फ़ोन मुझे भी आया था और मैं तो पहले ही सोच रहा था तुम्हें शाम को घुमा लाऊंगा तुम्हारे घर से और अब तो मम्मी जी खुद बुला रही है तो जरूर चलेंगे हम।”
अलोक से आश्वासन पा दिव्या के चेहरे की खोई रौनक लौट आई। वह होली की तैयारी उत्साह से करने लगी। दिव्या को ख़ुश देख सासूमाँ ने भी सोचा, शायद माँ ने बेटी को समझा दिया होगा। त्यौहार के दिन दिव्या ने तरह तरह के व्यंजन बनाए, सास ससुर के पैरों पे रंग डाल आशीर्वाद लिया, थोड़ी होली अलोक के साथ और आस पास की औरतों के साथ भी खेली।
शाम को अलोक और दिव्या को तैयार हुआ देख सासूमाँ चौंक उठी।
“ये कहाँ जाने की तैयारी है?”
“मम्मी जी का फ़ोन आया था, माँ। उन्होंने हम दोनों को खाने पे बुलाया है। होली का त्यौहार भी है, तो दिव्या भी मिल लेंगी अपने मम्मी पापा से।” इतना कह अलोक और दिव्या निकल गए। लेकिन अलोक की माँ के मन में ये बात बैठ गई, कि मेरे मना करने पर भी दिव्या अपने घर चली गई और साथ में मेरे बेटे को भी ले गई।
दिव्या और अलोक को घर पे देख, दिव्या के मम्मी पापा बहुत ख़ुश हो गए। बेटी के घर आते ही जैसे बेजान घर में जान सी आ गई। ख़ुशी ख़ुशी वक़्त बिता के दिव्या और अलोक घर लौट आए।
अगले दिन जैसा की दिव्या को अनुमान था, सासूमाँ बेहद नाराज़ दिखी।
“मम्मी जी, आप नाराज़ क्यों है? नाश्ता भी नहीं किया?” दिव्या ने अपनी सास से पूछा।
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बहु, मेरे मना करने पर भी अपने घर जाने की?” सासूमाँ ने ग़ुस्से में जवाब दिया।
“लेकिन मम्मी जी, अलोक जी को मेरी मम्मी का फ़ोन आया था। उन्होंने बुलाया तो हम चले गए।”
ताना मारते हुए सासूमाँ ने फिर दिव्या को जवाब दिया, “अलोक को क्या पता, सगे सम्बन्धियों से कितना संबन्ध रखना है कितना नहीं?”
दिव्या अपने सासूमाँ की बातें सुन बेहद आहत हो गई। जब से वो शादी करके आयी थी, अलोक के मम्मी पापा को अपने मम्मी पापा समझ सेवा की। यहाँ तक की एक शहर में होते हुए भी, बिना मम्मी जी से पूछे कभी अपने घर भी नहीं गई। क्या सारी अपेक्षा सिर्फ बहु से ही होती है? क्या एक दिन अलोक मेरे घर खाना खा लेंगे तो वो अपने परिवार से दूर हो जाएँगे? दिव्या ने मन ही मन उदास हो सोचा।
शाम को अलोक ऑफिस से आया तो दिव्या की सूजी हुई ऑंखें और मम्मी का नाराज़ चेहरे ने सब कुछ बयां कर दिया।
“क्या बात हो गई माँ आप नाराज़ क्यों दिख रही है? दिव्या या मुझसे कोई गलती हुई क्या?” आलोक ने प्यार से अपनी माँ से पूछा।
“मुझसे क्या पूछ रहा है? जा कर अपनी पत्नी से पूछ। उसी के कहने पे तो सारे काम कर रहा है तू आज कल”, आलोक की माँ ने तुरंत कठोर ज़बान में जवाब दिया।
“ऐसा क्यों कह रही हो माँ?” आलोक ने फिर से अपनी माँ से पूछा।
“कल जब मैंने दिव्या को मना किया था की त्यौहार के दिन मायके नहीं जाना, फिर क्यों गई वो और तुझे भी अपनी तरफ कर लिया?” आलोक की माँ ने गुस्से में कहा।
“ये क्या कह रही है आप माँ? दिव्या की मम्मी का कॉल आया था मुझे और अगर नहीं भी आता तो भी मैं दिव्या को उनसे मिलवाने ले जाता”, आलोक ने अपनी माँ से कहा।
“क्या मैं जान सकती हूँ अलोक, इतनी जल्दी सासूमाँ से तुझे इतना लगाव कैसे हो गया? और जो मैंने तुझे सीने से लगा बड़ा किया उसका क्या? क्या चाहती थी मैं, बस इतना ही ना की मेरे बच्चे त्यौहार के दिन घर पे रहे।” आलोक की माँ ने भावुक हो कहा।
“बस माँ, आपके सवाल में ही आपका जवाब छिपा है। ज़रा सोचिये माँ, जैसे आप चाहती है आपके बच्चे आपके घर रहे, वैसे ही उनकी भी तो इच्छा होगी दिव्या के साथ त्यौहार मनाने की। दिव्या अपने मम्मी-पापा की अकेली संतान है, और शादी के बाद पहला त्यौहार आया था। कितना सूना लग रहा होगा उन्हें। ऐसे में अगर थोड़ी देर उनके साथ हम दोनों ने भी त्यौहार मना लिया तो उनका त्यौहार भी खुशियों से भर उठा।” आलोक ने अपनी माँ को समझाने की कोशिश की।
“माँ, आप मेरी माँ हो। इस दुनियाँ में, मैं सबसे अधिक प्यार आपसे करता हूँ। लेकिन शादी के बाद जो रिश्ते मुझसे जुड़े हैं, उनके प्रति मेरी भी कुछ जिम्मेदारी है।”
“क्या बेटियों के माता-पिता को अधिकार नहीं, अपनी बेटी के साथ त्यौहार की खुशियाँ मनाने का, माँ?” अलोक की बातों का उसकी माँ के पास कोई जवाब नहीं था, सिवाय एक चुप्पी के।
जाने अपने बेटे की बात से वो कितनी सहमत हो पायी, लेकिन दरवाजे के पास खड़ी दिव्या के लिये होली का त्यौहार ढेरों खुशियाँ ले कर आया था। आज दिव्या को उसके जीवनसाथी के सोने जैसे दिल से परिचय जो हो गया था। दिव्या के लिये ये होली यादगार होली बन गई थी।
मूल चित्र: BeautyFest Via Youtube
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