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आप घर की लक्ष्मी को दुर्गा बनने के लिए मजबूर कर रहे हैं…

"क्या कहा आप ने? आप थप्पड़ मार कर मेरा दिमाग ठिकाने लगाओगे? अगर पलट कर मैं भी आपको थप्पड़ लगा दूं तो आपको कैसा लगेगा?"

“क्या कहा आप ने? आप थप्पड़ मार कर मेरा दिमाग ठिकाने लगाओगे? अगर पलट कर मैं भी आपको थप्पड़ लगा दूं तो आपको कैसा लगेगा?”

आज सुबह से वह माँ दुर्गा के लिए प्रसाद बनाने मे लगी है। माँ दुर्गा मे उसकी विशेष आस्था है। बचपन से ही वह माँ को पूरी श्रद्धा से दुर्गा जी की पूजा करते हुए देखती आयी है। पूजा की थाल सजाने और आरती की थाली सजाने मे वह माँ की मदद करती थी।

इन कामों के दौरान माँ उसे दुर्गा माँ की महिमा सुनाती थी और वह ध्यान से सब सुनती। ससुराल मे भी आज सुबह से काम करते हुए वह माँ दुर्गा की महिमा याद कर रही है।

वह सोच रही थी, “मेरी माँ दुर्गा जी की खूब पूजा अराधना करती थी और दिनभर अपनी छोटी सी गृहस्थी में ही व्यस्त रहती थी। पिता जी उन्हें पूरा मान सम्मान देते थे। दादी भी अपनी हर जरूरत के लिए उन्हें ही बुलाती थीं।

हम बच्चे तो उनपर निर्भर रहते ही थे। हम सब की खुशियों के तार माँ से ही जुड़े रहे। उन से संस्कार पाकर मैं ससुराल आयी।

मैं भी माँ की ही तरह घर का हर मोर्चा बखूबी संभालने लगी। पर यहाँ न सम्मान मिलता न प्यार। दिनभर काम करके थक जाने पर थोड़ी देर के लिए आराम भी उसे नसीब नहीं होता। सासू माँ एक औरत होकर भी उसका दर्द क्यों नहीं समझतीं?”

सासूमाँ छोटी छोटी बातों पर उसे इतना डाँटती हैं मानो उसने बहुत बड़ी गलती कर दी हो। उनकी कर्कश आवाज सुनकर वह बहुत आहत होती। ननद, देवर और पति भी उसकी बेज्जती करने से नहीं चूकते।

अब उससे सहन नहीं होता। वह भी अपनी माँ की तरह सम्मान से जीना चाहती है। वह हमेशा सोचती, “जब से शादी करके इस घर मे आयी हूँ, सबको खुश करने में ही लगी रही। सबको प्यार और अपनापन दिया। बदले में क्या मिला? सिर्फ फटकार और बेज्जती।”

ये सब सोचते हुए उसकी आँखों में आंसू आ जाते।

बहू होने का फर्ज निभाना उसका धर्म था। माँ ने भी तो यही सिखाया था उसे। पर माँ की तरह सम्मान नहीं मिल रहा था। रोज रो कर सोती थी इस आशा मे कि कल सब कुछ अच्छा हो जायेगा। पर ऐसा अभी तक नहीं हुआ।

सब लोग माँ दुर्गा की पूजा की तैयारी करने मे लगे थे। सासू माँ ने पूजाघर से ही उसे आवाज लगायी, “बहू, इतनी देर से क्या कर रही हो? प्रसाद बना कि नहीं? जल्दी लेकर आओ।”

“अभी लायी माँ”, कहकर वह तेजी से प्रसाद लेकर भागी और पूजा कर रही सासू माँ को दे दिया। वह भी वहीं खड़ी होकर दुर्गा माँ की पूजा मे शामिल हो गई।

पूजा खत्म होते ही ननद ने हल्ला करना शुरू कर दिया, “भाभी, जल्दी नाश्ता दो। बहुत भूख लग रही है।”

देवर और पति भी उसके साथ ही नाश्ते की फरमाइश करने लगे। सब्जी बनाकर उसने रख दी थी। पूजा के बाद वह पूरियां तलती जायेगी और सबको खिलाती जायेगी, यह सोचकर पूरी नहीं बनायी थी। चूल्हा जलाकर वह तेल गरम करने लगी और पूरियां बेलने लगी। वह जल्दी से सबको खिलाना चाह रही थी।

तब तक पति किचन मे आए तो पीछे पीछे ननद और देवर सब किचन मे पहुंच गये।

“अभी तक तुम नाश्ता तैयार नहीं की हो। क्या करती रहती हो? सबको इतनी भूख लगी है। हम सब परेशान हो रहे हैं। मन तो करता है तुम्हें जोर की थप्पड़ लगाऊँ। तब तुम्हारा दिमाग ठिकाने आयेगा। फिर सब काम जल्दी से करना सीख जाओगी।” भूख से गुस्साए पति के मुँह से आज जो निकला उसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी।

अब उसकी सहनशीलता जबाब दे गई।

उसने चूल्हा बंद किया और जोर से चिल्लायी, “क्या कहा आप ने? आप थप्पड़ मार कर मेरा दिमाग ठिकाने लगाओगे? अगर पलट कर मैं भी आपको थप्पड़ लगा दूं तो आपको कैसा लगेगा?

माँ दुर्गा की पूजा करते हो और पत्नी पर जुल्म करते हो। घर मे इतने सारे लोग हैं, कोई मेरे कामों मे हाथ नहीं बँटाता और न ही आप लोगों ने मेरी मदद के लिए एक दाई भी रखी है। क्या मेरे दस हाथ हैं? क्या मैं सुपरवुमेन हूँ कि मेरे पास अधिक शक्ति है?

मैं सब काम समय पर निपटाती रहती हूँ। फिर भी आप लोगों के प्यार के दो बोल के लिए तरसती रहती हूँ। मान सम्मान देना तो दूर, अब मुझ पर हाथ उठाने की सोच ली आपने। धिक्कार है आप लोगों पर।

अब मैं आप लोगों का एक भी काम नहीं करूंगी। अपना काम खुद करो तब पता चलेगा। आप लोग क्या सोचते हो मैं बोल नहीं सकती। इस घर मे सुख शांति बनी रहे इसलिए आप लोगों की बातें सुनकर भी चुप रही। पर अब और नहीं।”

पति को ऐसे करारे जबाब की आशा नहीं थी। जब राक्षसी प्रवृत्ति मनुष्य के अंदर घुस जाए तो माँ दुर्गा की तरह उसका नाश करना भी जरुरी है। हर औरत का अस्तित्व महत्त्वपूर्ण है। वह सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है तो अन्याय के विरुद्ध लड़ भी सकती है। उसके अंदर प्यार है तो पराक्रम भी है। इसलिए उसने जुल्म के विरुद्ध आवाज उठाना सही समझा।

उसके चिल्लाने का असर हुआ। ग्लानि से भरे पति ने उसे “सॉरी”कहा। ननद और देवर ने देखा कि माहौल गरम हो रहा है तो दोनों जल्दी से पूरियां बनाने लग गए। पर वह भी आज इन लोगों को जल्दी माफ करने के मूड मे नहीं थी।

नाश्ता बनाकर वे उसके पास आए, “भाभी, हमें माफ कर दो। हमसे गलती हो गई। चलो हम सब मिलकर नाश्ता करेंगे। प्लीज, माफ कर दो।”

सासू माँ को भी गलती का अहसास हुआ। इसलिए वह आगे बढ़कर बहू को लाड़ दिखाते हुए उसके पास आयी और प्यार से बोलीं, “बहू,चलो हम सब साथ मे नाश्ता करेंगे।”

“आप बड़ी हैं तो मैं आपकी बात मान लेती हूँ। पर ये याद रहे कि हम औरतें ही लक्ष्मी भी हैं और दुर्गा भी।”

उसकी बातों पर सिर हिलाकर सासूमाँ ने भी सहमति जाहिर कर दिया। उस ने भी सबको माफ कर दिया क्योंकि उसके घर वालों को गलती का अहसास हो गया था।

मूल चित्र: Still from short film Haircut/Pocketfilms, YouTube 

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