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आखिर मैं भी कब तक चुप रहती?

चलते-फिरते मुझे ससुर जी, कभी मेरे देवर, तो कभी मेरे पति याद दिला दिया करते थे कि मैं इस घर में उनकी पसंद नहीं हूँ।

चलते-फिरते मुझे ससुर जी, कभी मेरे देवर, तो कभी मेरे पति याद दिला दिया करते थे कि मैं इस घर में उनकी पसंद नहीं हूँ।

“कहां थी तुम अब तक? घर में इतना काम पड़ा है और तुम हो कि घर में ही नहीं हो।”

“हां, आज मैंने सोचा थोड़ा बहुत अपने लिए वक्त निकाल लूँ।”

“तुम सिर्फ अपनी सोच रही हो? शर्म आनी चाहिए तुमको।”

“शर्म? कैसी शर्म? और क्यों शर्म आनी चाहिए? आखिर मैं भी तो इंसान हूं।”

“मैं तुम्हारा पति हूं, मैं तो घर पर हूं और तुम बाहर घूम रही हों। यहां घर में मां और अनन्या परेशान हो रही हैं।”

“अरे! इसमें परेशानी की क्या बात है? यह घर अनन्या का भी है। क्या हो गया जो उसने घर के काम में मदद कर दी? और रही बात मम्मी जी की, तो कभी-कभी थोड़ा बहुत तो वो भी कर ही सकती हैं और रही बात तुम्हारे बिना आज बाहर घूमने की, तो तुम शायद भूल रहे हो कि आज वैलेंटाइन डे है और वैसे भी मैं तुम्हारी पसंद नहीं हूं। और एक बार नहीं, ये तुमने मुझसे बार-बार कहा है। इसलिए मैं अपनी वैलेंटाइन खुद हूँ।”

मुझसे बहस करना किसी ने ठीक नहीं समझा इसलिए सब चुप रह गए और मैं चुपचाप अपने कमरे में चली गई।

मैं अपर्णा, शर्मा परिवार की बड़ी बहू, मेरे परिवार में मेरी सास विजया जी, मेरे पति अजय जी, मेरे देवर देवरानी अनिकेत और अनन्या, साथ ही मेरा बेटा आदि, और देवर देवरानी का एक प्यारा सा बेटा क्षितिज है।

मेरी शादी को पांच साल हो चुके हैं। हालांकि मैं अपने पति को शुरुआती दिनों से ही पसंद नहीं थी, पर फिर भी मजबूरी में उन्होंने मुझे अपनी पत्नी माना (शायद मुझ पर एहसान किया।) पर यह परिवार मुझ पर एहसान जताना कभी नहीं छोड़ता कि तुम तो हमें पसंद भी नहीं थी पर फिर भी हमने तुम्हें अपने घर की बहू माना (जैसे मैं आकर उनके पैर पड़ी थी कि मुझे आपके ही घर की बहू बनना है।)

अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं अभी तक यह घर छोड़कर क्यों नहीं गई तो मैं आपको शुरुआत से बताती हूं।

मेरे पति अजय का अपनी कलीग राम्या के साथ अफेयर था। राम्या आज के जमाने की पढ़ी-लिखी मॉडर्न लड़की थी। छोटे बाल, टाइट जींस, और मुँह से फर्राटेदार इंग्लिश बोलती बहु कई भारतीय सास बहुत कम बर्दाश्त कर पाती है। विजया जी ने उसके सामने आदर्श बहू बनने की शर्त रखी पर राम्या ने साफ मना कर दिया।

सो, इस कारण से आनन-फानन में उन्होंने अपने बेटे अजय के लिए मुझे पसंद किया और शादी करवा दी। और अजय ज्यादा कुछ कर नहीं पाया। मैं एक गरीब परिवार की बेटी थी। मुझसे छोटी दो बहनें और एक भाई था। बिना दान दहेज की शादी थी इसलिए पिताजी ने ज्यादा कुछ पूछा नहीं और अपने सिर का बोझ उतार दिया।

शादी की रात ही अजय जी ने मुझे बता दिया था कि मैं उन्हें पसंद नहीं हूं। बस तुम मेरी मां के कारण इस घर में आई हो। मैं रात भर अपनी किस्मत पर रो कर चुपचाप सो गई यह सोच कर कि कभी तो सुबह होगी। और मेरी किस्मत का सूरज उगेगा।

मैं उस घर में नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं थी। कहने को मैं सास के कारण आई थी, पर फिर भी सास तो सास ही होती है। उन्होंने तो अपनी इज्जत बचाने के लिए शादी करवाई थी। तो वह काम तो पूरा हो चुका था।

चलते फिरते मुझे ससुर जी, कभी मेरे देवर, तो कभी मेरे पति याद दिला दिया करते थे कि मैं इस घर में उनकी पसंद नहीं हूँ। कभी-कभी मेरे पति मुझ पर अपने पति होने का एहसान जता दिया करते थे। इस कारण से ही आज एक बेटा आदि हो चुका है।

देवरानी आई तो सोचा कि वह तो साथ देगी, पर वह भी उन्हीं के रंग में रंगी हुई आई। सही मायने में तो घर की बहू ही वह थी, मैं तो सिर्फ नौकरानी थी। वह भी अपना सारा काम मुझ पर डाल देती।

लेकिन अभी पिछले दिनों क्षितिज और आदि खेल रहे थे। बच्चे बड़े हो रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि बहसबाजी तो बच्चों में भी हो ही जाती है। पता नहीं किस बात पर वो लोग झगड़ पड़े। घर के सभी सदस्य वहीं बैठे हुए थे और मैं किचन में कुछ काम कर रही थी। जब तक मैं बाहर आई, अजय ने आदि के गाल पर चांटा खींच कर मार दिया।

मुझे वहां देखकर मम्मी जी ने भी मुझे ही पूछा, “ऐसी क्या संस्कार दे रही हो अपने बच्चे को?  छोटे भाई से झगड़ा कर रहा है।”

“मम्मी जी, वह सिर्फ अभी तीन साल का बच्चा है।” मेरा सिर्फ इतना ही कहना था, उस पर पूरे घर के लोग मुझ पर चढ़ गए।

“इसीलिए लाई थी तुझे मैं यहां कि तुम मुझे सुनाओ?”

“और लाओ अपनी पसंद की बहू, जो तुम्हारे सामने खड़ी हो गई। तुम से ही जुबान लड़ा रही है”, ससुर जी ने कहा।

“भैया भी यहीं खड़ा है, बस सुने जा रहा है। भाभी की इतनी हिम्मत कैसे हो गई माँ से इस तरह बोलने की?”

“माँ ही लाई थी अपनी पसंद की बहू। मुझे तो यह शुरू से ही पसंद नहीं है। मुझे तो बीच में नाहीं घसीटो तो अच्छा है”, अजय ने कहा।

पर आज मैं विरोध के मूड में आ चुकी थी। आज तक जिस किसी ने मेरी आवाज नहीं सुनी थी  आज उन्होंने भी मेरी आवाज सुन ली।

मैंने चिल्ला कर कहा, “मैं तो तुम्हारे पैर पड़ने नहीं आई थी कि मुझसे शादी करो। अपनी इज्ज़त बचाने के लिए तुम लोगों ने मेरी बलि चढ़ा दी। और क्या लगा रखा है कि मैं तुम्हें पसंद नहीं हूं। तो सुनो, जिस दिन तुमने कहा था कि मैं तुम्हें पसंद नहीं, उसी दिन से मुझे तुम भी पसंद नहीं हों। पर मैं भी चुपचाप निभा रही हूं।”

“तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम हमसे जुबान लड़ा रही हो। घर से निकाल देंगे, तब अक्ल आएगी।”

“औकात नहीं है आपकी मुझे घर से निकाल देने की। अगर इतनी ही औकात होती ना तो आनन-फानन में इज्जत बचाने के लिए अपने बेटे की शादी ना करते तुम लोग। निकालना चाहते तो बिल्कुल निकाल दो, लेकिन याद रखना, मेरी जिंदगी बर्बाद की है ना उसकी भारी-भरकम कीमत ले कर जाऊंगी। जिस दिन कीमत चुका सको, उस दिन बोल देना जाने के लिए। समझे ना।’

पहली बार मैंने जवाब दिया था, पर अब किसी की हिम्मत नहीं मुझसे लड़ लेने की। क्योंकि मुझे पता चल चुका है कि मेरी जुबान में ताकत है।

अब मैं खुद के लिए जीती हूँ। ज़रूरी नहीं कि प्यार किसी और से ही हो, प्यार खुद से भी हो सकता है। और मुझे अपने आप से प्यार हो चुका है। आज मैं खुद अपनी वेलेंटाइन हूँ। और मुझे इस बात का कोई दुख नहीं।

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मूल चित्र : Still from short film Budh(Awakening), YouTube

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