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क्यों रात को घर से अकेले निकलने में डरूँ मैं?

आज के समय में जहां औरतें अपनी मंज़िल की ओर निडर होके आगे बढ़ रही हैं, तो फिर क्यूँ वे रात को घर से निकलने और रास्ते पर अकेले चलने से डरें?

आज के समय में जहां औरतें अपनी मंज़िल की ओर निडर होके आगे बढ़ रही हैं, तो फिर क्यूँ वे रात को घर से निकलने और रास्ते पर अकेले चलने से डरें?

हमारे देश में बचपन से ही माँ-बाप अपनी बेटियों को कहते हैं कि घर रात होने से पहले आ जाना, अंधेरे में अकेले मत निकलना, अकेले सड़क पर रात को मत चलना। क्यूँकि हमारे देश में औरतें सुरक्षित नहीं हैं, हमें बचपन से यही सिखाया गया है, अपनी हिफ़ाज़त हमें खुद करनी चाहिए और एहतियात बरत के घर से निकलना चाहिए।

पर क्यूँ? सिर्फ़ औरत ही क्यूँ डर के रहे? यह जिम्मेदारी कहीं ना कहीं लोगों की भी बनती है की वो औरत को सुरक्षित महसूस कराए, खासकर आज के समय में जहां औरतें अपनी मंज़िल की ओर निडर होके आगे बढ़ रही हैं, तो फिर क्यूँ वह रास्ते पर अकेले चलने से डरें? 

पिछले महीने की शुरुआत में हमने ऐसी ही एक घटना सुनी जिसने फिर से औरतों के घर से अकेले निकलने और उनके सुरक्षा के विषय को फिर चर्चा में ले आया। यूनाइटेड किंगडम की साराह एवरार्ड, क्लैफ़ाम में एक दोस्त से मिलने के बाद ब्रिक्सटन के लिए घर जाते समय गायब हो गयी थी।एक हफ़्ते बाद साराह का मृत शरीर पाया गया। एवरर्ड की हत्या ने यूनाइटेड किंगडम को झकझोर दिया है और महिला सुरक्षा को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है।

यह घटना है तो सिर्फ़ एक राज्य की, पर दुनिया भर की औरतें इससे गुजरती हैं

ख़ासकर हिंदुस्तान में जहां सदियों से औरतों के ऊपर पाबंदियाँ लगायी हैं अकेले कहीं भी जाने से, सिर्फ़ इसलिए ताकि उनके साथ कुछ ग़लत ना हो। अपनी सुरक्षा करने के नाम पर हमें एक पिंजरे में बंद रखा गया है, जबकि पाबंदियाँ लगानी उनपे चाहिएँ जो ग़लत करते हैं।

हाथ लगाना, छू के निकल जाना, सिटी मारना, छेड़ने के लिए चीजें बोलना, यह सब औरतें रोज़ाना झेलती हैं और फिर सुनने भी उन्हें ही मिलता है कि “कपड़े ढंग के पहने चाहिए”, “अकेले बाहर नहीं जाना चाहिए”, इत्यादि।

यह विक्टिम ब्लेमिंग का ऐटिटूड जहां जब हम ऐसी घटनाओं के बारे में सुनते हैं तो लोग कहते हैं, “उससे इतनी रात को घर से अकेले निकलने को किसने कहा था?”

“अंधेरा होने से पहले घर क्यूँ नहीं आ गयी?”

“डर रात बहार क्या कर रही थी?”

हिंदुस्तान में हमेशा से कुछ लोग ऐसे रहे है जो औरत के साथ ग़लत हुए में भी औरत की ही गलती खोजते हैं। ऐसा कोई भी टिप्पणी लड़कों की तरह कभी नहीं कही जाती।

क्या सिर्फ़ औरत को ही इस दुनिया में बच बच के चलने की ज़रूरत है? या फिर हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके लिए एक ऐसा वातावरण बनाएँ जो सुरक्षित हो ताकि वो डर डर के कदम ना रखे।

“पुरुष अपनी तरफ़ से औरतों को सुरक्षित महसूस कैसे कराएँ?”

यह एक तरीके का स्वाधिकार है पुरुषों के लिए की उन्हें हर क्षण एक महिला जितना सतर्क होके नहीं जीना पड़ता है। इस स्वाधिकार का सही उपयोग कर हर आदमी को इनमें से जिस तरीके से वह मदद का हाथ बढ़ा पाए और बदलाव लाने में हिस्सेदार बन सके।

यही बदलाव लाने की एक सराहनीय कोशिश में स्टूअर्ट एड्वर्ड ने ट्विटर पर लिखा 

“मैं पाँच मिनट से भी कम समय की दूरी पर रहता हूँ जहाँ से सारा एवरर्ड लापता हो गयी थी। हर कोई हाई अलर्ट पर है। शांत सड़कों पर जितना संभव हो उतना स्थान देने और चेहरे को साफ रखने के अलावा, क्या कुछ और है जो पुरुष औरत की चिंता और डार को कम करने के लिए कर सकते हैं?” 

औरतों ने अपने मन की बात व्यक्त कर दिए कई सुझाव

इस ट्वीट के जवाब में बहुत सी औरतों ने सुझाव स्वरूप काफ़ी चीजें बताईं जो पुरुष कर सकते हैं ताकि औरतें अकेले रात को घर से अकेले निकलने में सुरक्षित महसूस करें: 

रात को अकेली चल रही महिला से महज़ दूरी बना के चलें 

  • “लंबी अवधि के लिए एक अंधेरी सड़क पर एक अकेली महिला के पीछे नहीं चलने की कोशिश करें।”
  • “एक महिला के पीछे चलने से बचने के लिए सड़क पार करें। सभी महिलाओं को जगह दें। जॉगिंग करते हुए कभी भी उनके करीब न दौड़ें।” 
  • “अगर कोई महिला अकेले (विशेष रूप से रात में) चल रही है, तो अपने और उसके बीच की जगह में दूरी छोड़ दें या सड़क पार करें ताकि वह जान सके कि आप उसका पीछा नहीं कर रहे हैं।  यह उसे और अधिक सहज महसूस कराएगा और ऐसा भी महसूस कराएगा कि उसका पीछा नहीं किया जा रहा है।”

इतनी घटनाओं के बारे सुनके अंधेरे में अकेले चलना औरतों के मन में डर बना रहता है और उसके ऊपर से अगर किसी के आस पास होने का आघात हो तो और भी। इसलिए अकेली चल रही महिला से महज़ दूरी बनाने से उनको राहत का एहसास हो सकता है और उनके ऊपर से तनाव कम हो सकता है। और इससे रात को घर से अकेले निकलने में उन्हें कम डर लगेगा।

अपनी दृश्यता और अपनी उपस्थिति को प्रमुख बनाने की कोशिश करें 

  • “यह मूर्खतापूर्ण लगता है, लेकिन “शोर” करें। यदि आप किसी के पीछे हैं तो वे आपको देख नहीं सकते हैं लेकिन श्रवण से बता सकते हैं कि आप कहां सहायक हैं। यह यह बताने में भी मदद करता है कि आप किसी पर हमला करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।”
  • “यदि आप एक हुडी पहने हुए हैं, तो दूसरी तरफ से क्रॉस करें, हाथ को जेब में ना रखे, अपनी गति को मापें, अपने हुड को अपने सिर से नीचे खींचें।”
  • “यदि आप रात में अपनी कार में बैठे हैं, तो प्रकाश डालें। यह खौफनाक दृश्य हो सकता है उनके लिए जब वह आपका चेहरा नहीं देख सकते हैं।” 

अगर कोई औरत रात को सड़क पर अकेली हो और उसको कोई ऐसा लगे जिसका वो चेहरा ना देख सके या उससे सुन ना सके तो वह उससे संदेहजनक लग सकता है। अपना चेहरा खुला रखें और शोर करके चले ताकि उन्हें पता रहे की आप कहाँ है, और ऐसा शक ना हो की कहीं कोई अचानक से हमला ना करे। 

महिलाओं के रास्ते में रुकावट न बनें  

  • “यदि कोई महिला आपकी ओर चल रही है, तो उसे अपनी राह पर चलने दें, और उसके रास्ते से हट जाए। मैं जानबूझकर प्रकाश तक पहुंच के रास्ते के सबसे सुरक्षित हिस्से में चलती हूं।” 

काफ़ी महिलायें जान बूझ के जहां उजाला हो या काफ़ी खुली जगह हो उसस रास्ते पे चलती है, और ख़ास कर वह जल्दी चलना चाहती है बिना रुके ताकि किसिको हमला करने का अवसर ना मिले। उनके रास्ते में ना आए या उन्हें धीरे चलने पर मजबूर ना करे, उन्हें खुला रास्ता दें, आगे जाने दें। 

पब्लिक जगहों में भी दूरी बनाए रखें

  • “यदि सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर रहे हैं, जहां तक ​​संभव हो महिलाओं से दूर बैठें। अन्य सीटें खाली होने पर हमारे बगल में कभी न बैठें।” 
  • “लिफ़्ट, कॉरिडर या सीढ़ी पर रुक, अकेली औरत को आगे जाने दे। आपके 2 मिनट की प्रतीक्षा, उनके लिए काफ़ी राहत दायक हो सकती है।” 
  • “अगर आप बहुत पास हो रहे हैं तो धीरे हो जाएँ। यदि आपको आगे निकलने की जरूरत है, तो सड़क पर पार करें। यह दुनिया भर का अंतर बना सकता है। आप यह भी बता सकते हैं कि हम कब डरे हुए हैं क्योंकि हम अपनी गति बढ़ा देंगे।” 

भीड़ भाड़ वाली जगह में भी बहुत सी औरतें असुरक्षित महसूस करती है। मेट्रो, ट्रेन या बस ऐसे जगह पे भी उनसे दूरी बनाकर बेठे ताकि उन्हें असहज ना महसूस हो। 

अपनी आवाज़ का उपयोग कर उनके लिए एक सहायक बने 

  • “यदि आप किसी महिला को संपर्क करते हुए या परेशान करते हुए किसी को देखते हैं तो कृपया हस्तक्षेप करें और पूछें कि क्या वह ठीक है?”
  • “यदि आप किसी महिला को परेशान होते हुए सुनते हैं, तो उसकी मदद करें। आप एक परिवार के सदस्य या एक दोस्त होने का नाटक कर सकते हैं यदि कोई आदमी वास्तव में उसे परेशान कर रहा है और वह व्यथित लग रही है। वह इसके लिए आपकी शुक्रगुज़ार होंगी।” 

कई महिलायें उस क्षण में अपने लिए नहीं बोल पाती है या सहम जाती हैं। अगर आप ऐसा होते हुए देखते हैं तो मदद करें। और भी पुरुषों से ऐसा करने को कहें। बहुत आसान होता है यह सोचना कि मेरे मदद करने से क्या होगा, पर आपका एक सवाल ‘क्या आप ठीक है?’ एक महिला के लिए बहुत सहायक हो सकता है। 

अन्य पुरुषों को इस मुद्दे से अवगत करें

  • “अन्य पुरुषों से इसके बारे में बात करें, क्योंकि कई लोग अनजान हैं।  यदि आप भी उत्पीड़न के गवाह हैं, तो इसके ऊपर अपनी आवाज़ उठाए। हर कोई महिलाओं को असहज करने वाले ढोंगी को नोटिस नहीं करने का नाटक करता है। यह केवल उन्हें बढ़ावा देता है और इस तरह के व्यवहार को सामान्य करता है।” 
  • “यदि आप अपने मित्रों या पुरुषों को अपने आस-पास महिलाओं या किसी विशेष महिला के बारे में अपमानजनक तरीके से बोलते हुए सुनते हैं, तो उन्हें टोके, उन्हें हल्के में न जाने दें। चुप न रहें। पुरुषों को शिक्षित होना चाहिए, महिलाओं को सतर्क नहीं।” 

अपने आसपास हो रहे दूर व्यवहार को टोकें और लोगों को शिक्षित करें। हमारी सबसे बड़ी गलती होती है बचपन से सिर्फ़ औरत को सिखाना की वह बचके रहे, बल्कि हमें लोगों को शिक्षित करना चाहिए कि वो औरत की तरह दूर व्यवहार ना करे। अपनी बेटी को सिर्फ़ सतर्क रहना ना सिखाए, अपने बेटे को भी इसपे शिक्षा दे की किसी महिला को वो असुरक्षित ना महसूस कराए।

अपनी दोस्त या जानने वाली महिला को घर तक छोड़ें 

“अपने दोस्तों को हमेशा उनकी गाड़ी या घर तक छोड़े। (अगर वे कहें तो…)”

“यदि कोई महिला मित्र आपसे उनके साथ जाने के लिए कहे जो आप सामान्य रूप से एक सुरक्षित यात्रा पर विचार करेंगे, तो उन्हें कभी भी जज न करें या उन्हें बताएं कि वे नाटकीय हो रहे हैं।” 

यह बहुत छोटी सी चीज लग सकती है, पर सुनिश्चित करें कि आपके जानने वाली महिला सही सलामत अपने घर तक पहुँच गयी है। एक ऐसे दुनिया में, जहां हर पल औरत खतरे के आध में जीते है किसी का साथ होना और उनके द्वारा सुरक्षा का एहसास होना बहुत सांत्वना जनक हो सकता है। 

रात को घर से अकेले निकलने में औरतें सुरक्षित महसूस करें, इस बदलाव को लाने में अपना योगदान दें पुरुष

यह सब पढ़के हर पुरुष को यह कितना भारी काम लग रहा होगा, हर समय सचेत रहना, हर समय सोच समझ कर चलना, हर समय अतिरिक्त जागरूक रहना। हर औरत की ज़िंदगी ऐसी ही रही है, हम सदियों से ऐसे ही जीते आ रहे हैं। घर से निकल कर हमें हर पाल सचेत और जागरूक रहना पड़ता है। इस भार को अगर पुरुष ज़रा सा साझा करले तो महिलाएं तब थोड़ा निश्चिंत महसूस कर सकती हैं। क्या यह बहुत ज़्यादा उम्मीद रखना हो गया?

यह थ्रेड अविश्वसनीय रूप से पुरुषों के लिए शिक्षाप्रद है कि कैसे उनका महिलाओं पर प्रभाव हो सकता है, यहां तक ​​कि अर्थ के बिना भी, उनके समान स्थान पर होने से। प्रत्येक आदमी को इन प्रतिक्रियाओं में से कुछ चीजें लागू करनी चाहिए। आज के समय में यह ज़रूरी है हर इंसान, ख़ास कर इस मुद्दे पे आदमी, अपने विशेषाधिकार का सही उपयोग कर एक सहायक बने बदलाव लाने में।

मूल चित्र: manojchauhan via youtube

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Mrigya Rai

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