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ये क्या तरीका है रिया, तुम दोनों भाई बहन ने क्या हाल कर रखा है घर का, एक तो दो कमरों का मकान और जहाँ देखो खिलौने बिखरे पड़े हैं।
“हेलो अवनि! कैसी हो?”
“मैं ठीक हूँ भाभी, आप कैसी हैं?”
“ठीक हूँ अवनि, बात ऐसी है कि मुझे और तुम्हारे जेठ जी को सेमिनार के सिलसिले में दो दिनों के लिये शिमला जाना है और वहीं से आसपास घूमने का भी प्लान है तो मैं एक हफ्ते के लिये माँ जी को तुम्हारे वहाँ छोड़ दूंगी और लौटते वक़्त लेते हुए घर चली जाऊंगी।”
“हां भाभी क्यों नहीं, ये भी तो माँ जी के बेटे का ही घर है, जितने दिन दिल करें रह सकती है।” अपनी जेठानी जी से बातें कर अवनि ने फ़ोन रख दिया।
ये थी अवनि, दो प्यारे प्यारे बच्चों, रिया और सोनू की माँ। अवनि अपने पति और बच्चों के साथ पटना में रहती थी और उसकी सासूमाँ अवनि की जेठ जेठानी के साथ दिल्ली में रहती थी।
अवनि ने जेठानी जी को बोल तो दिया लेकिन मन ही मन डर रही थी।
अवनि की सासूमाँ बेहद सफाई पसंद महिला थी, बिस्तर पर एक भी सिलवट उन्हें पसंद ना आती। हर काम समय पर और सफाई से हो तभी वो ख़ुश होती वर्ना नाराज़ हो जातीं। वहीं अवनि के दोनों बच्चे खुब उछल कूद करने वाले थे।
बच्चों को हर काम खुद करने की आदत थी या यूं कहें अवनि ने शुरु से अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाया था। दोनों खुद खाना खाते तो खाना थोड़ा कपड़ो पे या जमीन पर गिर भी जाता या कपड़े भी ख़राब हो जाते लेकिन फिर भी अवनि थोड़ी सी सफाई के चक्कर में बच्चों को कभी नहीं रोकती नहीं थी।
बच्चे जी भर के खेलते, कलर करते, हँसते खिलखिलाते। इस कारण अक्सर घर बिखरा ही रहता लेकिन अवनि को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
अवनि के जेठ जेठानी के बहुत इलाज के बाद भी बच्चे नहीं हुए थे, दोनों की नौकरी अच्छी थी, सारे सुख सुविधा से युक्त उनका फ्लैट था। वही अवनि के पति की साधारण नौकरी थी।
सासूमाँ को अवनि का स्वाभाव पसंद नहीं आता, उनका मानना था की बच्चों को अनुशासन में रखना चाहिये। अवनि का तरीका और बिखरे घर के कारण वो पटना का रुख कम ही करती थी लेकिन इस बार उनकी भी मज़बूरी थी।
निश्चित दिन अवनि के पति रवि अपनी माँ को ले कर आ गए। उनके आने से पहले अवनि ने सोनू और रिया को बुला कर अच्छे से समझाया था की दादी को सफाई पसंद है तो कुछ दिन कोई मस्ती नहीं।
बच्चे बेचारे, उन्हें तो ऐसा लग रहा था दादी नहीं कोई जेलर आ रहा हो। अवनि ने भी घर की अच्छे से सफाई की हर कोना चमक रहा था। सासूमाँ को ख़ुश करने के सारे उपाय अवनि ने कर लिये।
घर को साफ देख सासूमाँ के चेहरे पर आयी मुस्कुराहट देख, अवनि ने भी राहत की सांस ली।
एक दो दिन तो बच्चे भी चुप रहे लेकिन बच्चे तो बच्चे ठहरे कितने दोनों तक खिलौनों और मस्ती से दूर रहते चौथा दिन आते आते सारे वादे भूल लगा गए अपने खेल खिलौनों में। अवनि भी चुप ही रही बच्चों का उतरा चेहरा उसे भी देखा नहीं जा रहा था।
जल्दी ही घर पुराने रूप में आ गया और सासूमाँ की त्योरियां चढ़ गईं।
“ये क्या तरीका है रिया, तुम दोनों भाई बहन ने क्या हाल कर रखा है घर का, एक तो दो कमरों का मकान और जहाँ देखो खिलौने बिखरे पड़े है।”
“सॉरी दादी, बोर हो रहे थे तो खेलने लगे।”
“इसलिए मैं यहाँ नहीं आती अवनि बहु, तुमने अपने बच्चों को ज़रा भी तमीज़ नहीं सिखाया। ऐसे क्या कोई घर गन्दा करता है?”
“आप नाराज़ क्यों होती हो दादी हम खेल कर सारा कुछ समेट देंगे।” सोनू ने दादी को गले लगाते हुए कहा।
“माँ जी, बच्चे खेलेंगे तो घर तो बिखरेगा ही लेकिन सोनू और रिया खेल कर चीज़ें भी समेट देते हैं।” मनुहार करती अवनि ने कहा।
“चाहे लाख समेटे लेकिन घर तो फिर भी बिखरा ही रहता है। मुझे गंदगी और बिखरा घर बिलकुल ना पसंद है यही कारण है की मैं यहाँ नहीं आती। अपनी जेठानी का घर देखा है कैसे चमकता रहता है। एक सिलवट भी बिस्तर पे नज़र नहीं आती और तुम्हारे घर में जहाँ देखो किताब कॉपी खिलौने बिखरे रहते है।”
अवनि ने लाख मनाया लेकिन सासूमाँ नहीं मानी। दादी का गुस्सा देख दोनों बच्चों ने फटाफट सारा बिखरा सामान समेटा और अपने रूम में दुबक गए।
शाम को रवि ऑफिस से आये और घर शांत देख अवनि से पूछा, “क्या बात है आज हमारे नन्हे शैतान बड़े शांत है सब ठीक तो है?”
बस फिर क्या था अवनि ने सारी बात बता दी रवि को।
“माँ जी बहुत नाराज़ है रवि, आप मना लो प्लीज।”
“तुम चिंता मत करो अवनि मैं माँ से बात करता हूँ।”
“क्या हुआ माँ परेशान दिख रही हो?”
“आ गया तू! परेशान ना हूँ तो क्या करूँ? तू भूल गया कैसे पाला है तुम दोनों भाइयों को मैंने।”
“बात क्या हुई है माँ?” सब जान के भी अनजान बन रवि पूछा।
“बात ये है की तेरे नालायक बच्चे दिन भर धमा-चौकड़ी मचाते रहते है। पूरा दिन घर बिखरा रहता है ना अवनि कुछ कहती है ना तू। कैसे अनुशासन हीन बच्चे हैं तेरे?”
“माँ, रिया और सोनू मेरे बच्चे है कोई सजावट का सामान नहीं जिसे घर में सजा के रखु और ये घर जो आपको बिखरा दिखता है वो मुझे बिखरा नहीं जिन्दा दिखता है।”
इनके खिलौनों से इनकी शरारतों से मेरा ये छोटा सा घर रौशन रहता है, माँ। मैं तो भाग्यशाली हूँ जो मेरे घर में इनकी खिलखिलाहट गूंजती है वर्ना क्या मुझे भाई भाभी का दुःख नहीं दिखता। आपको भाई का घर साफ दिखता है लेकिन भाई भाभी का तरसता मन नहीं दिखता कि कोई एक नन्हा खिलौना उनके घर भी होता तो उनका घर भी बिखरा होता।
आप मुझे मेरा बचपन याद करने को कह रही है जबकि याद करने जैसा तो कुछ है ही नहीं। आप की सफाई और अनुशासन ने मेरा और भैया का बचपन छीन लिया। हर वक़्त सहमे सहमे रहते हम की कुछ गन्दा हो गया और आप पिटाई कर दोगे।
मुझे वो बचपन नहीं देना अपने बच्चों को ये उनका घर है उन्हें जो दिल करें वो करने को आजाद है वो इस घर में। कुछ समय बाद जब वो बड़े हो जायेंगे उनकी अपनी दुनियां बस जायेगी फिर यही तो मीठी यादें तो रह जायेंगी मेरे और अवनि के पास। बस दो दिन और माँ फिर भाई और भाभी आते ही आप चले जाना मैं रोकूंगा नहीं।”
निशब्द रह गई थी रवि की माँ। सच ही तो कहा था रवि ने अपनी सफाई की सनक के कारण छीन ही तो लिया था अपने बच्चों का बचपन उन्होंने। जिस घर को वो बिखरा कह बच्चों को और बेटे बहु को भला बुरा कह रही थी, वो घर बिखरा नहीं रौशन था बच्चों की मुस्कुराहट से उनकी मासूमियत से।
मूल चित्र: RajnigandhaSilverPearls Via Youtube
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