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बेटा हो या बेटी, मुझे दूसरा बच्चा नहीं चाहिए…

रिया के लिए भाई ले आओ? अरे लड़का या लड़की पैदा होना इंसान के हाथ में थोड़े ही है। पर संस्कारवश वह कुछ नहीं कहती थी।

रिया के लिए भाई ले आओ? अरे लड़का या लड़की पैदा होना इंसान के हाथ में थोड़े ही है। पर संस्कारवश वह कुछ नहीं कहती थी।

“अरे बहू, रिया के लिए भाई कब ला रही हो? अब तो पूरे सात बरस की हो गई।” सुनीता मौसी शिकायती लहजे में बोलीं।

और बहू प्रिया मुस्कुरा कर, पकौड़ों की प्लेट टेबल पर रख कर वापस किचिन में चल दी।

हमेशा यही सुनने को मिलता है जब भी, प्रिया गाँव आती और कोई रिश्तेदार मिलने आता।

प्रिया और मोहन की शादी नौ साल पहले हुई थी। प्रिया कानपुर की है और मोहन वहीं पास के गाँव का। दोनों दिल्ली में रहते हैं।

मोहन एक प्रायवेट कंपनी में काम करता है और प्रिया एक स्कूल टीचर है। दोनों की आमदनी बहुत तो नहीं थी पर गृहस्थी की गाड़ी आराम से चल रही है। जब शादी के दो बरस बाद नन्ही रिया का  जन्म हुआ था तभी दोनों पति -पत्नी ने फैसला किया था कि वे एक ही संतान करेंगे और उसके लालन-पालन पर ही पूरा ध्यान देंगे।

आज के महंगाई के समय में, बड़े शहरों में जीवन-यापन, बच्चों की शिक्षा, उच्च-शिक्षा सभी को ध्यान में रखकर उन दोनों ने यह फैसला किया था।

पर जब भी प्रिया ससुराल आती, आते-जाते सभी रिश्तेदार उसे दूसरी संतान के लिए कहते। प्रिया को सबका यह कहना अखर जाता था कि रिया के लिए भाई ले आओ। अरे लड़का या लड़की पैदा  होना इंसान के हाथ में थोड़े ही है। पर संस्कारवश वह कुछ नहीं कहती थी।

सास सरला जी भी यूँ तो सीधी महिला थीं पर रिश्तेदारों की हाँ में हाँ मिला कर उसे सुना देती थीं।

ये सब प्रिया से ही कहा जाता था, मोहन से कोई कुछ नहीं कहता था। और जब प्रिया इस बारे में मोहन से कहती तो वह छोटी सी बात मानकर, परेशान न होने को कह देता था।

प्रिया एक पढ़ी लिखी समझदार और संस्कारी लड़की थी। पर तो लोग उसे बेटा होने के टोने-टोटके भी बताने लगे थे। इन सबसे उसका गाँव आने-जाने का उत्साह कम होता जा रहा था।

जब दीपावली पर मोहन और प्रिया  फिर गाँव आए, तो प्रिया ने महसूस किया कि सरला जी, उससे कुछ उखड़ी हुई थीं।

अगले दिन जब मोहन अपने पिता के साथ खेत पर गया था तो सरला जी ने फ़रमान सुनाया, “बहू तुम अब नौकरी नहीं करोगी क्योंकि अपनी नौकरी की वजह से ही तुम दूसरा बच्चा नहीं करना चाहती हो। मैं अब समझने लगी हूँ कि तुम क्या सोचती हो? यही न कि फिर से बच्चे का झंझट होगा और तुम्हारी आज़ादी में खलल पड़ेगा।”

यह सुनकर प्रिया स्तब्ध रह गई। उसके सब्र का बाँध टूट गया। वह बोली ,”माफ़ कीजिए माँजी पर मैंने आपसे पहले भी कहा था कि हम दूसरे बच्चे की ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकते। रिया की…”

बीच में बात काट कर सरला जी बोलीं, ” हमारे भी चार बच्चे थे। हमने भी तो पाल पोसकर उन्हें लायक बना दिया। आजकल की लड़कियाँ बस आज़ाद होना चाहती हैं हर ज़िम्मेदारी से…”

प्रिया बोली, ” माँजी तब में और अब में बहुत फर्क है। आजकल इतनी महंगाई है, रहना, खाना, शिक्षा सब के बारे में विचार करना पड़ता है। और बहुत सोच-समझ कर ही हम दोनों ने यह फैसला लिया है। और दूसरी संतान बेटी नहीं होगी उसकी क्या गारंटी है? और मुझे पता है कि फिर आप कहोगे, एक बच्चा और कर लो…क्यूंकि आपको एक बीटा भी चाहिए। तो सिर्फ आपकी खुशी के लिए हम अपने बच्चों के भविष्य से तो खिलवाड़ नहीं कर सकते न?

इतने में मोहन भी खेत से लौट आया और अपनी माँ को समझते हुए बोला, “माँ हमने एक ही संतान करने का फैसला किया था चाहे बेटा होता या बेटी। हमें भगवान ने बेटी दी, अब हम उसकी परवरिश अच्छी तरह करना चाहते हैं। हाँ, माँ! बच्चे ज़िम्मेदारी है और यह ज़िम्मेदारी हम अपनी क्षमता के अनुसार ही लेना चाहते हैं जिससे अपने बच्चे को बेहतर भविष्य दे सकें।”

प्रिया और मोहन, अपनी बातों से सरला जी को संतुष्ट कर पाए या नहीं पर आज प्रिया ने बहुत सुकून महसूस किया। आज उसे अपना और अपनी बच्ची का भविष्य, अपने तरीके से संवारने की, अपनी सोच को बताने की, आज़ादी मिल गई थी।

मूल चित्र : Still from Why & What ads, YouTube

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