कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
आज के समय में जहां औरतें अपनी मंज़िल की ओर निडर होके आगे बढ़ रही हैं, तो फिर क्यूँ वे रात को घर से निकलने और रास्ते पर अकेले चलने से डरें?
हमारे देश में बचपन से ही माँ-बाप अपनी बेटियों को कहते हैं कि घर रात होने से पहले आ जाना, अंधेरे में अकेले मत निकलना, अकेले सड़क पर रात को मत चलना। क्यूँकि हमारे देश में औरतें सुरक्षित नहीं हैं, हमें बचपन से यही सिखाया गया है, अपनी हिफ़ाज़त हमें खुद करनी चाहिए और एहतियात बरत के घर से निकलना चाहिए।
पर क्यूँ? सिर्फ़ औरत ही क्यूँ डर के रहे? यह जिम्मेदारी कहीं ना कहीं लोगों की भी बनती है की वो औरत को सुरक्षित महसूस कराए, खासकर आज के समय में जहां औरतें अपनी मंज़िल की ओर निडर होके आगे बढ़ रही हैं, तो फिर क्यूँ वह रास्ते पर अकेले चलने से डरें?
पिछले महीने की शुरुआत में हमने ऐसी ही एक घटना सुनी जिसने फिर से औरतों के घर से अकेले निकलने और उनके सुरक्षा के विषय को फिर चर्चा में ले आया। यूनाइटेड किंगडम की साराह एवरार्ड, क्लैफ़ाम में एक दोस्त से मिलने के बाद ब्रिक्सटन के लिए घर जाते समय गायब हो गयी थी।एक हफ़्ते बाद साराह का मृत शरीर पाया गया। एवरर्ड की हत्या ने यूनाइटेड किंगडम को झकझोर दिया है और महिला सुरक्षा को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है।
ख़ासकर हिंदुस्तान में जहां सदियों से औरतों के ऊपर पाबंदियाँ लगायी हैं अकेले कहीं भी जाने से, सिर्फ़ इसलिए ताकि उनके साथ कुछ ग़लत ना हो। अपनी सुरक्षा करने के नाम पर हमें एक पिंजरे में बंद रखा गया है, जबकि पाबंदियाँ लगानी उनपे चाहिएँ जो ग़लत करते हैं।
हाथ लगाना, छू के निकल जाना, सिटी मारना, छेड़ने के लिए चीजें बोलना, यह सब औरतें रोज़ाना झेलती हैं और फिर सुनने भी उन्हें ही मिलता है कि “कपड़े ढंग के पहने चाहिए”, “अकेले बाहर नहीं जाना चाहिए”, इत्यादि।
यह विक्टिम ब्लेमिंग का ऐटिटूड जहां जब हम ऐसी घटनाओं के बारे में सुनते हैं तो लोग कहते हैं, “उससे इतनी रात को घर से अकेले निकलने को किसने कहा था?”
“अंधेरा होने से पहले घर क्यूँ नहीं आ गयी?”
“डर रात बहार क्या कर रही थी?”
हिंदुस्तान में हमेशा से कुछ लोग ऐसे रहे है जो औरत के साथ ग़लत हुए में भी औरत की ही गलती खोजते हैं। ऐसा कोई भी टिप्पणी लड़कों की तरह कभी नहीं कही जाती।
क्या सिर्फ़ औरत को ही इस दुनिया में बच बच के चलने की ज़रूरत है? या फिर हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके लिए एक ऐसा वातावरण बनाएँ जो सुरक्षित हो ताकि वो डर डर के कदम ना रखे।
यह एक तरीके का स्वाधिकार है पुरुषों के लिए की उन्हें हर क्षण एक महिला जितना सतर्क होके नहीं जीना पड़ता है। इस स्वाधिकार का सही उपयोग कर हर आदमी को इनमें से जिस तरीके से वह मदद का हाथ बढ़ा पाए और बदलाव लाने में हिस्सेदार बन सके।
यही बदलाव लाने की एक सराहनीय कोशिश में स्टूअर्ट एड्वर्ड ने ट्विटर पर लिखा
“मैं पाँच मिनट से भी कम समय की दूरी पर रहता हूँ जहाँ से सारा एवरर्ड लापता हो गयी थी। हर कोई हाई अलर्ट पर है। शांत सड़कों पर जितना संभव हो उतना स्थान देने और चेहरे को साफ रखने के अलावा, क्या कुछ और है जो पुरुष औरत की चिंता और डार को कम करने के लिए कर सकते हैं?”
इस ट्वीट के जवाब में बहुत सी औरतों ने सुझाव स्वरूप काफ़ी चीजें बताईं जो पुरुष कर सकते हैं ताकि औरतें अकेले रात को घर से अकेले निकलने में सुरक्षित महसूस करें:
इतनी घटनाओं के बारे सुनके अंधेरे में अकेले चलना औरतों के मन में डर बना रहता है और उसके ऊपर से अगर किसी के आस पास होने का आघात हो तो और भी। इसलिए अकेली चल रही महिला से महज़ दूरी बनाने से उनको राहत का एहसास हो सकता है और उनके ऊपर से तनाव कम हो सकता है। और इससे रात को घर से अकेले निकलने में उन्हें कम डर लगेगा।
अगर कोई औरत रात को सड़क पर अकेली हो और उसको कोई ऐसा लगे जिसका वो चेहरा ना देख सके या उससे सुन ना सके तो वह उससे संदेहजनक लग सकता है। अपना चेहरा खुला रखें और शोर करके चले ताकि उन्हें पता रहे की आप कहाँ है, और ऐसा शक ना हो की कहीं कोई अचानक से हमला ना करे।
काफ़ी महिलायें जान बूझ के जहां उजाला हो या काफ़ी खुली जगह हो उसस रास्ते पे चलती है, और ख़ास कर वह जल्दी चलना चाहती है बिना रुके ताकि किसिको हमला करने का अवसर ना मिले। उनके रास्ते में ना आए या उन्हें धीरे चलने पर मजबूर ना करे, उन्हें खुला रास्ता दें, आगे जाने दें।
भीड़ भाड़ वाली जगह में भी बहुत सी औरतें असुरक्षित महसूस करती है। मेट्रो, ट्रेन या बस ऐसे जगह पे भी उनसे दूरी बनाकर बेठे ताकि उन्हें असहज ना महसूस हो।
कई महिलायें उस क्षण में अपने लिए नहीं बोल पाती है या सहम जाती हैं। अगर आप ऐसा होते हुए देखते हैं तो मदद करें। और भी पुरुषों से ऐसा करने को कहें। बहुत आसान होता है यह सोचना कि मेरे मदद करने से क्या होगा, पर आपका एक सवाल ‘क्या आप ठीक है?’ एक महिला के लिए बहुत सहायक हो सकता है।
अपने आसपास हो रहे दूर व्यवहार को टोकें और लोगों को शिक्षित करें। हमारी सबसे बड़ी गलती होती है बचपन से सिर्फ़ औरत को सिखाना की वह बचके रहे, बल्कि हमें लोगों को शिक्षित करना चाहिए कि वो औरत की तरह दूर व्यवहार ना करे। अपनी बेटी को सिर्फ़ सतर्क रहना ना सिखाए, अपने बेटे को भी इसपे शिक्षा दे की किसी महिला को वो असुरक्षित ना महसूस कराए।
“अपने दोस्तों को हमेशा उनकी गाड़ी या घर तक छोड़े। (अगर वे कहें तो…)”
“यदि कोई महिला मित्र आपसे उनके साथ जाने के लिए कहे जो आप सामान्य रूप से एक सुरक्षित यात्रा पर विचार करेंगे, तो उन्हें कभी भी जज न करें या उन्हें बताएं कि वे नाटकीय हो रहे हैं।”
यह बहुत छोटी सी चीज लग सकती है, पर सुनिश्चित करें कि आपके जानने वाली महिला सही सलामत अपने घर तक पहुँच गयी है। एक ऐसे दुनिया में, जहां हर पल औरत खतरे के आध में जीते है किसी का साथ होना और उनके द्वारा सुरक्षा का एहसास होना बहुत सांत्वना जनक हो सकता है।
यह सब पढ़के हर पुरुष को यह कितना भारी काम लग रहा होगा, हर समय सचेत रहना, हर समय सोच समझ कर चलना, हर समय अतिरिक्त जागरूक रहना। हर औरत की ज़िंदगी ऐसी ही रही है, हम सदियों से ऐसे ही जीते आ रहे हैं। घर से निकल कर हमें हर पाल सचेत और जागरूक रहना पड़ता है। इस भार को अगर पुरुष ज़रा सा साझा करले तो महिलाएं तब थोड़ा निश्चिंत महसूस कर सकती हैं। क्या यह बहुत ज़्यादा उम्मीद रखना हो गया?
यह थ्रेड अविश्वसनीय रूप से पुरुषों के लिए शिक्षाप्रद है कि कैसे उनका महिलाओं पर प्रभाव हो सकता है, यहां तक कि अर्थ के बिना भी, उनके समान स्थान पर होने से। प्रत्येक आदमी को इन प्रतिक्रियाओं में से कुछ चीजें लागू करनी चाहिए। आज के समय में यह ज़रूरी है हर इंसान, ख़ास कर इस मुद्दे पे आदमी, अपने विशेषाधिकार का सही उपयोग कर एक सहायक बने बदलाव लाने में।
मूल चित्र: manojchauhan via youtube
A student with a passion for languages and writing. read more...
Please enter your email address