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और उसने परफ्यूम के साथ-साथ समय को भी सूंघना सीख लिया…

वह परफ्यूम की इतनी शौकीन रही है कि बहुत कीमती तथा आसानी से ना मिलने वाली सुगंध खरीद खरीद कर जमा करती रही।

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वह परफ्यूम की इतनी शौकीन रही है कि बहुत कीमती तथा आसानी से ना मिलने वाली सुगंध खरीद खरीद कर जमा करती रही।

ना जाने कितने दिन से नीता सोच रही थी कि ड्रेसिंग टेबल की सफाई कर दे। कितना ही सामान ऐसा था जो अब किसी प्रयोग में नहीं आता पर ड्रेसिंग टेबल की ड्रॉअर में रखा था। ड्रेसिंग टेबल थी ही इतनी बड़ी। चूड़ियां, मेकअप का सामान, नेलपॉलिश , कंघे आदि के अलावा शैंपू कंडीशनर आदि का नया स्टॉक रखने के लिए भी काफी स्थान था। बस इसीलिए परफ्यूम की शीशियां इकट्ठी होती रहीं और उसने ध्यान ही नहीं दिया।

आज जब वह सफाई करने बैठी तब हर शीशी को उठा कर देखने लगी कि कहीं उसमें परफ्यूम तो नहीं बचा। वैसे भी वह परफ्यूम की इतनी शौकीन रही है कि बहुत कीमती तथा आसानी से ना मिलने वाली सुगंध खरीद खरीद कर जमा करती रही।

सबसे पहले उसने वह शीशी उठाई जो लगभग खाली थी और सबसे पुरानी लग रही थी। उत्सुकता वश उसे खोल कर सूंघने लगी। ऐसा लगा जैसे तन मन महक गया हो। सुगंध के साथ-साथ लंबे खुले लहराते अपने बाल, हाथों में खनकती चूड़ियां, खिलखिलाती हंसी तथा कीमती साड़ी का आंचल उसे स्पर्श करने लगा। बहुत प्यार से उसे सीने से लगाकर नीता अपनी शादी के समय को याद करने लगी।

जिंदगी कितनी खूबसूरत थी

कितनी सुखी थी वह। शादी के समय ही एक हफ्ता गांव में रहने के बाद पति के साथ नौकरी वाले शहर में आ गई थी। बस घूमना फिरना और सजना संवरना यही उसके काम थे। उसके पति रवि भी उसे बहुत प्यार करते थे तथा उसकी हर बात मानने को तैयार रहते थे। यही खुशबू लगाकर सुबह उनके साथ हर शाम मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर घूमने जाती थी। कभी रेस्टोरेंट, कभी गंगा किनारे और कभी किसी पिकनिक स्पॉट पर। यह खुशबू आज भी उसे याद दिला रही है कि जिंदगी कितनी खूबसूरत थी।

जिंदगी केवल परी कथा नहीं है

बहुत प्यार से उसने दूसरी शीशी उठाई और उसे सूंघने लगी। यह तो परफ्यूम फॉर मैन है। हां यह वह रवि के लिए नए खुले शॉपिंग मॉल से खरीद कर लाई थी। आज भी इसकी खुशबू उसे बहुत पसंद है पर यह खुशबू उस पहली लड़ाई की याद दिला रही है जो उसकी रवि के साथ हुई थी।

नीता ने तो कभी इस बात की चिंता की ही नहीं थी कि कौन सा सामान कितने रुपए में आता है, उसे तो जो पसंद आता था खरीद ही लेती थी। बस इसीलिए रवि के लिए महंगा परफ्यूम खरीद लिया। रवि ने उसे लगाने से पहले उसका दाम पढ़ा और झिड़क कर बोले, “यह तो बहुत कीमती है इसकी क्या जरूरत थी?”

नीता को पहली बार समझ में आया कि रवि भी उससे इस तरह से बात कर सकते हैं। यह भी समझ में आया कि जिंदगी केवल परी कथा नहीं है। वास्तविकता का सामना करना ही पड़ता है। उसके बाद तो पता नहीं क्या हुआ वह उस परफ्यूम से बचने लगी जबकि उसकी खुशबू बहुत पसंद थी। शायद उसे अपनी नासमझी अच्छी नहीं लगी कि उसने इतना पैसा एक शीशी खरीदने में खर्च कर दिया। अभी उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी पर दिल में एक कांटा तो चुभ ही गया कि जिस बात को रवि आराम से कह सकते थे उस बात पर नाराज होने की क्या जरूरत थी?

यह कितनी सस्ती खुशबू है

उसने अगला परफ्यूम उठाकर सूंघा तो लगा यह कितनी सस्ती खुशबू है। इसे तो उसने तब खरीदा था जब बच्चों को पालते पोसते उसके कपड़े महकने लगते थे। उसी महक को दबाने के लिए परफ्यूम की जरूरत पड़ती थी। वह भी मजबूर थी कि उससे जरा भी दुर्गंध बर्दाश्त नहीं होती थी।

सस्ती सही पर कम से कम खुशबू तो थी जो उसे कुछ देर के लिए उस समय की परेशानियों से दूर कर देती थी। यह महक तो लंबे समय तक चली क्योंकि एक के बाद एक खर्चे निकलते आए। कभी ननद की शादी, कभी ससुर की बीमारी, कभी बच्चों का दाखिला तो कभी उसके खुद के भाई की शादी। अपनी मनपसंद की कीमती खुशबू खरीदने का पैसा तो था ही नहीं, उसी से काम चलाया।

ये खुशबू उसे उस दिन से अच्छी नहीं लगी

अगली शीशी बहुत सुंदर और कीमती लग रही थी। उसे सुनते ही पहले वह घमंड में और फिर पछतावे में डूब गई। धीरे-धीरे पति की आमदनी बढ़ती जा रही थी और उनके लक्ष्य भी पूरे होते जा रहे थे। फ्लैट ले लिया था बस सजावट बाकी थी।

नीता भी अपने शौक पूरे कर पा रही थी। तभी गांव से खबर आई कि उसकी सास गिर पड़ी है और उनके पैर की हड्डी टूट गई है। बुढ़ापे का शरीर और हड्डी का जगह-जगह से टूट ना, इसका इलाज गांव में कैसे होता? जेठानी ने फोन करके उन लोगों को बताया और कहा कि अपने साथ शहर ले जाकर उनका इलाज करा दो।

नीता के सामने बहुत बड़ी मुसीबत थी। अभी तो फ्लैट पूरा सजा भी नहीं था, बच्चों की भी पढ़ाई चल रही थी। ऐसे समय में अगर सास को लाकर रख ती तो बहुत परेशानी होती। पैसा तो खर्च होता ही है साथ ही घर में भी अशांति हो जाती। नया फ्लैट सजने की जगह बीमार का कमरा बन जाता।

गांव वालों  में तो आदत होती है बीमार को देखने अवश्य आते हैं विशेषकर शहर में। पता नहीं बीमार को देखना होता है या शहर घूमना होता है। वह क्या करेगी किस तरह से इतने लोगों की देखभाल और बीमार सास की देखभाल करेगी इसलिए रवि को समझा दिया कि वह गांव में ज्यादा ठीक है। गांव में कई लोग उनकी देखभाल करने के लिए है तथा वह हमेशा वहां रही हैं इसलिए उनका मन भी लगा रहेगा।

पता नहीं क्या-क्या पीछे छोड़ते गए

अब तक रवि को भी उसकी परफ्यूम की खुशबू पसंद आने लगी थी इसलिए वह मान गए। यह खुशबू उसे उस दिन से अच्छी नहीं लगी जब से पता चला कि सास का इलाज ठीक से नहीं हुआ इसलिए टूटी हड्डी तो कभी जुड़ी ही नहीं बल्कि उनकी आत्मा ही परमात्मा से जुड़ गई। कुछ दिनों के लिए उन दोनों को पछतावे ने घेर लिया पर समय और जिंदगी कभी ठहरते नहीं है इसलिए वे आगे बढ़ते चले गए।

परफ्यूम की नई नई शीशियां आती गईं और वे पता नहीं क्या-क्या छोड़ते गए। कभी ननद की बेटी के विवाह मे दिए जाने वाले उपहार में कटौती की तो कभी गांव में होने वाले भागवत में थोड़ा पैसा देकर जान छुड़ा ली। अपनी ही दुनिया में मगन रहे। अब आश्चर्य होता है कि किस तरह से उन सब बातों में कभी रुचि ही नहीं रही या कभी कुछ करने का प्रयास ही नहीं किया।

अपनी दुनिया इतनी अलग बना ली जिसमें पिछली दुनिया के लिए कोई स्थान ही नहीं था। बीता हुआ समय लौट कर नहीं आ सकता इस तरह से ईश्वर ने कितना बड़ा दंड दिया है कि कभी अपनी गलती सुधारी नहीं जा सकती।

अगर परफ्यूम बहू का भी था तो क्या हुआ?

एक गहरी सांस भरकर नीता ने अगली शीशी उठाई। खूबसूरत और कीमती शीशी पर खुशबू में वह आनंद नहीं है जो होना चाहिए। हां यह परफ्यूम बेटे की ससुराल से आया था। सबको पता था कि नीता परफ्यूम की दीवानी है इसीलिए उसके लिए विशेष रूप से उपहार स्वरूप यह शीशी आई।

लड़की वालों ने शीशी तो देदी पर शायद अपनी बेटी को नहीं बताया कि सास के लिए यह उपहार गया है। बेटे की शादी धूमधाम से करने के बाद और बेटे बहू के हनीमून से लौटने के बाद पूरे परिवार को पिक्चर देखने जाना था। लौटते समय बाहर ही खा कर आना था। नीता बहुत मन से तैयार हुई और यही परफ्यूम लगाकर बाहर आई।

उसके आने से पोर्टिको महक गया और गाड़ी में बैठने जा रही बहू कुछ चौक कर नागवारी से बोली, “मम्मी आपने मेरा परफ्यूम लगा लिया? अभी तो मैंने शीशी ही नहीं खोली थी आपने शीशी भी खोल ली?”

नौकरों के सामने कही गई इस बात ने नीता पर घड़ों पानी डाल दिया। वह यह भी नहीं कह सकी कि यह उसके लिए आया था। इसका कारण यह था कि पास में खड़ा उसका खुद का बेटा इस बात पर कुछ नहीं बोला। अगर परफ्यूम बहू का भी था तो क्या हुआ?

बेटे को मां का इतना पक्ष तो लेना ही चाहिए था, उसने नहीं लिया और नीता ने उसी दिन समझ लिया कि अब सत्ता परिवर्तन हो चुका है उसे कुछ नहीं बोलना चाहिए। यह तो कुछ भी नहीं उसने तो अपनी सास को कभी अपने पास बुला कर रखा ही नहीं। चलो अच्छा हुआ उसे कुछ तो बदला मिला।

समय चलता रहा । उसके पति रिटायर हुए और कुछ ही दिन बाद हार्ट अटैक से चल बसे। नीता ने तो पहले ही बोलना कम कर दिया था और अब तो वैसे भी बोलना बेकार था। घर में तरह तरह के परिवर्तन होते गए पर नीता अपने ही कमरे में सिमट कर रह गई।

करती भी क्या जब भी कभी किसी परिवर्तन का उसने विरोध किया, जैसे “इस बरामदे में तुम्हारे पापा बैठते थे, यहां बगीचे से ठंडी हवा आती है इसलिए इसे कवर मत करवाओ।” तो उसे यही जवाब मिला, “मम्मी इतना इमोशनल होने से काम नहीं चलेगा। अब आपको भी आगे बढ़ना होगा हमारी जरूरत समझनी होगी।”

क्या वह खुद कभी पुरानी बातों से जुड़ी रही?

आज की पीढ़ी पुरानी बातों से जुड़ा रहना नहीं चाहती और जुड़ी भी क्यों रहे? क्या वह खुद कभी पुरानी बातों से जुड़ी रही? क्या कभी वह गांव जा कर रही? क्या कभी उसने अपने सास-ससुर की सेवा की? इन सब बातों का जवाब नहीं में था। वह क्या करें एक तरफ से जानती है कि जो हो रहा है सब होना ही था क्योंकि यहीं कर्मफल है पर दूसरी तरफ मन कचोटता था कि अपने ही घर में मेहमान की तरह से रहना पड़ रहा है।
अब घर में नया सामान आ रहा था क्योंकि उनका सामान पुराना और भारी था इसीलिए पुरानी बड़ी ड्रेसिंग टेबल उसके कमरे में रख दी गई। वह खुश थी क्योंकि उसे तो ड्रेसिंग टेबल के शीशे में पता नहीं अपने साथ साथ कौन-कौन दिखाई देता था। कभी उसके पीछे आकर रवि खड़े हो जाते थे तो कभी उसके छोटे से बच्चे उसकी गोदी में खेलने लग जाते थे।

अभी भी गर्म कपड़ों का पुराना बक्सा स्टोर में रखा था जिसमें उसके बच्चों के छोटे-छोटे कपड़े उसे उसी प्यार की याद दिला ते थे जो उसे उस समय मिलता है जब बच्चे उस पर ही निर्भर थे। रवि के कपड़े भी उसी बक्से में थे। उन कपड़ों को उलटती, पलटती, सूंघती रहती थी। उन कपड़ों में जो परफ्यूम की हल्की हल्की महक थी, वह उसे दीवाना बनाए रहती थी। उसी समय में पहुंचा देती थी जबके वे कपड़े थे।

अब उसके पास कोई नई परफ्यूम की शीशी नहीं थी। पहली बात तो उस के लिए नई शीशी लाता कौन और दूसरी बात यह थी कि उसने समय को सूंघना शुरू कर दिया था। गर्मी की दोपहर और लू चल रही है तो उसे याद आ रहा है ठंडा, मीठा रूह अफजा। तेज पानी बरस रहा है और उसे याद आ रहे है नालियों से पत्ते निकालते पति-पत्नी। छाता होने के बाद भी भीगते हुए और हंसते हुए।उसका तन मन महक जाता। तेज सर्दी में धूप में बैठकर उसे याद आता चारों तरफ फैला सामान जैसे अखबार, चश्मा, पत्रिकाएं, किताबें, ऊन सलाई और उसका मन उसी बेतरतीबी की खुशबू सूंघने के लिए मचल उठता।

नीता की भावुकता अभी बच्चे कैसे समझ सकते थे? वह जानती थी पर कहती कुछ नहीं थी क्योंकि अभी तो बच्चों को लगता था कि वह बहुत भावुक है जबकि वे खुद प्रैक्टिकल हैं। आगे चलकर वे इतना नहीं सोचेंगे। नीता भी सोच लेती थी क्यूंकि यही तो वह भी सोचती थी। उसने ही कब सोचा था कि वह उन परफ्यूम की खाली शीशियों को लेकर घंटों बैठी रह सकती है और जिंदगी के बही खाते के काल्पनिक पन्नों में डूब सकती है।

नीता ने चुपचाप शीशियां उठाई और एक थैली में डालकर ड्रेसिंग टेबल की अंदरूनी दरार में रख दी। नहीं वह इन शीशियों को नहीं फेंक सकती। इनमें उसकी गुजरी हुई जिंदगी की खुशबू है। जहां मन में इतनी यादें सहेज कर रखी हुई हैं। वहां इन शीशियों को भी ड्रेसिंग टेबल की एक कोने में छुपा कर रखा जा सकता है।

वह शीशियों को छुपाकर वह वैसे ही ड्रेसिंग टेबल छोड़ कर उठ खड़ी हुई। उसके मन में एक दबा-दबा सा खयाल आया शायद उसकी पिछली पीढ़ियों ने भी नई पीढ़ी के आने के बाद परफ्यूम की शीशियां छुपा कर रखी होंगी और आने वाली पीढ़ियां भी कितना भी कहें कि हम किसी को याद नहीं करते पर अपनी अगली पीढ़ी के आने पर परफ्यूम की शीशियां मोह से छुपा कर ही रखेंगी।

मूल चित्र : Screenshot from Wild Stone Red, YouTube

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