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ज़िंदगी क्या हो गई!

ना जाने कब मेरे जन्म की आवाज़, कानों का दर्द बन गई, ना जाने कब बाबा के कंधों का बोझ बन गई, पता ना चला कब मैं भाई के लिए प्रश्न बन गई...

ना जाने कब मेरे जन्म की आवाज़, कानों का दर्द बन गई, ना जाने कब बाबा के कंधों का बोझ बन गई, पता ना चला कब मैं भाई के लिए प्रश्न बन गई…

ना जाने कब मेरे जन्म की आवाज़, कानों का दर्द बन गई,
ना जाने कब बाबा के कंधों का बोझ बन गई,
पता ना चला कब मैं भाई के लिए प्रश्न बन गई,
मेरी सुरक्षा उसके लिए परेशानी का सबब बन गई,
बड़े होते ही कुछ की आंखों की हवस बन गई,
इज्ज़त बचाते कब दूसरे के घर की इज्ज़त बन गई,
उसके पहनाए सिंदूर, चूड़ियां, मंगलसूत्र कब बेड़ियां बन गईं,
देखते देखते ना जाने कब रिश्तों में कैद हो गई,
एक बेटी से महिला बनते ना जाने ज़िंदगी क्या से क्या हो गई।

मूल चित्र : Still from the Short Film, (Suta) The Daughter, YouTube

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