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किसी को फर्क़ नहीं पड़ता, कि मुझे भी कुछ अच्छा लग सकता है। कितनी बार, कितनी बार अपनी इच्छाओं को मारा मैंने।
हर बार लोग मुझे भूल जाते हैं, खाने का समय हो या पीने का, सबसे कम, सबके बाद खाना ही ज़रूरी होता है।
कमा कर लाए नहीं तो निवाला मुंह में डालने में भी दो बार सोचना पड़ता है, कहीं किसी को बुरा तो नहीं लगेगा। मेरे खाने से, कहीं ज़्यादा खाने का मन किया तो कैसे खाऊँगी, किसी को बुरा ना लग जाये कोई मुझे भुक्कड़ ना समझ ले।
कितना अजीब है ना कहने को तो सब मेरा है, सब मेरे हैं, पर सच में मेरा कुछ भी नहीं। खाया या नहीं, कभी कोई पूछता भी नहीं। मेरी पसंद नापसंद कोई जानता भी नहीं।
किसी को फर्क़ नहीं पड़ता, कि मुझे भी कुछ अच्छा लग सकता है, कितनी बार अपनी इच्छाओं को मारा मैंने।
क्या करूँ सबके बारे में, कितना भी सोचूँ, लोग मेरे बारे में सोचना भूल ही जाते हैं, शिकायत करूँ भी तो किससे, जब कोई समझता नहीं तो सुनकर क्या करेगा।
ऐसा हमेशा ही होता है। हर बार वजह बेवजह, किसी को परवाह ही नहीं होती।
प्लेट में पड़ी चीज़ कब ख़त्म हो जाती है और मेरी तरफ़ एक नजर किसी का ध्यान ही नहीं जाता, कि मैंने नहीं चखा शायद, शायद मेरा पसंदीदा था।
फिर भी, बुरा लगता है, बहुत ज्यादा, जब आप सबके लिए सोचो, पर आपके लिये सोचने वाला कोई ना हो, बात किसी खाने की नहीं है यहां, बात मेरी अहमियत की है।
मूल चित्र: India Alert, Ep 510, Youtube
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