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12 साल की इस आदिवासी बच्ची की मौत के ज़िम्मेदार आप और मैं भी हैं!

इस 12 वर्षीय आदिवासी लड़की को लंबे समय तक घर जाने की अनुमति नहीं दी गई थी। उसे 22 अप्रैल को जिंदा जला दिया गया और उस समय वह गर्भवती भी थी।

इस 12 वर्षीय आदिवासी लड़की को लंबे समय तक घर जाने की अनुमति नहीं दी गई थी। उसे 22 अप्रैल को जिंदा जला दिया गया और उस समय वह गर्भवती भी थी। 

नोट : ये लेख पहले यहां अंग्रेजी में पब्लिश हुआ और इसका हिंदी अनुवाद मृगया राय ने किया है

ट्रिगर वार्निंग: इस लेख में बाल यौन शोषण, बाल शोषण और महिलाओं के खिलाफ हिंसा का वर्णन है, जो कुछ लोगों के लिए ट्रिगर हो सकता है।

असम की एक भयानक घटना में, एक 12 वर्षीय आदिवासी लड़की, जिसे डोमेस्टिक हेल्प यानि ‘कामवाली’ के रूप में नियुक्त किया गया था, को कथित तौर पर 22 अप्रैल को उसके ‘मालिकों’ द्वारा जिंदा जला दिया गया था।  असम राज्य बाल संरक्षण आयोग (ASCPCR) ने कहा है कि वह नाबालिग लड़की गर्भवती भी थी।

यह जुर्म नियोक्ताओं के घर पर हुआ था, असम के नागांव जिले के खैगुर गाँव में, जो कि राहा पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में आया है। पीड़ित पास ही के पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले की एक नाबालिग लड़की थी।

एक भयभीत करने वाला बहुपरती अपराध

ASCPCR के अनुसार, पड़ोसियों ने उन्हें सूचित किया है कि पीड़िता की हत्या करने से पहले उसका यौन शोषण किया गया था।  नियोक्ताओं ने लड़की को लंबे समय तक घर लौटने की अनुमति नहीं दी थी।

पुलिस ने 70 वर्षीय नियोक्ता प्रकाश बोर्थाकुर और उनके 25 वर्षीय बेटे नयनमोनी को गिरफ्तार किया।  ASCPCR ने इस मामले को फास्ट ट्रैक मोड पर डालने और POCSO अधिनियम, 2012 और बाल एवं किशोर श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को नियोक्ताओं के खिलाफ आरोप पत्र में शामिल करने के लिए नागांव के एसपी से आग्रह किया है।

यह नाबालिग लड़की जिन परिस्थितियों से गुज़री, वह पूरी तरह से समाज की गलती है, जो हमारी महिलाओं और बच्चों का ऐसे अपराधियों के खिलाफ बचाव करने में सक्षम नहीं है, खासकर जब वे हाशिये के समुदायों और क्षेत्रों से होते हैं।

बाल श्रम एक अपराध है 

इस भयावह अपराध से जुड़ा उत्पीड़न और हाशिये बहुपरती है। वह एक बारह साल की लड़की थी, एक बाल श्रमिक, एक उत्तर-पूर्वी राज्य से आदिवासी समुदाय से आयी नबालिक लड़की। 

लड़की एक 12 साल का बच्चा था, और बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 के अनुसार, कोई भी चौदह वर्ष से कम उम्र (परिवार के उद्यमों को छोड़कर) में किसी को भी नियुक्त नहीं कर सकता है। 12 साल की उस लड़की की बेरहमी से हत्या कर दी गई, जो कि एक नृशंस अपराध है। बाल श्रम की सजा कम से कम छह महीने से दो साल तक की कैद और / या 20,000 और 50,000 के बीच जुर्माना हो सकता है।

मानसिक, शारीरिक और बाल यौन शोषण

नियोक्ताओं ने जानबूझकर एक कम उम्र के बच्चे को काम पर रखा है, जो अपने आप में शोषण है। लेकिन इसके अलावा, ASCPCR के साथ साझा किए गए पड़ोसियों के अनुसार, उन्होंने नाबालिग पीड़िता के साथ मानसिक और शारीरिक शोषण भी किया। नियोक्ताओं ने उसे लंबे समय तक घर जाने की अनुमति नहीं दी।

इससे यह भी पता चलता है कि पीड़िता के साथ यौन शोषण संभवत: कुछ समय से हो रहा था, जिसमें कई लोग शामिल हो सकते है, जो निजी तौर पर इस संगीन अपराध से जुड़े हुए है। 

पड़ोसियों ने पहले क्यूँ नहीं आवाज़ उठायी? 

इस जानकारी से परिचित हो कर भी पड़ोसी उस आदिवासी लड़की के साथ होरहे अपराधों और शोषण की रिपोर्ट करने के लिए पुलिस के सामने नहीं आए। उन्होंने बाल अधिकार आयोग के साथ उस लड़की की मृत्यु के बाद साझा किया, कि उसका यौन शोषण किया गया था और वह गर्भवती भी थी। 

यह पड़ोसियों, गांव और समाज की चूक थी कि अधिकारियों को समय पर सूचित नहीं किया गया था। अगर वह करते तो शायद हमारे देश के एक नबालिक नागरिक को उन अमानवीय परिस्थितियों में न रहना पड़ता और उसका ऐसा अंत न होता। 

पीड़िता एक आदिवासी समुदाय से थी

पीड़ित की उम्र और लिंग के अलावा, उसका सामाजिक स्थान जो की एक आदिवासी समुदाय था, उसे विशेष रूप से इस उत्पीड़न और हिंसा के लिए अतिसंवेदनशील बना देता है। 

आदिवासी व्यक्तियों के खिलाफ और जाति आधारित हिंसा अपराध बढ़ रहे हैं, खासकर हिंदुत्व की राजनीति में। उत्पीड़न की संरचनाओं को पहचानना और जाति-विरोधी होने के लिए सक्रिय रूप से काम करना प्रत्येक उच्च जाति के व्यक्ति का कर्तव्य है। यह युवा आदिवासी लड़की उम्र, लिंग और सामाजिक स्थान के संदर्भ में सत्ता की राजनीति से प्रेरित अपराध का शिकार थी।

कल के पहले इस अपराध से बहुसंख्या क्यों अनजान थी? 

यह घटना 22 अप्रैल को हुई थी और फिर भी देश में बहुसंख्या अनजान थी कि इस नाबालिग लड़की के साथ क्या क्या अत्याचार हुए थे। नॉर्थ ईस्ट के कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा सोशल मीडिया पर इस बारे में बात करने के बाद ही हम जागरूक हुए और इस घटना के खिलाफ एक change.org याचिका दायर की गई।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में अकेले असम राज्य में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा 66 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जो की अन्य राज्य की तुलना में बहुत अधिक थे। कब तक भारत की बहुसंख्या देश के अन्य हिस्सों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों की उपेक्षा करना जारी रखेगी? 

देश के प्रत्येक व्यक्ति या पूरे देश को अपनी ओर से अधिक और बेहतर करना होगा, वार्तालाप आरंभ करना और उन्हें अभ्यास और कानून में अनुवाद करना होगा। इस तरह की घटनाएं हमें भीतर से झींझोर देती है लेकिन इसे भीतर ही समाप्त होना चाहिए।

हमें इससे अपने भीतर से निकाल बाहर ला बदलाव लाना होगा। हमारा कर्तव्य है कि हम इस देश को महिलाओं, बच्चों और हर हाशिये समुदाय के लिए सुरक्षित बनाएं। यह राज्य मशीनरी की अपने सीमांत नागरिकों के लिए सुरक्षा प्रदान करने और सुनिश्चित करने में एक पूर्ण विफलता थी, और राज्य को इसके लिए जवाबदेह होना पड़ेगा। 

मूल चित्र: geralt on pixabay

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Kamalika

A postgraduate student of Political Science at Presidency University, Kolkata. Describes herself as an intersectional feminist and an avid reader when she's not busy telling people about her cats. Adores walking around and exploring read more...

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