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जब मेरा मन करता है, सजती हूँ, संवरती हूँ, सिंदूर भी लगाती हूँ, पर दकियानूसी बातों पर अब मैं एतराज जताती हूँ, क्यूंकि अब मैं अपनी मर्ज़ी से जीती हूँ!
हूँ जगत जननी हूँ शक्ति स्वरूपा, जिसने पीड़ा में भी सुख को ही देखा, पर पीड़ा और अत्याचार में, अब मैंने फ़र्क़ करना है सीखा।
हाँ, अब मैंने भी अपनी मर्ज़ी से जीना है सीखा, नहीं है मुझे कोई गुरेज़ चूड़ी बिंदी पायल से, जब मेरा मन करता है, सजती हूँ, संवरती हूँ, सिंदूर भी लगाती हूँ, पर दकियानूसी बातों पर अब मैं एतराज जताती हूँ!
नहीं है गुरेज़ मुझे चूल्हा चौका करने से, सेवा को आज भी अपना कर्म समझती हूँ, पर ये चार दिवारी ही सिर्फ़ मेरी दुनिया है, इस बात से अब मैं साफ़ इंकार करती हूँ।
खुले आसमान में आज मैं निडर हो, अपने सपनों के पग पसारती हूँ, हाँ मैं अब अपनी मर्ज़ी से जीती हूँ, नहीं हूँ प्रतिद्वंदी मैं पितृसत्ता की।
इतिहास गवाह है कि, एक स्त्री ने भी दूसरी स्त्री को कब आगे बढ़ने दिया है, ना जाने कितनी बार, उसका पैर खींच कामयाबी, को उससे छीन लिया है, और फिर उसे किसी ना किसी के मोहताज कर दिया है।
दुनिया समाज से लड़ने से पहले, हमें खुद से लड़ना होगा, अपनी रूढ़िवादी सोच की क़ैद से आज़ाद होकर, उन्मुक्त आसमान में उड़ना होगा।
स्त्रियों की तरक़्क़ी के लिए ना केवल पुरुष के ख़िलाफ़, बल्कि कई बार, एक स्त्री को स्त्री के, ख़िलाफ़ भी खड़ा होना होगा।
मूल चित्र : Still from the Short Film Shiddat Se, YouTube
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